पाती ना कवनो सनेस, कहां हेरा गइली मलिकाइन!

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गांव की तस्वीर बाबूलाल जी के सौजन्य से
तस्वीर बाबूलाल जी के सौजन्य से
मलिकाइन के पाती
मलिकाइन के पाती

पांव लागीं मलिकार, रउरा त कहेब कि कहवां भुला गइली मलिकाइन। ना कवनो पाती आ ना सनेस। अइसन जनि सोचेब मलिकार। हमार देह भलहीं एइजा रहेला, बाकिर मनवा रउरे में बसेला। पाती लिखवावे खातिर छपटा के रह गइल रहनी हां। रउरा त जानते बानी मलिकार कि महीना-डेढ़ महीना अइसन बीतल हा कि कहीं केहू के हिले के मौके ना रहल हा। गरमी अबकी ढेर सतवलस। केतने लोग के जान ले लिहलस। एही में एगो कवन चमकी बोखार के अइसन हवा चलल हा कि मन कांप गइल हा। पांड़े बाबा रोज पढ़-पढ़ के खबर सुनावत-बतावत रहनी हां कि आज एतना बच्चा मर गइले सन चमकी बोखार से। अबले मुए वाला बचवन के तादाद एतना हो गइल। एतना डर समा गइल रहल हा मलिकार कि हम त लड़किन के कहीं निकलहीं ना देत रहनी हां। ई तनी ठंडाइल हा त अब बाढ़-बरखा से तबाही के खबर आइल शुरू गइल बा।

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ए मलिकार, रउरा जरूर मालूम होई। फुलुंगनी वाली फुआ के छोटका नतिया कवनो बड़ नेता हो गइल बा का। परसों आइल रहे। बड़की चारचकिया गाड़ी में आगे के सीट पर बइठल रहे। पीछे दू गो सिपाही रहले सन। गाड़ी दुआर पर रुकल त फटाक से पुलिसवा उतर के गेट खोलले सन। ऊ उतरल त पांड़े बाबा सामने लउक गइनी। उहें से बतिआवे लागल। हमहूं दोगहवे में रहनी त सगरी बतिया साफ सुनात रहे।

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पांड़े बाबा पूछनी कि ए बाबू, एह घरी का होता। पुलिस संगे लेके काहे घूमत बाड़। तब ऊ बतवलस कि रउरा नइखीं जानत का, हम एह घरी फूल छाप वाली पाटी में बानी। पहिले ललटेन में रहनी हां। बाकिर अब ओह तीसी तेल नइखे बुझात। एही से हम फूल छाप वाली पाटी में चल गइल बानी। हमरा के जिला के हेड बना दिहले बिया। हमरा पर केहू हमला ना करे, एह खातिर परसासन दू गो सिपाही दिहले बा। देखीं, सगरी ठीक रहल त एह बेरी कहीं ना कहीं से एमएलए के टिकट मिलबे करी। एने एगो सराध में शामिल होखे आइल रहनी हां त सोचनी हां कि रउरो लोगिन से भेंट करत चलीं।

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ओकरा बाद ऊ हमरा लगे आइल। बड़ी देर तक बतियवलस। रउरो बारे में पूछत रहे कि एह घरी उहां के कहां बानी। अब हमरा उहां से मदद के जरूरत बा। एही खातिर अइनी हां। राउर नंबर मांग के हमरा से ले गइल। जेतना देर में हम चाय-पानी करवनी, ओतना देर ले बक-बक कइले रहे। हमरा त ई पाटी-पोलटिक्स बुझाव ना, एह से हम खाली हूं-हां करत रहनी।

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ए मलिकार, रउरा से एगो बात पूछे के बा। कई दिन से पांड़े बाबा के दुआरा ई चर्चा होता कि नीतीश जी फेर पलटी मारे के तेयारी में बाड़े। फूल छाप वाली पाटी से उनकर पटरी नइखे बइठत। पांड़े बाबा त कहत रहनी कि नीतीश बाबू फूल चाप वाली पाटी के सगरी काम में टांग अड़े दे तारे। कबो मंदिर के नाम पर त कबो कवनो बात पर। दिल्ली वाला चुनाव में फूल छाप पाटी के अइसन नकेल कस दिहले रहले कि ओकरा आपन जीतल सीट इनका के देबे के पर गइल। जब ओकर मौका आइल हा त ऊ नीतीश जी के नकेल कस दिहलस। इनका पाटी के केहू दिल्ली मं मंतरी ना बनल। खिसिया के नीतीश जी अपना लोग के आपन मंतरी बनवले, बाकिर फूल छाप के केहू के ना मिलवले। एही से मानल जाता कि नीतीश जी के औकात में फूल छाप वाली पाटी लिआ दिहले बिया। अइसन हो सकेला का मलिकार। हमरा त नइखे बुझात, बाकिर लोगवा बतियावत बा त पतियाये के पर जाता।

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