बिहारः एनडीए को धूल चटा सकता है महागठबंधन 2019 में

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पटना। लोकसभा के 2019 के चुनाव के लिए बिहार में अभी से सारी पार्टिया विसात बिछाने में जुट गयी हैं। जातीय समीकरण बिठाने में हर दल कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता। 2014 में हुए चुनाव के आंकड़ों का विश्लेषण करें तो सहज अनुमान लग जाता है कि भाजपा नीत एनडीए पर राजद नीत महागठबंधन भारी है। सब कुछ अगर सही ढंग से चला तो एनडीए को महागठबंधन धूल चटा सकता है। महागठबंधन की ताकत को कम कर आंकना उचित नहीं, यह मान कर कि वह तो अभी सत्ता से बाहर है।

2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उपेंद्र कुशवाहा रालोसपा और रामविलास पासवान की लोजपा के साथ चुनाव लड़ा। राजद, जदयू, कांग्रेस और एनसीपी ने अलग-अलग अपने उम्मीदवार उतारे थे। भाजपा सर्वाधिक 22 सीटें लेकर नंबर वन रही तो उसकी सहयोगी पार्टी 6 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही। रालोसपा को 3 सीटें मिली थीं। वहीं राजद को 4, जदयू को 2, कांग्रेस को 2, एनसीपी को 1 सीटों से संतोष करना पड़ा था।

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लोकसभा के पिछले चुनाव की खास बात यह रही कि एनडीए के पक्ष में नरेंद्र मोदी की देशव्यापी लहर थी, जबकि विपक्ष का मोदी लहर के सामने कोई नामलेवा भी नहीं दिख रहा था। इसके बावजूद राजद ने 4 सीटों पर जीत हासिल की और 14 सीटों पर वह दूसरे नंबर पर रहा। बाद में बने महागठबंधन में राजद के जो फिलवक्त साथी हैं, उनमें कांग्रेस 8 सीटों पर दूसरे नंबर की पार्टी बनी थी।

मौजूदा हालात में जब भाजपा के खिलाफ देशभर में माहौल 2014 की तरह सुगम नहीं दिख रहा और बिहार के महागठबंधन में अभी तक खटपट की कोई सुगबुगाहट नहीं है, महागठबंधन की ताकत एनडीए से कहीं ज्यादा दिख रही है। सत्ता विरोधी वोटिंग ने थोड़ा भी असर दिखाया तो महागठबंधन के खाते में दूसरे नंबर की 22 और जीती गईं 7 यानी 29 सीटें आसानी से जा सकती हैं।

यहां गौर करने वाली बात यह है कि किस दल की ताकत कितनी है। बिहार में किसी तरह के चुनाव के लिए जातीय आंकड़ों का अनुकूल होना आवश्यक है। अगर जातीय समीकरण को आधार बनायें तो महागठबंधन की ताकत में 16 प्रतिशत मुसलिम और 14 प्रतिशत यादव के पारंपरिक वोटों के साथ एससी-एसटी ऐक्ट और आरक्षण के कारण भाजपा से फिलवक्त खार खाये 15 प्रतिशत सवर्ण भी मजबूरी में उसे विकल्प बना सकते हैं। एससी-एसटी ऐक्ट से अन्य पिछड़ी जातियों की 23 प्रतिशत वोटों में भी भाजपा को कम ही वोट मिलने की संभावना दिख रही है। बिहार में दलित-महादलित की आबादी 16 प्रतिशत है, जो राम विलास पासवान या आरक्षण व एससी-एसटी ऐक्ट के कारण एनडीए के साथ हो सकते हैं। हालांकि जीतन राम मांझी के कारण थोक के भाव दलित-महादलित वोटों में बंटवारा हो सकता है। बनिया जाति की आबादी 7 प्रतिशत आंकी गयी है। यह भी भाजपा का पारंपरिक वोट बैंक रहा है। लेकिन जीएसटी, नोटबंदी जैसे कई तरह की मुश्किलों का सामना कर रहा यह तबका थोक के भाव भाजपा के साथ जुड़ा रहेगा, इसमें संदेह है।

बिहार में जातीय हिसाब

(संख्या लगभग प्रतिशत में)

यादव                    14

कोइरी                   05

कुर्मी                    04

अत्यंत पिछड़ा वर्ग         23

मुस्लिम                  16

महादलित                10

दलित                   06

भूमिहार                  06

ब्राह्मण                  05

राजपूत                  03

कायस्थ                  01

बनिया                   07

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