नीतीश कुमार की बिहार में बढ़ती जा रही हैं राजनीतिक मुश्किलें

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नीतीश कुमार ने भी माना है कि बिहार असेंबली की कल हुई घटना शर्मनाक है। इसके लिए विपक्ष को कोसा। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पत्रकारों से बात कर रहे थे।
नीतीश कुमार ने भी माना है कि बिहार असेंबली की कल हुई घटना शर्मनाक है। इसके लिए विपक्ष को कोसा। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पत्रकारों से बात कर रहे थे।

पटना। नीतीश कुमार की बिहार में राजनीतिक मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही हैं। कुछ मोर्चे स्वतः खुल गये हैं या उन्होंने खुद ही खोल लिये हैं। बिहार के 4 लाख नियोजित शिक्षक हड़ताल पर हैं, जबकि इन दिनों मैट्रिक की परीक्षाएं चल रही हैं। घर फूटे, गंवार लूटे की तरह जेडीयू से निष्कासित प्रशांत किशोर ने अलग मोर्चा खोल लिया है। सीएए के सवाल पर कन्हैया कुमार बिहार में अलख जमाये हुए हैं। बेरोजगारी के मुद्दे पर तेजस्वी यादव सूबे के युवाओं को गोलबंद करने में लगे हैं। विपक्षी एकता आहिस्ता-आहिस्ता मजबूत हो रही है। राज्य में बेहतर कामकाज के बावजूद ये तमाम चीजें नीतीश कुमार के लिए खतरे की घंटी हैं।

नीतीश कुमार के लिए मुश्किलों का सबसे बड़ा सबब एनआरसी, सीएए और एनपीआर बना है। इसे लेकर विपक्ष की हवा में माइनारिटी तबका उनके खिलाफ हो चुका है। इन मुद्दों पर उन्होंने या तो भाजपा का खुल कर साथ दिया है या उनकी मौन स्वीकृति है। एनपीआर और एनरआरसी के मुद्दे पर वैसे भी माइनारिटी तबका गोलबंद है। इन मुद्दों पर विपक्ष के विरोध के कारण हिंदुओं का भी बड़ा तबका जाति और धर्मनिरपेक्षता के नाम पर अपने आका दलों के नेताओं के साथ है।

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भाजपा के साथ रह कर और उसकी शर्तों पर चल कर नीतीश ने खुद ब खुद अपने बड़े जनाधार माइनारिटी का विश्वास खो दिया है। खासकर तब, जब इन्ही मुद्दों के उनके राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने विरोध किया तो नीतीश ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया। इससे नीतीश की की चुप्पी के बावजूद माइनारिटी तबके ने उनकी सहमति मान ली है। विधानसभा चुनाव में अगर उन्हें इसका खामियाजा चुकाना पड़ जाए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।

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हालांकि भाजपा मानती है कि केंद्र सरकार अल्पसंख्यकों के खिलाफ नहीं है, बल्कि केंद्र सरकार अल्पसंख्यक हित में काम कर रहील है। भाजपा प्रवक्ता व पूर्व विधायक राजीव रंजन कहते हैं कि आज जब एक तरफ पूरा विपक्ष नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के मुद्दे पर मुस्लिम समुदाय के बीच झूठ और दुष्प्रचार फ़ैलाने की साजिश रचने में व्यस्त है, वहीं ठीक इसी समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार अल्पसंख्यक समुदाय के विकास के लिए योजनाएं बनाने में लगी हुई थी।

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वर्ष 2020-21 के बजट को देखें तो अल्पसंख्यक समाज के लिए सरकार की मंशा की झलक साफ़ दिखाई पड़ती है। सरकार ने अल्पसंख्यकों का खासा ख्याल रखते हुए, अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय के बजट में पिछली बार की तुलना में 329 करोड़ रुपये की भारी बढ़ोतरी की है। यह दिखाता है कि सरकार “‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ के मूलमंत्र के प्रति पूरी प्रतिबद्धिता के साथ काम कर रही है। मोदी सरकार के पहले के समय को याद करें तो उस समय अल्पसंख्यकों को विकास के नाम पर केवल झुनझुना थमा कर कांग्रेस और उसके सहयोगी दल शांत बैठ जाते थे, लेकिन मोदी सरकार में अल्पसंख्यकों के लिए किये जाने वाले कार्यों में ऐतिहासिक बदलाव आया। पहले देश के केवल 90 जिलों को अल्पसंख्यक समुदायों के विकास के लिए चिन्हित किया गया था, लेकिन वर्तमान सरकार ने अल्पसंख्यकों के लिए विकास कार्यक्रमों का दायरे को बढाते हुए इसका विस्तार देश के 308 जिलों तक सफलतापूर्वक कर दिया है।

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इसके अलावा मोदी सरकार ने कई ऐसी योजनाएं शुरू की हैं, जिनसे अल्पसंख्यकों के जीवन को बेहतर बनाने में मदद मिली है। इन योजनाओं में आयुष्मान भारत योजना, जन धन योजना, पीएम-किसान सम्मान निधि, पीएम श्रमयोगी मान-धन योजना, सुकन्या समृद्धि, उज्ज्वला योजना, आवास योजना, उजाला योजना, जल-जीवन मिशन जैसी योजनाएं शामिल हैं। मुस्लिम समुदाय के लिए हज यात्रा को सुगम बनाने का काम भी इसी सरकार ने किया है। पीएम मोदी द्वारा सऊदी अरब से भारतीय हज कोटे को बढाने की अपील के बाद 2019 में पहली रिकॉर्ड 2 लाख भारतीय मुसलमानों ने हज यात्रा की, जिनमें 48 प्रतिशत महिलाएं थीं। यह वर्तमान सरकार की ही देन है कि आज मुस्लिम महिलाओं के लिए मेहरम की बाध्यता समाप्त हो चुकी है तथा साथ ही उन्हें तीन तलाक के दंश से भी मुक्ति मिल चुकी है। आज कांग्रेस की तरह अल्पसंख्यकों को डरा कर कोने में नहीं रखा जाता, बल्कि पहली बार देश में अल्पसंख्यकों का सम्मान के साथ विकास हो रहा है। सरकार की मंशा इस बात को सुनिश्चित करने की है कि विकास के इस युग में अल्पसंख्यक वर्ग किसी भी कीमत पर पीछे नहीं छूटने चाहिए।

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इधर भाजपा कोटे से बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी का कहना है कि जदयू से राजद का गठबंधन बेनामी सम्पत्ति और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर टूटा था। तत्कालीन महागठबंधन सरकार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव आज तक अपने खिलाफ लगे आरोपों का बिंदुवार जवाब नहीं दे पाये। भाजपा ने गरीब बिहार को मध्यावधि चुनाव के बोझ से बचाने के लिए बिना शर्त जदयू का समर्थन किया, जिससे भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस रखने वाली एनडीए सरकार बनी और विकास को गति मिली।

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प्रशांत किशोर पर उन्होंने कहा कि बिहार में एनडीए सरकार की वापसी प्रशांत किशोर को फूटी आँखों भी नहीं सुहायी, इसलिए वे लालू प्रसाद से नीतीश कुमार की फिर दोस्ती कराने में लगे रहे। जब उनकी दाल नहीं गली, तो नागरिकता कानून को बहाना बना कर नीतीश कुमार को निशाना बनाने लगे। वे लालटेन पार्टी के लिए काम करने लगे हैं, इसलिए उन्हें न राजद राज के भ्रष्टाचार दिखते हैं, न एनडीए सरकार में हर गांव-घर तक पहुंची बिजली दिखायी पड़ती है।  2005 से बिजली की खपत में पांच गुना वृद्धि हुई, लेकिन पीके बिहार को लालटेन युग में लौटाने की मुहिम चलाने का ठेका ले चुके हैं।

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