युवराज क्रिकेट के मैदान से विदा हुए, मगर दिल से नहीं 

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युवराज सिंह
युवराज सिंह
  • वीर विनोद छाबड़ा 

युवराज क्रिकेट के मैदान से विदा हुए, मगर दिल से नहीं। इंटरनेशनल क्रिकेट को 37 वर्षीय युवराज सिंह का विदा कहना कोई हैरतअंगेज घटना नहीं है। इंडियन टीम के किसी भी फॉर्मेट के लिए उनका पिछले दो साल से चयन नहीं हुआ था। अब बस विदा कहने की देर थी, जिसे उन्होंने इस आशा में लंबित रखा कि क्रिकेट बोर्ड उन्हें ‘विदाई’ इंटरनेशनल मैच बतौर गिफ्ट करेगा। मगर बोर्ड ने उनके प्रति दरियादिली का कोई संकेत नहीं दिया। हैरानी तो टाइमिंग को लेकर हुई है। सवाल ये है कि वर्ल्ड कप के दौरान उन्हें विदा कहने की क्यों ज़रूरत महसूस हुई? इसकी वजह शायद ये है कि ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध ही उनका इंटरनेशनल डेब्यू हुआ था, जिसमें इंडिया जीता था और कल भी वर्ल्ड कप में इंडिया ने ऑस्ट्रेलिया को हराया। और जब-जब इंडिया ने वर्ल्ड कप में ऑस्ट्रेलिया को हराया है, इंडिया सेमी-फाइनल में जरूर पहुंचा है। युवी ने इस नज़रिये से भी शायद अपना रिटायरमेंट देखा।

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12 दिसंबर 1981 को जन्मे युवराज सिंह उर्फ़ युवी का जीवन बहुत उलट-फेर वाला रहा है। फास्ट बॉलर और अभिनेता रहे पिता और मां शबनम में कभी पटरी नहीं खाई। ऐसे तनावग्रस्त माहौल में युवी के बाल मन पर क्या गुज़री होगी, आसानी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है। दोनों में तलाक हुआ तो युवी मां के पास ही रह कर पले-बढ़े। वो टेनिस और स्केटिंग में रुचि रखते थे। मगर एक दिन पिता उन पर गुस्सा हुए और हाथ में बैट पकड़ा दिया। युवी पिता का सपना पूरा करने की राह पर चल पड़े। 2000 में आईसीसी की नॉक आउट ट्रॉफी केन्या में आयोजित हुई, जिसमें उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध डेब्यू मैच में ग्लेन मैक्ग्राथ, ब्रेट ली और जेसन गिलेप्सी जैसे खतरनाक तेज गेंदबाज़ों के विरुद्ध 80 गेंद पर 84 रन बनाये और एक शानदार कैच लिया और एक मुश्किल रन आउट भी किया। उनकी इस हैरतअंगेज़ आल राउंड परफॉरमेंस के आधार पर उन्हें मैन ऑफ़ दि मैच घोषित किया गया। इंडिया को एक नया स्टार मिला और वो भी लेफ्ट हैंडर। वो लेफ्ट हैंड ऑर्थोडॉक्स बॉलर भी हैं।

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मगर इस बढ़िया शुरुआत के बाद युवी लगातार अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाए, वो टीम में आते-जाते रहे। इस बीच उन्होंने कई नायाब परफॉरमेंस दीं। 2002 के नेटवेस्ट ट्रॉफी फ़ाइनल में उनके योगदान को कोई नहीं भूल सकता। इंग्लैंड ने 325 रन का टारगेट दिया जिसके जवाब में एक समय इंडिया का स्कोर था 5 विकेट पर 146 रन। हार निश्चित थी। तब युवी (69) ने मोहम्मद कैफ़ (87 नॉटआउट) के साथ छटे विकेट के लिए 121 की साझेदारी करके टीम को ऐतिहासिक जीत की राह पर डाला। ये ओडीआई में उस समय सबसे बड़ी सफल रन चेज़ थी। पाकिस्तान में 2006 की ओडीआई सीरीज़ के लिए उन्हें प्लेयर ऑफ़ दि टूर्नामेंट चुना गया। पाकिस्तान के विरुद्ध 2007 के बंगलौर टेस्ट में सचिन तेंदुलकर के ज़ख़्मी होने के कारण युवी को मौका मिला। जब युवी क्रीज़ पर आये तो इंडिया का स्कोर 4 विकेट पर 61 रन था। तब युवी (169) ने सौरव गांगुली (239) के साथ पांचवें विकेट के लिए 300 रन जोड़े थे। इंग्लैंड के विरुद्ध 2008 के चेन्नई टेस्ट में 386 रन के टारगेट को युवी (85 नॉटआउट) और सचिन (103 नॉटआउट) ने चेज़ करने हुए पांचवें विकेट के लिए 163 रन जोड़े। उस समय टेस्ट क्रिकेट में ये चौथी सफल रन चेज़ थी।

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2007 में साउथ अफ्रीका में आयोजित पहले 20-ट्वेंटी वर्ल्ड कप में युवी ने इंग्लैंड के स्टुअर्ट ब्रॉड की छह गेंदों पर छह छक्के का वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया। वो यहीं नहीं रुके। उसी मैच में उन्होंने 12 गेंदों पर फास्टेस्ट फिफ्टी का रिकॉर्ड भी बनाया जो आज तक कायम है। वर्ल्ड कप 2011 इंडिया न उठा पाती अगर युवी का उसमें आलराउंड योगदान न होता। उन्होंने 362 रन बनाने के साथ-साथ 15 विकेट भी चटकाए। आयरलैंड के विरुद्ध उन्होंने 5 विकेट लेने के साथ साथ 50 रन बनाने का कारनामा भी अंजाम दिया। उन्हें प्लेयर ऑफ़ टूर्नामेंट चुना गया। लेकिन दुर्भाग्य ने युवी का पीछा न छोड़ा। उनके बाएं फेफड़े में कैंसर ट्यूमर का पता चला। लेकिन युवी टूटे नहीं। पूरा देश उनके पीछे खड़ा हो गया, शीघ्र स्वस्थ होने की कामना की। और अंततः उन्होंने कैंसर से जंग जीत ली और सितंबर 2012 में वो फिर मैदान में डट गए। हालांकि पहले जैसी चमक उनमें दोबारा नहीं दिखी, लेकिन उनके जोश और जुझारूपन में कभी कमी न रही। यही वज़ह रही कि 2015 के आईपीएल में वो सबसे महंगे खिलाड़ी रहे, 16 करोड़। और ये रिकॉर्ड आज भी बरक़रार है।

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युवी ने 40 टेस्ट में 1900 रन और 304 ओडीआई में 8701 रन बनाये हैं। अलावा इसके 20-ट्वेंटी के 58 मैचों में 1117 रन बनाये। लेकिन ये आंकड़े उनकी योग्यता के साथ इंसाफ़ नहीं करते हैं। और ये भी ठीक है कि वो अभूतपूर्व खिलाड़ी नहीं रहे लेकिन उनकी मैदान पर मौजूदगी टोटल रही। वो मैच के हर पल में शामिल दिखे, पूरी लगन के साथ, चाहे उन्होंने रन भले कम बनाये या विकेट नहीं लिए। मेरे विचार से युवी खुद अपनी योग्यता को पहचान नहीं पाए। और अगर वो केवल बैटिंग पर एकाग्रचित हुए होते तो उनके भीतर का खिलाड़ी ज़्यादा बेहतर तरीके से सामने आया होता।

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भारत सरकार ने उनकी खेल के प्रति आराधना के मद्देनज़र उन्हें 2012 में अर्जुन अवार्ड से और 2014 में पद्मश्री से विभूषित किया। ये भी उल्लेखनीय है कि युवी ने बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट दो पंजाबी फ़िल्में भी की हैं, मेहंदी सगना दी और पुत्तर सरदारा। युवी कैंसर पीड़ितों की मदद करते रहे हैं और पूर्ण आशा है क्रिकेट से विदाई के बाद भी वो इसी सत्कर्म में लगे रहेंगे। युवी की शादी ब्रिटिश-मारीशस मॉडल हेज़ेल कीच से हुई है, जिन्हें गुरुबसंत कौर के नाम से भी जाना जाता है। हेज़ल ने इंस्टाग्राम में लिखा है, मुझे अपने पति के रिटायरमेंट पर गर्व है। उन्होंने अपना जीवन पूर्ण समर्पण की भावना से खेल को समर्पित किया है। एक युग का अंत हुआ। खेल के मैदान से उनका नाता भले टूट गया हो लेकिन करोड़ों के दिल में रहेंगे।

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