तापस पाल का जाना कई बांग्ला फिल्मों की कई यादें छोड़ गया

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अभिनेता तापस पाल का असमय जाना, बांग्ला फिल्म इंडस्ट्री की बड़ी क्षति
अभिनेता तापस पाल का असमय जाना, बांग्ला फिल्म इंडस्ट्री की बड़ी क्षति
  • राजेश त्रिपाठी

तापस पाल का जाना कई यादें छोड़ गया। उत्तम कुमार-सुचित्रा सेन के युग के बाद बांग्ला फिल्मों में उनके खालीपन को तापस ही भर सके। यह चेहरा बालसुलभ चेहरे, मोहक मुसकान और प्रभावी व्यक्तित्व के धनी तापस पाल के रूप में मिला। आगे बढ़ने से पहले यह जिक्र करना अप्रसांगिक ना होगा कि इंडियन एक्सप्रेस के हिंदी दैनिक ‘जनसत्ता’ में कार्य करते वक्त मुझे  बांग्ला फिल्मों के कवरेज का दायित्व भी मिला था। ऐसे में अक्सर टालीगंज के स्टूडियो या आउटडोर पर शूटिंग कवरेज के लिए जाना पड़ता था। अक्सर तापस पाल से मुलाकात होती, जो कुछ दिन में अच्छी जान-पहचान में बदल गयी। उसके बाद अगर कभी लोकेशन पर या स्टूडियो में कोई फिल्म प्रचारक पत्रकारों का परिचय कराने लगते तो तापस पाल मेरी ओर इशारा कर बोलते –दादा का परिचय देने की जरूरत नहीं इन्हें और बाकी कई लोगों को जानता हूं, कोई नये आये हों तो उनका परिचय करा दें।

अभिनेता तापस पाल का असमय जाना, बांग्ला फिल्म इंडस्ट्री की बड़ी क्षति
अभिनेता तापस पाल का असमय जाना, बांग्ला फिल्म इंडस्ट्री की बड़ी क्षति

उनके निधन का समाचार आया तो मन बहुत दुखी हो गया। उनसे जुड़ी स्मृतियां एक के बाद एक याद आने लगीं। तृणमूल कांग्रेस के पूर्व सांसद तापस अपनी बेटी से मिलने मुंबई गए थे। जब वह कोलकाता वापसी के लिए रवाना हो रहे थे, तब एयरपोर्ट पर उन्हें सीने में तेज दर्द हुआ। उन्हें जुहू के अस्पताल ले जाया गया, लेकिन सुबह करीब 4 बजे उन्होंने वहीं आखिरी सांस ली। वे अपने पीछे पत्नी नंदिन पाल और बेटी सोहनी पाल को छोड़ गये हैं।

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29 सितंबर 1958 में पश्चिम बंगाल के चंदननगर में जन्मे तापस पाल ने पायो साइंस से स्नातक स्तर तक शिक्षा पायी। बांग्ला फिल्मों में उन्हें लाने का श्रेय़ मशहूर निर्देशक तरुण मजुमदार को जाता है, जिन्होंने 1980 में अपनी बांग्ला फिल्म दादार कीर्ति में पहली बार अवसर दिया। दर्शकों को यह भाला-भाला, सुंदर, मुसकराता चेहरा बहुत भाया। यह फिल्म सुपरहिट रही और इसके साथ ही बांग्ला फिल्मों को मिला एक नया खूबसूरत और दर्शकों को भा जानेवाला चेहरा। उसके बाद तापस ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा।

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वे एक के बाद एक सफल फिल्म देते गये। उन्होंने कई दर्जन बांग्ला फिल्में कीं, जिनमॆं  अधिकांश सफल रहीं। बांग्ला फिल्मों में एक ऐसे चेहरे की तलाश उनके आने से खत्म हुई, जो लड़खड़ाती बांग्ला फिल्म इंडस्ट्री को फिर से तेज गति से दौड़ने की शक्ति दे सके। उन्हें अभिनय के लिए कलाकार एवार्ड  से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा भी कई सम्मान उन्हें मिले।

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कुछ लोगों को शायद पता ना हो कि अभिनेत्री माधुरी दीक्षित की पहली हिंदी फिल्म अबोध के पहले हीरो भी तापस पाल ही थे। 1984 में आयी इस फिल्म का निर्देशन हीरेन नाग ने किया था। अपने तीन दशक लंबे फिल्मी कैरियर में उन्होंने कई नामी-गिरामी फिल्मों में काम किया और काफी प्रशंसा पायी। तापस पाल हालांकि काफी दिनों से फिल्मों से दूर थे, लंबे अरसे से वे अस्वस्थ थे। उनकी कमी पूरा करना आसान नहीं होगा। उनकी स्मृतियां ही हैं जो आनेवाले समय में उनकी याद दिलाती रहेंगी।

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