फिर जीत गये बिहार के नीतीश कुमार, जानिए कहां और कैसे

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पटना। नीतीश कुमार को एक बार फिर विजयश्री प्राप्त हुई है। अब तक चार बार उन्हें जीत मिल चुकी है। हर बार हार मानने वाली उनकी सरकार की सहयोगी पार्टी भाजपा ही रही है। इस बार भी मिली जीत चुनावी या कुश्ती के मैदान वाली जीत नहीं है, यह है भाजपा की नीतियों-योजनाओं को परास्त करने में कामयाबी की जीत। राम मंदिर पर अध्यादेश लाने से प्रधानमंत्री के मुकरने को राजनीतिक विश्लेषक नीतीश की एक और जीत के रूप में देख रहे हैं।

पहली बार नीतीश कुमार की जीत तब हुई थी, जब भाजपा के साथ सरकार चलाते हुए उन्होंने भाजपा के किसी मुख्यमंत्री की मदद को ठुकरा दिया था। बिहारी अस्मिता को ध्यान में रख कर नीतीश कुमाप ने बाढ़ की त्रासदी में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की राहत राशि का चेक लौटा दिया था। चुनाव प्रचार में नरेंद्र मोदी को जब बिहार में बुलाने की भाजपा ने योजना बनायी तो नीतीश ने साफ कह दिया था कि वे उन्हें बिहार में घुसने नहीं देंगे।

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नीतीश की तीसरी जीत तब हुई, जब उन्होंने नरेंद्र मोदी के साथ भोज का कार्यक्रम अचानक रद्द कर दिया था। चौथी जीत नीतीश के खाते में यह है कि उन्होंने भाजपा के साथ रिश्ता तब तोड़ लिया था, जब नरेंद्र मोदी को भाजपा ने प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित किया। और इस बार की उनकी जीत ने उन्हें देशव्यापी रुतबा प्रदान किया है। नीतीश ने साफ-साफ कह दिया था कि राम मंदिर पर अध्यादेश का वह विरोध करेंगे। अंततः भाजपा को अपने कदम पीछे खींचने पड़े और प्रधानमंत्री ने स्पष्ट कर दिया कि राम मंदिर पर अध्यादेश नहीं लायेंगे, कोर्ट का फैसला आने के बाद जिम्मेदारी निभायेंगे।

नीतीश की हालिया एक और जीत उल्लेखनीय है। 2014 के चुनाव में लोकसभा की महज दो सीटें जीतने के बावजूद उन्होंने भाजपा के बराबर सीटें तो ले ही लीं, उसे अपनी जीती पांच सीटें छोड़ने पर मजबूर भी कर दिया। ऐसा उन्होंने भाजपा के सामने गिड़गिड़ा कर नहीं किया, बल्कि अपनी दावेदारी के पहले उन्होंने अपने काम से यह साबित किया कि वे इसके हकदार हैं।

नीतीश की इन कामयाबियों को सामान्य राजनीतिक घटनाक्रम में शुमार नहीं किया जा सकता। इसके दूरगामी परिणाम राजनीति में देखने को मिल सकते हैं। देश में राम मंदिर पर अध्यादेश की आशंका की जो तलवार लटक रही थी, उसे किनारे करने में अगर देश के किसी एक नेता की बड़ी भूमिका रही है तो वे हैं नीतीश कुमार। नीतीश को अगर अब पीएम मैटेरियल कोई कहे तो इसमें किसी को नाक-भौं सिकोड़ने की कोई गुंजाइश नहीं बचती।

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जहां तक बिहार की बात है तो नीतीश ने कई बार कहा है कि कभी भी कम्युनलिज्म से कोई समझौता नहीं करेंगे। इशारा समझने वाले जान गये होंगे कि बार-बार नीतीश कुमार यह बात किसके लिए दोहराते हैं। बिहार में विकास की नयी इबारत भी नीतीश ने लिखी है, इसे स्वीकारने में किसी को हिचक नहीं होनी चाहिए। विकास के लिए अब तक गुजरात मडल की चर्चा होती थी, लेकिन नीतीश ने उसे भी पीछे छोड़ दिया। खाद्यान्न उत्पादन से लेकर तकरीबन हर क्षेत्र में बिहार ने वाकई विकास किया है। घंटे-दो घंटे की बिजली के लिए लोग तरसते थे। बिहार के गांवों में भी अब 20-22 घंटे बिजली मिल रही है। सड़कें बन रहीं हैं। सात निश्चय के तहत गलियों तक पक्की सड़कें बन रही हैं। हर घर शुद्ध पेयजल पहुंचाने की दिशा में तेजी से काम हो रहा है। शिक्षा के प्रति आकर्षण पैदा करने के लिए स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना रंग ला रही है। दलित-पिछड़े और गरीब, हर तबके के लिए नीतीश की झोली में कुछ न कुछ जरूर है।

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अपने काम और कार्यशैली से नीतीश ने जाहिर कर दिया है कि कोई उन्हें पीएम मैटेरियल कहे तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं। वह वाकई सर्वस्वीकार्य बनने की राह पर चल रहे हैं।

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