अनंतराम त्रिपाठी का निधन, हिंदी के प्रचार के लिए समर्पित रहे

0
368
हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित जीवन रहा है अनंतराम त्रिपाठी का। आज प्रातः साढ़े चार बजे निधन हो गया।
हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित जीवन रहा है अनंतराम त्रिपाठी का। आज प्रातः साढ़े चार बजे निधन हो गया।
  • कृपाशंकर चौबे
कृपाशंकर चौबे
कृपाशंकर चौबे

अनंतराम त्रिपाठी का निधन हो गया। हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित जीवन रहा है अनंतराम त्रिपाठी का। आज प्रातः साढ़े चार बजे निधन हो गया। हिन्दी के लिए अपूरणीय क्षति है। राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के वे प्रधानमंत्री थे। वे 1951 से ही हिन्दी के प्रचार-प्रसार में सक्रिय योगदान कर रहे थे। 7 जनवरी, 1933 को उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले के पचराँव गाँव में जन्मे अनंतराम त्रिपाठी की स्कूली शिक्षा मिर्जापुर में हुई और उसके बाद उच्च शिक्षा के लिए वे बंबई चले गए। तब से महाराष्ट्र ही उनकी कर्मभूमि रही। अनंतराम त्रिपाठी ने बम्बई के सेण्ट जेवियर्स कॉलेज से बी.ए. (ऑनर्स) और हिंदी में एम.ए. किया और उसके बाद उसी कालेज के हिंदी विभाग में वे दो साल तक फेलो रहे।

अनंतराम त्रिपाठी 15 जून, 1961 से 31 जनवरी, 1993 तक विद्याविहार, बम्बई स्थित के. जे. सोमैया आर्ट्स एण्ड कॉमर्स कॉलेज के हिन्दी विभाग में प्राध्यापक रहे। साथ ही 22 वर्ष तक बम्बई विश्वविद्यालय में उन्होंने स्नातकोत्तर कक्षाओं में अध्यापन किया। 31 जनवरी, 1993 को हिन्दी विभाग के अध्यक्ष पद से वे सेवा-निवृत्त हुए। कॉलेज से सेवानिवृत्ति के बाद अपना शेष जीवन पूरी तरह राष्ट्रभाषा प्रचार समिति को अर्पित कर दिया। पहली फरवरी, 1993 को वे राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा में विदेश एवं सहायक मंत्री बने। 1 अक्टूबर, 1994 से परीक्षा की अतिरिक्त जिम्मेदारी भी उन्हें दी गई। 14 जुलाई, 1997 से मत्युपर्यंत वे राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के प्रधानमंत्री रहे। उन्होंने पचीस मूल्यवान किताबों का संपादन किया। राष्ट्रभाषा पत्रिका के 1997 से ही प्रधान संपादक थे।

- Advertisement -

राष्ट्रभाषा प्रचार समिति,  वर्धाके तत्वावधान में राष्ट्रभाषा के प्रचार कार्य को गति देने तथा प्रचारकों से निरंतर संपर्क बनाए रखने के लिए राष्ट्रभाषा पत्रिका 1943 से ही नियमित निकल रही है। देश की सुप्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं में अनंतराम त्रिपाठी के अनेक लेख प्रकाशित होकर समादृत हुए हैं। दूरदर्शन तथा आकाशवाणी से भी उनकी अनेक वार्ताएँ प्रसारित हुई हैं।

राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा को आगे ले जाने में प्रो. अनंतराम त्रिपाठी सफल हुए तो इसलिए कि संस्थाओं में काम करने का उन्हें व्यापक और सुदीर्घ अनुभव था। संस्थाओं की जिम्मेदारी वे छात्र जीवन से ही निभाने लगे थे। अनंतराम त्रिपाठी एम.ए. की पढ़ाई करते हुए बम्बई हिन्दी विद्यार्थी मंडल (हिन्दी विद्यार्थियों की प्रतिनिधि संस्था) के दो वर्षों तक सभापति रहे। वे साहित्यिक संघ, बम्बई के संस्थापक मंत्री, विजय मित्र मंडल, बम्बई के संयुक्त सचिव एवं अंतरविद्यालयीन हिन्दी एकांकी नाट्य स्पर्धाओं के कई वर्षों तक संयोजक भी रहे। वे प्रेमचन्द जन्मशताब्दी समारोह समिति, बम्बई के मंत्री रहे तो नगर हिन्दी सप्ताह समिति, बम्बई के दस वर्षों तक मंत्री भी रहे।

बम्बई स्थित गिरिवनवासी प्रगति मंडल के विभिन्न प्रकल्पों- नेत्ररोग, स्त्रीरोग तथा अन्य बीमारियों के निदान एवं उपचार शिविरों में भी उन्होंने सक्रियतापूर्वक हिस्सा लिया। वे सोमैया कॉलेज, बम्बई में राष्ट्रीय सेवा योजना के 10 वर्षों तक प्रभारी रहे। म्युनिसिपल स्कूल, अस्पताल, झोपड पट्टी तथा ठाणे जिले के दूरदराज के आदिवासी गाँवों में अनंतराम त्रिपाठी ने सेवा-कार्य किया। नेरल (महाराष्ट्र) के पास आनंदवाडी में आदिवासी बच्चों की पढ़ाई में उन्होंने सहयोग किया। सोमैया कॉलेज, बम्बई के कल्चरल कोरमां के पन्द्रह वर्षों तक वे अध्यक्ष रहे।

1963 में सैनिक प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद सोमैया कॉलेज में एन.सी.सी. कमीशण्ड ऑफिसर के रूप में उन्होंने कार्य किया। विजय हिन्दी महाविद्यालय, बम्बई में जनवरी, 1951 से परिचय, कोविद आदि कक्षाओं में अध्यापन के बाद राष्ट्रभाषा रत्न, साहित्य रत्न, जूनियर हिन्दी शिक्षक सनद तथा सीनियर हिन्दी शिक्षक सनद की हिन्दी कक्षाओं में अनंतराम त्रिपाठी ने नि:शुल्क हिन्दी अध्यापन किया।

अनंतराम त्रिपाठी राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा की परीक्षा समिति, शिक्षा उपसमिति के सदस्य और चालीस शिविरों के संयोजक भी रहे। वे राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के हीरक जयन्ती समारोह के महासचिव, राष्ट्रभाषा प्रचार समिति की सभी प्रान्तीय समितियों की कार्य समितियों के पदेन सदस्य, अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग के राष्ट्रभाषा प्रचार मंत्री, अखिल भारतीय हिन्दी संस्था संघ, दिल्ली की कार्यसमिति के सदस्य भी रहे। वे भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों की हिंदी सलाहकार समितियों में सदस्य भी रहे। त्रिपाठी जी महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा की कार्य परिषद और महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी के सदस्य भी रहे।

यह भी पढ़ेंः हिन्दी की चिन्दी करने पर कटिबद्ध सांसद(Opens in a new browser tab)

अनंतराम त्रिपाठी ने विश्व हिन्दी सम्मेलनों में भी भाग लिया। लंदन में आयोजित छठे विश्व हिन्दी सम्मेलन में अन्तरराष्ट्रीय भाषा के रूप में हिन्दी विषय पर उन्होंने व्याख्यान दिया तो न्यूयार्क स्थित संयुक्त राष्ट्र सभागार में आठवें विश्व हिन्दी सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी विषय पर उन्होंने बीज वक्तव्य दिया। नागर विमानन मंत्रालय द्वारा आयोजित क्वालालंपुर (मलेशिया) की सद्भावना यात्रा में उन्होंने हिस्सा लिया तो जोहान्सबर्ग (दक्षिण अफ्रीका) में नौवें विश्व हिन्दी सम्मेलन में संगोष्ठी में भी उनकी भागीदारी रही। हिंदीतर क्षेत्र में हिंदी की पहुंच बनाने के लिए अपना पूरा जीवन लगानेवाले अनंतराम त्रिपाठी को विनम्र श्रद्धांजलि।

यह भी पढ़ेंः हिन्दी के लिए लड़ने वाला सबसे बड़ा योद्धा : महात्मा गाँधी(Opens in a new browser tab)

- Advertisement -