ममता कालिया की पुस्तक ‘अंदाज़-ए-बयाँ उर्फ़ रवि कथा’

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ममता कालिया की संस्मरणात्मक पुस्तक ‘अंदाज़-ए-बयाँ उर्फ़ रवि कथा’ में ममता कालिया ने खुद को हाईलाइट होने नहीं दिया है। रवींद्र कालिया केंद्र में हैं और है उनका कथा-समय। पुस्तक केबारे में अच्छी आलोचनात्मक टिप्पणी लिखी हैं प्रो. अरुण होता ने।
ममता कालिया की संस्मरणात्मक पुस्तक ‘अंदाज़-ए-बयाँ उर्फ़ रवि कथा’ में ममता कालिया ने खुद को हाईलाइट होने नहीं दिया है। रवींद्र कालिया केंद्र में हैं और है उनका कथा-समय। पुस्तक केबारे में अच्छी आलोचनात्मक टिप्पणी लिखी हैं प्रो. अरुण होता ने।
ममता कालिया की संस्मरणात्मक पुस्तक ‘अंदाज़-ए-बयाँ उर्फ़ रवि कथा’ में ममता कालिया ने खुद को हाईलाइट होने नहीं दिया है। रवींद्र कालिया केंद्र में हैं और है उनका कथा-समय। पुस्तक केबारे में अच्छी आलोचनात्मक टिप्पणी लिखी हैं प्रो. अरुण होता ने।
  • अरुण होता
ममता कालिया की संस्करणात्मक पुस्तक
ममता कालिया की संस्करणात्मक पुस्तक

प्रसिद्ध साहित्यकार ममता कालिया की संस्मरणात्मक पुस्तक ‘अंदाज़-ए-बयाँ उर्फ़ रवि कथा’ हाल-फ़िलहाल में वाणी प्रकाशन से प्रकाशित  हुई है। दो सौ पृष्ठों की यह पुस्तक दो बैठकी में पूरी हो गयी। ममता जी के पाठक जानते हैं, उनके लेखन में कितनी ज़बरदस्त पठनीयता होती है। ‘विट’ तो होता ही है। कम से कम शब्दों में एक बड़ी घटना या व्यापक संदर्भ की ओर इशारा करते हुए विवरणात्मकता से पाठकों को निजात देना उनके लेखन का एक बड़ा वैशिष्ट्य है। शब्दों के जाल में न ममता जी की रचना उलझी रहती हैं और न उनके पाठकों को उलझाती हैं।  ‘रवि कथा’  में भी ये विशेषताएँ आसानी से देखी जा सकती हैं।

छोटे-बड़े इकतीस खंडों में विभाजित है। हर खंड की शुरुआत में विषय के अनुरूप ग़ालिब या फ़ैज़ की ग़ज़ल है। पुस्तक के अंत में रवींद्र कालिया के जीवन से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण फ़ोटो भी हैं।

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साठोत्तरी पीढ़ी के लेखकों में रवींद्र कालिया का नाम उल्लेखनीय है। ज्ञानरंजन, काशीनाथ सिंह, गिरिराज किशोर, रवींद्र कालिया आदि की पीढ़ी में कालिया जी की अनन्यता और उनके व्यक्तित्व के अनेक अनजान पहलुओं को उस संस्मरणकार ने प्रस्तुत किया है, जिसने आधी शताब्दी से भी अधिक समय पत्नी और मित्र के रूप में बिताया है।

‘रवि कथा’ में कालिया जी महापुरुष और देवता के रूप में नहीं, बल्कि एक जुझारू ज़िंदादिल मनुष्य के रूप में अंकित हैं। संस्मरणकार की ओर से  कहीं कुछ छिपाने का प्रयास नहीं। विश्वसनीयता में कोई अभाव नहीं।

इस किताब की खूबी यह है कि रवींद्र कालिया के बहाने पचास-साठ वर्षों के  भारतीय साहित्यिक, सांस्कृतिक और सामाजिक परिदृश्य के चित्र अंकित करने का प्रयास किया गया है। एक बात और, पूरी किताब में ममता कालिया तो हैं, लेकिन उन्होंने अपने को जहां तक हो सके हाईलाइट होने ही नहीं दिया है। रवींद्र कालिया केंद्र में हैं और है उनका कथा-समय। आज की युवा  कथा पीढ़ी भी ।

इस पुस्तक से गुजर कर बहुत कुछ सीखा जा सकता है। इस पर कभी फिर विस्तार से। फ़िलहाल ममता कालिया जी को एक बेहतरीन पुस्तक के लिए बहुत बहुत बधाई।

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