एम.ओ. मथाई की नेहरू पर लिखी पुस्तक से हटेगा प्रतिबंध?

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सुरेंद्र किशोर
सुरेंद्र किशोर

एम.ओ. मथाई की जवाहर लाल नेहरू पर लिखी पुस्तक से क्या प्रतिबंध हटेगा? इसकी संभावना दैनिक भास्कर के स्तंभकार डा. भरत अग्रवाल के स्तंभ में जतायी गयी है। माना जाता है कि मथाई की प्रतिबंधित पुस्तक में नेहरू के बारे में कई ऐसी सनसनीखेज जानकारियां हैं, जिसे जानने-पढ़ने के बाद कई ऐसी बातें उजागर हो जाएंगी, जो आम पाठक की नजरों से अब तक ओझल रही हैं। इस पर वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर ने अपने फेसबुक वाल पर एक टिप्पणी लिखी है, जिसे हम हूबहू दे रहे हैंः

  • सुरेंद्र किशोर

आज के दैनिक भास्कर में मैं अपने पसंदीदा स्तम्भकार डा. भारत अग्रवाल का कालम पढ़ रहा था। उन्होंने अटकलों के आधार पर यह सनसनीखेज जानकारी दी है कि एम.ओ. मथाई की जवाहरलाल नेहरू पर लिखी पुस्तक पर से प्रतिबंध जल्द ही हटा लिया जाएगा। मेरी समझ से यदि मोदी सरकार ने ऐसा करने की हिम्मत की तो वह व्यापक देशहित में ही होगा। भले वह परिवार, दल और कतिपय ‘भक्त’ बुद्धिजीवियों के खिलाफ जाए।

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मैंने मथाई की दोनों किताबें छिटपुट पढ़ी हैं। मैं यह कहता रहा हूं कि यदि किसी को जानना हो कि आजादी के बाद देश को कैसे गलत रास्ते पर ले जाया गया तो वह मथाई की दोनों किताबें पढ़े। यदि इसी तरह बिहार की  राजपाट शैली की  असली कहानी जाननी हो तो अय्यर कमीशन की रपट-1970- पढ़े। संभवतः यह रपट पटना के गुलजारबाग स्थित सरकारी प्रेस में बिक्री के लिए अब भी उपलब्ध हो।

मथाई ने नेहरू, उनकी सरकार व उनके समकालीनों की   कमियां लिखी हैं तो अच्छाइयां भी। यानी, यह धारणा गलत है कि सिर्फ बुराइयां ही लिखी हैं। मथाई ने एक जगह तो यह भी लिखा है कि नेहरू की आलोचना करने की हैसियत जार्ज फर्नांडिस में कत्तई नहीं। जार्ज तो नेहरू के जूते का फीता बांधने लायक योग्यता भी नहीं रखता।

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खैर, हमारे देश में तो यह सिखाया गया है कि महाराणा प्रताप की अच्छाइयां- वीरता मत पढ़ो। हां, अकबर की महानता जरूर पढ़ो। इसीलिए आज यदि आप महाराणा के शौर्य-स्वाभिमान  की चर्चा  करते हुए कोई पोस्ट लिखेंगे तो दस-बीस लाइक मुश्किल से ही मिल पाएंगे। हां, अकबर पर अधिक मिल सकते हैं।

एक नहीं, दो अप्रकाशित अध्याय 

अब तक आपने सुना होगा कि मथाई की किताब में ‘सी’ यानी वह चैप्टर शामिल नहीं किया गया। पर यह आधा सच है। मथाई ने एक और चैप्टर शामिल नहीं किया। मथाई ने लिखा कि पात्र के जीवनकाल में ये नहीं छपेंगे। दूसरे चैप्टर का शीर्षक था- एक फिल्म की कहानी।’ मथाई के अनुसार ‘‘इसमें बहुत सनसनीखेज मसाला था।

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राष्ट्रपति भवन के द्वारिका कक्ष में 1966 में एक दिन तीसरे पहर के समय क्या हुआ, यह उस फिल्म में दिखाया गया है। फिल्म में जिस व्यक्ति की करतूत दिखाई गई है,उसे अपने भाग्य को सराहना चाहिए कि फिल्म मेरे हाथ लग गई है और सुरक्षित है।’’

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मेरा मानना है कि इन अध्यायों को छोड़कर भी यदि मथाई की किताबों को फिर से प्रकाशित करने  की अनुमति मिल जाए तो भी कुछ लोग उसे एक बार फिर प्रतिबंधित कर देने की कोर्ट से मांग कर सकते हैं। क्योंकि उनमें भी सनसनीखेज सामग्री भरी पड़ी है। देखना है कि डा. अग्रवाल की अटकल अंततः सही साबित होती है या नहीं।

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किसी ने ठीक ही कहा है कि ‘‘जो लोग अपने भूतकाल को याद नहीं रखते, वे उसे दुहराने को अभिशप्त होते हैं।’’ पर हमारे देश की समस्या यह है कि इतिहास लिखते समय उसमें अपनी राजनीतिक सुविधा के अनुसार भारी छेड़छाड़ कर दी जाती है। मथाई की आंखों देखे-भोगे ‘इतिहास’ को तो प्रतिबंधित ही कर दिया गया। याद रहे कि मथाई 1946 से 1959 तक प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू के विशेष सहायक रहे।

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