बिहार की बेटियों की इज्जत बचाइए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी!

0
198
बिहार के लोग, जो बाहर फंसे हुए हैं, उनसे फीडबैक लेकर उनकी परेशानियों दूर करें। जो घर आ गये हैं, उनकी पहचान कर टेस्ट करायें और जरूरी मदद करें। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कोरोना वायरस से उत्पन्न स्थितियों की समीक्षा के दौरान ये निर्देश दिये।
नीतीश कुमार

एक दिन (15 जून 2018) के अखबारों की कुछ खबरें-

  • गया में बाप को बांध कर नाबालिग बेटी-बीवी से सामूहिक दुराचार, घटना को अंजाम देने में 20 युवकों की भागीदारी
  • रागीर जैसे पर्यटक स्थल पर जीजा के साथ घूम रही युवती के साथ दो बदमाशों ने किया दुष्कर्म
  • आरा शहर में पांचवीं की छात्रा के साथ पिस्तौल की नोक पर पड़ीसी ने दुष्कर्म की घटना को दिया अंजाम
  • आरा के बिहियां में बाप ने कर्ज नहीं चुकाया तो साहुकार ने बेटी को तीन महीने तक पैर में बेड़ियां डाल कर बंधक बनाया

नमूने के तौर पर इन चार घटनाओं को लें। इन घटनाओं के बाद जाहिरा तौर पर पुलिस हरकत में आई होगी, लेकिन कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं दिखती। प्रगति हो भी तो उससे क्या फायदा। अब तो उन महिलाओं-बच्चियों को दहशतगर्दों ने जो दर्द दिया है, उसकी मानसिक पीड़ा से वे आजीवन नहीं उबर पायेंगी। क्या यह उसी नीतीश कुमार के शासन काल में हो रही घटनाएं हैं, जिनके पहली बार सत्ता संभालते ही बिहार से जंगल राज का काला धब्बा हटा था। बड़े अपराधी जेल की सीखचों में पहुंच गये थे और छुटभैय्ये तो बिहार चोड़ कर भागने या अपराध की दुनिया को अलविदा कहने पर मजबूर हो गये। कहां गया नीतीश जी का वह इकबाल-प्रताप।

- Advertisement -

समाज सुधारक तो सत्ता से बाहर होकर भी आप बन सकते हैं नीतीश जी। सत्ता में रह कर समाज सुधार नहीं, शासन चलाया जाता है। वैसा शासन, जिसमें लोग खुद को सुरिक्षत समझें। आपकी पुलिस नाकाबिल है या शराबबंदी, दहेज उन्मूलन और बाल विवाह जैसे आपके सारे समाज सुधारक प्रयास सिर्फ दिखावे के हैं। अपराध बेकाबू, अपराधी निरंकुश और पुलिस को जन सुरक्षा के बदले सिर्फ शराब पकड़ने की चिंता। आप ने जिन बेटियों को पढ़ने लिए साइकिल और पोशाक की व्यवस्था की। घरों में खुशहाली के लिए शराबबंदी की सफलता पर आप इतराते रहे हैं। जन सुरक्षा की जरूरत आपको क्यों नहीं महसूस हो रही। आप विरोधियों से उन पर लगे आरोपों पर जनता के बीच जाकर सफाई देने की मांग करते हैं। आप क्यों नहीं सफाई दे रहे कि आपका इकबाल अब पहले जैसा नहीं रहा। आप गया के पीड़ित उस परिवार के किसी सदस्य के रूप में खुद को रख कर पूरे घटनाक्रम को देखिए तो आपको इसकी गंभीरता समझ में आयेगी। सिर्फ वोटों के लिए समाज सुधार और विकास का प्रहसन बहुत हो गया। आपसे उम्मीद है। आप इकबाली रहे हैं। पहले शासन काल में ही आप ने अपराधियों को उनकी औकात बता दी थी। आपके लिए जरूरी सिर्फ एक बात है कि आत्ममुग्धता से निकलिए। पोस्को ऐक्ट के तहत सजा की रफ्तार अभी तीन प्रतिशत है। इसे बढ़ाइए, वर्ना ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति होती रहेगी।

- Advertisement -