जान लें- क्या है बिहार की खीर पालिटिक्स की सच्चाई

0
161

PATNA: लोकसभा का चुनाव देशभर में होना है, लेकिन सर्वाधिक घमासान बिहार में मचा है। कहीं गठबंधन बनाने के लिए पाक-नापाक और मेल-बेमेल कोशिशें हो रही हैं तो कहीं एकला चलो की तैयारी भी दिख रही है। फिलवक्त बिहार में एक नया घमासान शुरू हुआ है खीर पालिटिक्स को लेकर।

रक्षाबंधन के दिन केंद्रीय मंत्री रालोसपा सुप्रीमो उपेंद्र कुशवाहा ने सामाजिक समरसता की खीर पकाने की विधि बतायी और प्रयोग होने वाली सामग्री गिनायी। दरअसल यह राजनीतिक खीर की विधि थी, जिसे लेकर पूरे सूबे में कयासबाजी का दौर शुरू हो गया है।

- Advertisement -

कुशवाहा ने कहा था कि समाज के यदुवंशियों का दूध मिल जाये, कुशवंशी चावल दे दें, दलित-पिछड़े पंचमेवा दें और सवर्ण तुलसी दल डाल दें तो जो खीर बनेगी, वह स्वादिष्ट होगी। कुशवाहा का बयान आते ही राजद के तेजस्वी यादव ने तुरंत ट्वीट किया- ऐसा खीर न सिर्फ स्वादिष्ट होगा, बल्कि पौष्टिक भी। इसके बाद तरह-तरह के कयास लगाये जाने लगे हैं। लोग यह मान कर चल रहे हैं कि उपेंद्र कुशवाहा एनडीए में नाराज चल रहे हैं। वह अब राजद का थामने की तैयारी में हैं, जिसकी भूमिका के तौर पर उनके कल के बयान को उद्धृत किया जा रहा है।

राजद के वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने कहा है कि एनडीए में छोटे दल घुटन महसूस कर रहे हैं। सभी भागने के लिए छटपटा रहे हैं। चंद्रबाबू नायडू ने तो पहले ही साथ छोड़ दिया है। शिवसेना भी झटके दे चुकी है। रामविलास पासवान भी इसे महसूस कर रहे हैं। उपेंद्र कुशवाहा को भी एहसास हो चुका है। सबका महागठबंधन में स्वागत है। राजद के साथ हाल ही में तालमेल बिठाने वाले हम (से) के जीतन राम मांझी ने कहा कि उपेंद्र कुशवाहा का महागठबंधन में स्वागत है, पर उन्हें बिना शर्त आना पड़ेगा। फिलहाल सीएम पद की वेकेंसी महागठबंधन में नहीं है।

यह भी पढ़ेंः सवर्णों को आरक्षण का सब्जबाग दिखाना धोखा है

इन सबके बीच उपेंद्र कुशवाहा ने सफाई दी है कि उन्होंने कभी किसी पार्टी का नाम नहीं लिया। उन्होंने तो सामाजिक समरसता के साथ अपनी पार्टी की मजबूती की बात कही थी। उन्होंने इस कयास पर भी पूर्ण विराम लगा दिया कि वह एनडीए छोड़ कर जाने वाले हैं। इसके समर्थन में उन्होंने कहा कि जब रालोसपा मजबूत होगी तो एनडीए स्वतः मजबूत होगा और एनडीए की मजबूती का मतलब नरेंद्र मोदी का दमदार ढंग से 2019 में प्रधानमंत्री बनना है। इसके मायने लोग उलट लगा रहे हैं।

यह भी पढ़ेंः 1984 के सिख विरोधी दंगों पर यकीनन राहुल गांधी का बयान बचकाना

- Advertisement -