पटना। राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) के नेता उपेंद्र कुशवाहा के तेवर अभी और तल्ख हो गये हैं। इसके संकेत एनडीए के लिए अच्छे नहीं दिख रहे हैं। उनके निशाने पर जदयू के नीतीश कुमार का होना तो स्वाभाविक है, लेकिन उन्होंने अब लपेटे में राम विलास पासवान को भी ले लिया है। उनके तेवर से अब यह बात साफ हो गयी है कि एनडीए से तलाक की महज औपचारिकता भर बाकी रह गया है। वे अलग होने के लिए पक्का मन बना चुके हैं।
समस्तीपुर में रालोसपा द्वारा शनिवार को आयोजित दलित-पिछड़ा सम्मेलन में उपेंद्र कुशवाहा रामविलास पासवान का नाम लेकर उन्हें यह साबित करने की कोशिश कर रहे थे कि वह भले अपने को दलित नेता कहें, लेकिन दलितों के सरोकार से उनका कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने यहां तक कह दिया कि रामविलास पासवान को घर देखिए और दूसरे दलितों का घर देखिए, फर्क पता चल जायेगा कि पासवान दलितों के हितैषी हैं या खुद के।
नीतीश के बारे में उन्होंने नाम लिये बगैर इशारों-इशारों में सब कुछ कह दिया। बची कसर सांसद—- ने पूरी कर दी। सांसद महोदय ने कहा कि नीतीश कुमार से बेहतर मुख्यमंत्री हो सकते हैं उपेंद्र कुशवाहा। हल्ला बोल, दरवाजा खोल का नारा सीधे-सीधे सरकार के खिलाफ है। कुशवाहा ने यह नारा सरकार की कार्यशैली को लेकर दिया है। वह भी तब, जब केंद्र और बिहार में उसी एनडीए की सरकार है, जिसका घटक उनका भी दल है।
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राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि उपेंद्र कुशवाहा भाजपा का संकेत समझ गये हैं कि लाख कोशिश करें उपेंद्र कुशवाहा, उन्हें मनमाफिक और मुंहमांगी सीटें लोकसभा में नहीं मिलने वाली हैं। उन्हें इस बात की खुन्नस ज्यादा है कि पिछली बार लोकसभा में उनके तीन सदस्य जीते, जबकि नीतीश की पार्टी के दो लोगों को ही कामयाबी मिली। फिर भी उनकी उपेक्षा हो रही है और भाजपा नीतीश को तरजीह दे रही है। विश्लेषकों के मुताबिक लोकसभा चुनाव तक शायद कुशवाहा इंतजार करें, लेकिन विधानसभा चुनाव में वह एनडीए से कुट्टी कर ही लेंगे। वह खीर पकाना पसंद करेंगे, बविस्बत एनडीए की खिंचड़ी खाने के।
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