कोशी त्रासदी के 10 वर्ष बाद भी पुनर्वास के लिए होती रही मगजमारी

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पटना। कोशी त्रासदी (2008) की तबाही व हृदय विदारक मंजर के गुजरे 10 वर्ष पूरे हो गये। 18 अगस्त 2008 को कोशी नदी, अपने पूर्वी तटबंध को देश की सीमा से 8 किमी नेपाल के कुसहां नामक स्थान पर तोड़कर बहाते हुए कोशी वासियों पर कहर बन कर  टूट पड़ी थी। 15 से 20 किमी की चौड़ाई में नेपाल के बाद बिहार के सुपौल, अररिया, पुर्णिया, मधेपुरा व सहरसा इत्यादि जिलों के पचासों लाख लोगों पर कहर बरपाते व प्रलय मचाते हुए नदी की धारा लगभग 150 किमी विध्वंश के बाद कुरसैला में जाकर मिली। उस समय नदी में मात्र 166000 क्युबिक प्रति सेकेण्ड की रफ्तार से पानी का बहाव था। इसकी तबाही को देखते हुए इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित किया गया। तत्कालीन केन्द्रीय सरकार और देश दुनिया की अनेक दाता एजेंसियों, दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्रियों इत्यादि ने राहत कार्य के लिए राशि दी थी।

उसके बाद पुनर्वास और पुनर्निर्माण कार्यों के लिए कोशी फ्लड रिकवरी प्रोजेक्ट नाम से 220 मिलियन अमेरिकी डालर का विश्व बैंक से लोन बिहार सरकार ने लिया। कोशी बेसिन डेवलपमेंट प्रोजेक्ट नाम से 250 मिलियन अमेरिकी डालर का लोन आया है। इन दो बार के विश्व बैंक से कर्ज के बावजूद आज भी कोशी वासियों का दर्द कम नहीं हुआ है। सरकार की अपनी रिपोर्ट ही कहती है कि 236632 घर इस आपदा में ध्वस्त हुए, परन्तु आज तक 62000 लगभग घर ही बन पाये हैं और उस योजना को रोक दिया गया। चाहे पुनर्वास में बनने वाले घर हों या योजनाएं, पुनर्वास कार्य सरकारी उदासीनता और अफसरशाही की भेंट चढ़ गयी हैं।

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इस त्रासदी की जांच के लिए बने जांच आयोग की रपट पर किसी को दंडित भी नहीं किया गया है। पिछले वर्ष आयी बाढ़ ने सरकार के बाढ़ के खतरों को कम करने और दीर्घकालीन योजना बनाने की पोल खोल दी है। पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील कोशी अंचल में आपदाओं का अनेक बार सामना करते किसानों को आज भी न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिल पाता है, न कोशी क्षेत्र में नगदी फसल के रूप में मक्के के क्रय की ही कोई सरकारी व्यवस्था हो पायी है। पलायन तो बदस्तूर है। पलायन करने वाले लोगों की योजनाएं आज भी धरातल पर नही उतरी हैं। ठेकेदारी पर कुछ निर्माण कार्य जरुर हुए हैं। बीरपुर में भव्य भवन बना है। अफसरशाही और बड़े ठेकेदारों के चश्मे से देखते हुए राज्य के मुखिया ने दावा किया है कि पहले से बेहतर कोशी हमने बना दिया है।

एक दशक बाद इस राष्ट्रीय आपदा के बाद हुए कार्यों और मुख्यमंत्री की घोषणाओं की जमीनी सच्चाई की पड़ताल करना बेहद जरूरी है। कोशी नव निर्माण मंच द्वारा इसकी पड़ताल की कोशिश की गयी है।

तबाही के सरकरी आकड़े

बिहार सरकार विश्व बैंक व जी.एफ.डी.आर.आर. ने कोशी बाढ़ आवश्यकता आकलन रिर्पोट (Koshi Flood Needs Assesment Repoort) के अनुसार इस त्रासदी में नेपाल व भारत 3700 वर्ग किमी क्षेत्र प्रभावित हुआ। बिहार में 412 पंचायतों के 993 गांव इसकी चपेट में आये। 362 राहत शिविरों में 440000 लोगों ने शरण लिया। इस त्रासदी में 236632 घर ध्वस्त हुए। 1100 पुल एवं क्लवर्ट टूटे व 1800 किमी रोड क्षतिग्रस्त हुए। 38000 एकड़ धान की, 15500 एकड़ मक्के की, 6950 एकड़ अन्य फसलें बर्बाद हुईं। 10000 दुधारू पशु, 3000 अन्य पशु व 2500 छोटे जानवरों की मृत्यु हुई। इसमें 493 लोगों की मृत्यु हुई और 3500 लोग लापता पाये गये। 4828 वर्ग किलोमीटर उपजाऊ खेतों में बालू भर गया। यह तो सरकारी आंकड़ा है। असल क्षति इन आकड़ों से कई गुना ज्यादा है।

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सरकार के योजना एवं विकास विभाग के संकल्प पत्र सं. 3720 दिनांक 19-11-2008 के तहत पुनर्वास की नीति निरूपित करते हुए पुर्नवास एवं पुनर्निमाण की व्यापक योजना बनायी गयी। उस योजना के अनुसार पुनर्वास के घरों को 31 जनवरी 2010 से शुरू कर छह-छह माह के चार चरणों में 31 दिसम्बर 2011 तक पूरा करने का समय रखा गया। कोशी आपदा आकलन रिपोर्ट के अनुसार सरकार की उन ध्वस्त हुए 236632 घरों में से 157428 घर बनाने की योजना बनी। हालांकि पहली योजना के समय ही 79204 लोगों को पुनर्वास से वंचित कर दिया गया। इतना ही नहीं, नगर निकायों को भी बाहर कर दिया गया। नगर निकायों को भी बाहर कर दिया गया। कोशी की भयावह त्रासदी झेलने वाली बीरपुर, मुरलीगंज, मधेपुरा इत्यादि नगर निकायों को पुनर्वास से बाहर कर दिया गया।

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केंद्र सरकार ने राहत के लिए तो राशि दी, परन्तु राज्य सरकार से पुनर्वास की बनी योजना पर तकरार शुरू हो गया। केन्द्र सरकार ने इस राष्ट्रीय आपदा के पुनर्वास का पैसा नहीं दिया। दूसरी तरफ बिहार सरकार ने विश्व बैंक से कर्ज लेकर पुनर्वास कार्य शुरू किया।

(रिपोर्ट कोशी नव निर्माण मंच की तरफ से महेंद्र यादव और संदीप। फाइल फोटो– अजय कुमार)

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