रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून यानी झारखंड का पलामू

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पलामू में सूखे के हालात
पलामू में सूखे के हालात
  • अरविंद अविनाश

‘रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून” यानी पलामू! पलामू में पानी के लिए मची अफरातफरी पर चुनाव में कहीं कोई चर्चा नहीं है। आज इसकी ज्यादा जरूरत है। आज इज्जत और पीने के पानी दोनों खतरे‌ में हैं। कुछ इलाके तो ज्यादा परेशानी झेल रहे ‌हैं। अभी जो इसकी जद में नहीं आये हैं, वे भी इस खतरे के मुहाने पर खड़े हैं।

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पलामू तो इसके लिए जाना पहचाना नाम है। सिंचाई की सुविधा की बात हो या कि पीने के पानी का सवाल, एक जैसी हालत है। लेकिन दिखावे के लिए भी चुनावी मौसम में कहीं इसकी चर्चा नहीं है। पलामू के गांवों में पीने के पानी के लिए हर साल हाहाकार मचता है। बगल के गांव से ढोकर लोग काम चलाते हैं। डालडा का डब्बा और साइकिल सहारा बनते हैं। जिनके यहां कोई पुरुष या घर में लड़का नहीं तो आफ़त है भाई!

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मेरे बगल का गांव, जहां से पानी आता है, दलितों का है। चलिए, इतना होता है कि लोगों का पानी छुआता नहीं। इसी गांव में उनके आते ही पानी छूने से पीने लायक नहीं रहता। हालांकि गांव के दोनों ओर नदी है। एक तरफ अमानत, दूसरी ओर कुंदरहिया। पहले ऐसा नहीं था। कुंआ जरूर कम थे, पर पानी था। नहाने-धोने के साथ मवेशियों के लिए नदी कायम थी। लेकिन विकास की आंधी आई और नदी-कुंआ दोनों सूख गए।

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पिता जी ने अपने व दूसरों  के भी कुएं कर्ज लेकर खुदवाये, ताकि बाल-बच्चों को पानी की दिक्कत न हो। लेकिन उनका सोचा किसी काम न आया। इसके लिए कुछ सरकारी नीतियां जिम्मेवार रहीं तो कुछ गांव के स्वार्थी तत्व कारण बने। बगल के गांव में भूमिगत जल कम गहराई में उपलब्ध था। पानी की उपलब्धता देख कर वहां लोगों ने मकान बनवा लिये। 20 साल भी पूरे नहीं हुए कि वहां के चापा नलों ने भी जवाब दे दिए। अपने यहां तो पहले से ही सुखाड़ था। उस गांव में चलने वाले  मोटर पम्प भी बंद होने को हैं।

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पानी हर साल 20 मीटर नीचे जा रहा है। नदी, आहर जो पानी के सतह को मेंटेन रखते थे, बदहाल हो गए हैं। हर आहर पर मोरम की सड़क बन गई है। बनाने वाले गांव के ही बेरोजगार युवा हैं। यही प्रखंड से, मुखिया से, विधायक से और सांसद से प्रयास कर सड़क बनवाते हैं और सदा के लिए पानी के स्रोत को समाप्त करते हैं। यही चुनाव में उनके साथ घूमते हैं, इस उम्मीद में कि कुछ शाय़द मिल जाए, जीतने के बाद।

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डोभा बना बीच टांड़ में, जहां पानी का ठहराव नहीं। बारिश आधी हो गई। कहां पहले 1200 से 1400 मिली लीटर बारिश होती थी, आज 400 पर आ गई है। इसे भी रोकने का कोई उपाय नहीं। विधायक चुनाव के समय ओहो-ओहो कह कर डीप बोरिंग की बात कहते हैं, वह भी तब, जब कोई बूढ़ा पानी की बात छेड़ दे। संसदीय चुनाव में तो पानी की बात बोलना महंगा पड़ जाएगा। देश की सुरक्षा, धर्म पर खतरा, देशी-विदेशी नेता जैसे कई मुद्दे हावी जो हैं। हिम्मत कर कोई बोल भी देगा तो मंडल डैम नहीं तो सोन नदी से व्यवस्था की बात कह दी जाएगी।

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