क्या नीतीश छोड़ेंगे भाजपा का साथ, हवा में तैर रहा सवाल

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यह दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगेः अमित शाह का स्वागत करते नीतीश कुमार (फाइल फोटो)
यह दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगेः अमित शाह का स्वागत करते नीतीश कुमार (फाइल फोटो)

बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में क्या 2015 की पुनरावृत्ति होगी?

पटना। क्या नीतीश छोड़ेंगे भाजपा का साथ, हवा में तैर रहा सवाल। बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में क्या 2015 की पुनरावृत्ति होगी? यह सवाल इन दिनों चर्चा का विषय है। इस कयासबाजी को कई कारणों से हवा मिल रही है। बीजेपी-जेडीयू गठबंधन की मौजूदा राज्य सरकार से खार काने वाली पार्टी आरजेडी ने इसमें लहक पैदा कर दी है।

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नरेंद्र मोदी व नीतीश कुमार (फाइल फोटो)
नरेंद्र मोदी व नीतीश कुमार (फाइल फोटो)

आरजेडी के नेता इन दिनों नीतीश कुमार के खिलाफ विष वमन करने से परहेज कर रहे हैं। राबड़ी देवी को नीतीश के साथ आने से कोई परहेज नहीं। रघुवंश प्रसाद सिंह पहले से ही कह रहे हैं कि नीतीश को आरजेडी के साथ आ जाना चाहिए। तेजस्वी यादव तो लोकसभा चुनाव के बाद ऐसे लापता हुए कि विधानसभा के मौजूदा सत्र में भी उन्होंने दर्शन नहीं दिये। इस बीच बाढ़ क्षेत्रों का दौरा करने के क्रम में नीतीश कुमार आरजेडी के कद्दावर नेता सिद्दीकी साहब के यहां चाय पी आये। इन सारे घटनाक्रम राजनीतिक विश्लेषकों की नजर में आरजेडी और जेडीयू के प्रति बढ़ रही घनिष्ठता के परिचायक हैं।

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केंद्र में मोदी-02 की सरकार में जब एक मंत्री पद देकर सांकेतिक प्रतिनिधित्व का प्रस्ताव नीतीश कुमार के सामने आया तो बहैसियत जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष उन्होंने ठुकरा दिया। भवष्यि में भी केंद्रीय मंत्रिमंडल में जदयू की भागीदारी को उन्होंने ने सिरे से खारिज कर दिया। इतना ही नहीं, केंद्रीय मंत्रिमंडल के दो दिन बाद ही नीतीश ने अपने मंत्रिमंडल का विस्तार तो किया, पर भाजपा को इससे अलग रखा। सिर्फ जेडीयू के लोग ही मंत्री बनाये गये। यानी जैसे को तैसा का सलूक नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ किया।

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विधानसभा के 2015 के चुनाव में लालू-नीतीश की जोड़ीः अब छत्तीस के आंकड़े (फाइल फोटो)
विधानसभा के 2015 के चुनाव में लालू-नीतीश की जोड़ीः अब छत्तीस के आंकड़े (फाइल फोटो)

कयास यह लगाये जाने लगे हैं कि 2020 में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में जेडीयू और भाजपा की राह जुदा हो सकती है। वैसे सदस्यता अभियान की घर-घर पहुंचने की जो रणनीति भाजपा ने बनायी है, उसमें वाकई जेडीयू के लिए कोई स्थान नहीं दिखता। ऐसा लग रहा है कि भाजपा स्वतंत्र चुनाव की तैयारी में जुटी है।

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बहरहाल भाजपा और जेडीयू की बढ़ती दूरियों और आरजेडी के नीतीश कुमार के प्रति साफ्ट कार्नर ने कयासबाजी के लिए पर्याप्त गुंजाइश बना दी है। इसका प्रतिकूल असर देखते हुए बजट पर बहस के दौरान भाजपा की अग्रणी पंक्ति के नेता और बिहार सरकार में उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी को बेमौसम बरसात की तरह यह घोषणा करनी पड़ी कि अगला विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए लड़ेगा। संकेत साफ था कि भाजपा अब भी नीतीश को अपना नेता मानती है और आगे भी मानती रहेगी।

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दरअसल कर्नाटक में जिस तरह भाजपा ने कांग्रेस-जेडीएस की सरकार को गिराने में कामयाबी पायी है, उससे एक संकेत मिला है कि गैर भाजपा राज्य सरकारें उसके निशाने पर हैं। कहा तो यहां तक जा रही है कि कर्नाटक के बाद अब मध्य प्रदेश की बारी है। लोकसभा चुनाव प्रचार के क्रम में बंगाल के बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह संकेत दिया था कि बंगाल के 40 विधायक भाजपा के संपर्क में हैं। यानी भाजपा के निशाने पर बंगाल भी है। बंगाल की जिस मौजूदा सरकार को साफ करने का भाजपा ने बीड़ा उठाया है, उस, सरकार को अगले विधानसभा चुनाव में वैतरणी पार करने के लिए नीतीश की पार्टी जेडीयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर सलाहकार बन कर मदद कर रहे हैं। नीतीश से भाजपा की खटपट की अटकलों का एक कारण यह भी हो सकता है।

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बिहार की नीतीश सरकार को भी भाजपा निशाने पर ले सकती है, इसी को ध्यान में रख कर राजनीतिक बिसात बिछनी शुरू हो गयी है। भाजपा का साथ लोजपा नेता रामविलास पासवान छोड़ने की स्थिति में नहीं हैं। यानी संभावना यह बन रही है कि हालात बिगड़े तो राजद, जदयू और कांग्रेस एक तरफ हो सकते हैं तो दूसरी तरफ भाजपा और लोजपा। वैसे राजनीति में दोस्ती-दुश्मनी स्थायी नहीं होती। अभी 2020 के चुनाव में कुछ वक्त बचा है, लेकिन एक बात साफ है कि दिसंबर के पहले स्थिति बिल्कुल साफ हो जायेगी।

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