RJD के तेजस्वी यादव ही होंगे महागठबंधन में सीएम का चेहरा

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Exit Poll की मानें तो तेजस्वी के सिर ताज सजेगा। नीतीश राज की समाप्ति होगी। ऐसा आकलन भास्कर को छोड़ सबके Exit Poll में है।
Exit Poll की मानें तो तेजस्वी के सिर ताज सजेगा। नीतीश राज की समाप्ति होगी। ऐसा आकलन भास्कर को छोड़ सबके Exit Poll में है।

पटना। RJD के तेजस्वी यादव ही होंगे महागठबंधन में सीएम का चेहरा। शरद यादव के मुंह से टपकती लार लालू से मिलने के बाद अब बंद गो हो गयी है। शरद को सामने कर अपनी गोली चलने वाले उपेंद्र कुशवाहा, जीतन राम मांझी और वीआईपी के मुकेश सहनी की बोलती भी अब बंद है। शरद यादव ने तो साफ कर दिया है कि वह सीएम का फेस नहीं बनना चाहते। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) चूंकि महागठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी है और उसका नेतृत्व तेजस्वी यादव कर रहे हैं, इसलिए सीएम पद की सर्वाधिक दावेदारी उन्हीं की बनती है। वे नेता प्रतिपक्ष की भूमिका भी निभा रहे हैं।

दरअसल शरद यादव को सामने कर राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) के उपेंद्र कुशवाहा, हम के जीतन राम मांझी और वीआईपी के मुकेश सहनी ने अपनी गोटी सेट करने की कोशिश की थी। इसके लिए पटना में दो बार बैठकें भी हुईं। लेकिन उम्मीद के मुताबिक बैठक में न तो कांग्रेस की ओर से कोई गया और आरजेडी का कोई नुमाइंदा ही शामिल हुआ।

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अगले दिन शरद यादव रिम्स में इलाज करा रहे लालू प्रसाद से मिलने शरद यादव रांची पहुंचे। लालू ने पता नहीं, उन्हें कौन-सा ज्ञान दिया कि पटना लौटते ही उनके सुर बदल गये। उनके ही नहीं, बल्कि उन्हें सीएम फेस बनाने वाले सभी नेताओं ने सफाई देनी शुरू कर दी। किसी ने कहा कि शरद जी के अनुभवों का लाभ उठाने की बात हुई थी, तो किसी ने कहा कि महागठबंधन में सीएम फेस को लेकर कोई विवाद नहीं है, बल्कि इस बात की चर्चा हुई थी कि सीएम फेस पर सर्वसम्मति बनायी जानी चाहिए।

दरअसल महागठबंधन में आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ही एक ऐसा चेहरा रहे हैं, जिन्होंने समय-समय पर बिहार में विपक्ष का अलख जगाया है। अभी वे बेरोजगारी के मुद्दे पर बिहार की यात्रा पर हैं। सीएए, एनआरसी और एनपीआर पर वे सीमांचल की यात्रा कर चुके हैं। उन्हें इस मुद्दे पर अल्पसंख्यकों का पुरजोर समरह्थन भी मिल रहा है। बिहार में माइनारिटी वोटों का फिलवक्त कोई खेमा अगर सबसे बड़ा दावेदार है तो, वह है महागठबंधन। उसमें भी उसका सबसे बड़ा घटक दल आरजेडी।

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इस बार का विधानसभा चुनाव भी काफी दिलचस्प होने के आसार हैं। विधानसभा चुनाव में यह तय हो जाएगा कि माइनारिटी वोटों का ठेकेदार नीतीश कुमार का जदयू होगा या पारंपरिक तरीके से माइनारिटी तबका आरजेडी के साथ जाएगा। इसमें पहले की संभावना क्षीण होती दिखाई दे रही है और दूसरे की प्रबल। भाजपा से कदमताल करने वाले नीतीश कुमार के सामने मुस्लिम वोटों के जनाधार को बचाये-बनाये रखने की कड़ी चुनौती होगी। लालू-राबड़ी के जमाने से ही मुसलिम समुदाय आरजेडी का कट्टर समर्थक रहा है। तभी तो एम-वाई समीकरण बना। यानी मुसिलम-यादव समीकरण। लेकिन नीतीश ने पिछले 15 साल में उस जनाधार में सेंधमारी की। येन-केन प्रकारेण मुस्लिम समुदाय को नीतीश ने अपने करीब कर लिया। अब जबकि नीतीश कुमार भाजपा के कोर एजेंडों- सीसीए, एनआरसी और एनपीआर के समर्थक बनकर उभर रहे हैं, वैसे मैं आरजेडी के लिए यह अवसर है कि वह अपने खिसके मुसलिम जनाधार को अपने पक्ष में कर सके, जो वोटों के आंकड़ों में तकरीबन 20 फीसद हिस्सेदारी रखता है। आरजेडी अपने पारंपरिक वोटों के अलावा सवर्ण वोटों की ओर भी मुड़ा है। अब देखना होगा कि इसका कितना फायदा आरजेडी को मिल पाता है।

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