1984 के सिख विरोधी दंगों पर यकीनन राहुल गांधी का बयान बचकाना

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  • जयशंकर गुप्त
आज लिखना तो भाई-बहन के पवित्र रिश्ते, रक्षाबंधन के बारे में चाह रहा था, लेकिन 1984 के सिख विरोधी दंगों के बारे में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के बयान और उसको लेकर मचे विवाद के मद्देनजर लिखने का लोभ संवरण नहीं कर पाया। यकीनन राहुल गांधी का यह बयान बचकाना है।
1984 के सिख विरोधी दंगों में कांग्रेस के लोगों की संलिप्तता जगजाहिर है और कांग्रेस के नेता पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इसके लिए माफी भी मांग चुके हैं। इंदिरा गांधी की बर्बर हत्या के बाद उनके पुत्र तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के उस बयान को कोई कैसे भुला सकता है कि ‘जब कोई बड़ा दरख्त गिरता है तो धरती हिलती ही है।’ अगर उस दंगे का तटस्थ विवेचन करें तो निचले स्तर पर उसमें संघ के लोगों की सहभागिता भी साफ नजर आएगी। कोई बता सकता है कि जब सिख विरोधी दंगे हो रहे थे, तब संघ के प्रचारक और स्वयंसेवक क्या कर रहे थे। यह भी एक तथ्य है कि 1984 के आमचुनाव में संघ ने परोक्ष रूप से कांग्रेस का साथ दिया था।
इसी तरह से यह भी जगजाहिर है कि 2002 के गुजरात दंगों में बड़े पैमाने पर सत्ता संरक्षित भाजपा और संघ के लोग शामिल थे। याद कीजिए कि तब राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने कहा था कि ‘ऐक्शन का रिऐक्शन तो होता ही है’। क्या कभी उन्होंने या भाजपा के किसी अध्यक्ष ने अभी तक कहा है कि हां 2002 में गुजरात के दंगे भाजपा ने करवाए थे! क्या तत्कालीन मुख्यमंत्री से लेकर भाजपा अध्यक्ष ने माफी मांगने की बात तो दूर, उन दंगों के लिए खेद भी जताया था! फिर राहुल गांधी से ही इस तरह के बयान की उम्मीद क्यों करें कि 1984 के सिख विरोधी दंगे कांग्रेस ने करवाए थे!
तकनीकी तौर पर न कांग्रेस ने 1984 में और न भाजपा ने 2002 में दंगों का आह्वान किया था, लेकिन लोकतांत्रिक भारत के माथे पर अमिट दाग बन चुके इन दोनों दंगों में शामिल लोगों के बारे में प्राय: सबको पता है।
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