एनडीए की पालिटिक्स से गायब हो गये हैं सवर्ण व अल्पसंख्यक

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बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग एक बार उठी है। नीति आयोग की रिपोर्ट में बिहार की खस्ताहाली उजागर होने के बाद नीतीश कुमार ने अपनी पुरानी मांग रिपीट कर दी है।
बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग एक बार उठी है। नीति आयोग की रिपोर्ट में बिहार की खस्ताहाली उजागर होने के बाद नीतीश कुमार ने अपनी पुरानी मांग रिपीट कर दी है।

पटना।  राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) हो या फिलवक्त विपक्ष की भूमिका निभा रही यूपीए, किसी के चुनावी एजेंडे में पहली बार अल्पसंख्यक और सवर्ण कगायब है। अलबत्ता हिन्दुत्व की पालिटिक्स सभी कर रहे हैं। राहुल गांधी खुद को हिन्दू साबित करने के लिए कभी मंदिरों में जाते हैं तो कभी कैलास मानसरोवर की यात्रा कर लरहे हैं। सवर्ण एससी-एसटी और आरक्षण के कानूनी प्रावधान पर सरकार की दिलचस्पी देखते हुए खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं तो इस बार अल्पसंख्यकों की मोनोपोली भी टूटी है। सवर्णों के साथ भाजपा पारंपरिक रूप से जुड़ी रही है। उसने भी कन्नी काट ली है।

बिहार की हात करें तो नीतीश कुमार ने दलित-पिछड़ों के लिए सरकार के खजाने खोल दिये हैं। आवास, जमीन, शिक्षा के क्षेत्र में एससी-एसटी और पिछड़े खासा तरजीह पा रहे हैं। एनडीए के घटक के रूप में नीतीश की पार्टी जदयू का दलित-महादलित सम्मेलनों की श्रृंखला इसी बात की गवाही देती है कि उनकी पार्टी दलितों पर मेहरबान है। हालांकि नीतीश ऐसा पहली बार नहीं कर रहे। इसके पहले भी पार्टी ने निकायों-पंचायतों में में दलित आरक्षण दिया है। विकास के लिए उनकी दो श्रेणियां- दलित और महादलित बनाया।

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पिछड़ों की बात करें तो हाल ही में एनडीए के एक घटक रालोसपा के नेता उपेंद्र कुशवाहा ने अपने समाज के लिए खीर की पार्टी थी। नहले पर दहला फेंकने में नीतीश कैसे चूकते। उन्होंने अपने आवास पर लव-कुश समाज (कोइरी, अऴधिया, कुर्मी) को बुला कर जमावड़ा लगाया। अपने हिस्बा से उन्हें संतुष्ट होने लायक वादा भी किया।

हाशिये पर खड़े मुसलमनों का एनडीए में कोई नामलेवा तक नहीं है। हालांकि बिहार की आवादी में वे अपनी हिस्सेदारी 16017 प्रतिशत मानते हैं। दलित-महादलितों की संख्या भी तकरीबन समग्र रूप से इतनी ही है। यादवो भी इतनी ही तादाद में होने के कारण इसलिए किनारे धकेल दिये गये हैं कि वे राजद के पारंपरिक वोट बैंक हैं। जहां तक सवर्णों की बात है तो वे पारंपरिक रूप से भाजपा के वोटर माने जाते हैं। लेकिन एससी-एसटी ऐक्ट और आरक्षण को लेकर उनके मन में जैसा उबाल है, उसकी झलक समय-समय पर बिहार में देखने को मिल रही है। कभी अश्विनी चौबे को काले झंड़े दिखाये जा रहे तो कभी स्मृति ईरानी और मनोज तिवारी को।

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बिहार की राजनीति इन दिनों पूरी तरह जाति पर केंद्रित हो गयी है। भाजपा के एकमात्र नेता सीपी ठाकुर सवर्णों के साथ जूबानी तौर पर सवर्णों के साथ खड़े दिखते हैं, लेकिन पार्टी लाइन से इतर वह कितना कुछ कर पायेंगे, यह देखना दिलचस्प होगा।

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