बिहार में माइनॉरिटी के सहारे मुकाम तक पहुंचने की कोशिश में नीतीश

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नीतीश कुमार ने भी माना है कि बिहार असेंबली की कल हुई घटना शर्मनाक है। इसके लिए विपक्ष को कोसा। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पत्रकारों से बात कर रहे थे।
नीतीश कुमार ने भी माना है कि बिहार असेंबली की कल हुई घटना शर्मनाक है। इसके लिए विपक्ष को कोसा। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पत्रकारों से बात कर रहे थे।

पटना। बिहार में नीतीश कुमार माइनॉरिटी के सहारे मुकाम तक पहुंचने की कोशिश में लगे हुए हैं। जब- तब वह माइनारटी के लिए कल्याणकारी योजनाओं की घोषणाएं करते रहते हैं। अपनी इसी पहल के तहत इस बार नीतीश कुमार ने अल्पसंख्यकों की जुबान की भाषा उर्दू को लेकर पहल की है। नीतीश सरकार ने यह फरमान जारी किया है कि जहां कहीं भी सरकारी तौर पर बैनर, पोस्टर, होर्डिंग्स, शिलालेख लगाए जाएं, उसमें हिंदी के साथ उर्दू को भी जगह दी जाए।

मायनारिटी के प्रति नीतीश का प्रेम जितना उस समुदाय के कल्याण के लिए है, उससे कहीं ज्यादा सियासत की गंध उनकी पहल में मिलती है। बिहार में माइनारिटी की लगभग 20% आबादी है और इस आबादी के सहारे वह पिछले 15 साल से सत्ता पर लगातार काबिज रहे हैं। पहले यह माना जाता था कि माइनॉरिटी वोट पर आरजेडी का कब्जा है, क्योंकि मुस्लिम-यादव यानी माय समीकरण आरजेडी के लिए 15 सालों तक सत्ता में बने रहने का सबसे बड़ा अस्त्र हुआ करता था। लेकिन पिछले 15 साल में नीतीश कुमार ने आरजेडी की झोली से माइनॉरिटी मतों को झटक कर अपने पक्ष में गोलबंद करने में सफलता पाई है।

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यही वजह है कि माइनॉरिटी से जुड़े भाजपा के किसी भी एजेंडे पर अक्सर वह अपना एतराज जताते रहते हैं। यह अलग बात है कि इसके बावजूद बिहार में वह सफलतापूर्वक भाजपा के साथ मिलकर सरकार भी चलाते रहे हैं। बीते 15 साल में 19 महीनों को छोड़ दें तो नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने भाजपा को लगातार अपना साथी माना है, बनाया है और उसके साथ सरकार का संचालन भी किया है।

फिलहाल भाजपा नीत केंद्र सरकार के कुछ फैसलों से माइनॉरिटी में भारी गुस्सा है। यह गुस्सा भाजपा के साथ नीतीश कुमार को भी झेलना पड़ सकता था, क्योंकि वह एनडीए में रह कर भाजपा के साथ ही सरकार चला रहे हैं। लेकिन अपने राजनीतिक कौशल से नीतीश ने मायनारिटी मतों का अपना आधार बरकरार रखने में कामयाबी पाई है। उनका सियासी कौशल यही है कि भाजपा में रहते हुए, भाजपा के साथ रहते हुए भी वे कभी अल्पसंख्यकों की उपेक्षा नहीं करते। इससे यह संदेश जाता है कि नीतीश के साथ रह कर ही अल्पसंख्यक ज्यादा सुरक्षित और विकास की राह पर बढ़ सकते हैं।

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जिस भाजपा को अल्पसंख्यक अछूत समझते हैं, उसी के साथ सरकार में रहकर नीतीश कुमार रमजान के महीने में इफ्तार की दावत देते हैं। उनकी मजलिसों में शामिल होकर सजदा भी करते हैं। इससे अल्पसंख्यकों को यह एहसास होता है कि नीतीश कुमार के साथ रह कर ही उनका कल्याण होगा। नीतीश की इस सियासत का दूसरा पक्ष भी है। आरजेडी जिस एक मुद्दे को लेकर नीतीश कुमार को घेरना चाहता है कि नीतीश भाजपा के साथ हैं, लेकिन जेडीयू के नेता अपने बयानों से उन्हें आश्वस्त करते रहे हैं। जब भी अल्पसंख्यक समुदाय के हित या मन के खिलाफ कोई भी कदम केंद्र की भाजपा सरकार उठाती है, नीतीश उसका विरोध करते रहे हैं।

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एनआरसी पर नीतीश का स्टैंड अभी साफ नहीं हुआ है, लेकिन जेडीयू के नेता यह भरोसा दिलाते रहे हैं कि बिहार में एनआरसी लागू नहीं होगा। हाल ही में जेडीयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने खुलकर एनआरसी का विरोध किया था। इसे लेकर जेडीयू के कुछ बड़े नेता उनकी आलोचना में लग गए, लेकिन नीतीश कुमार ने बड़ी चालाकी से प्रशांत किशोर का बचाव किया और उन्हीं की जुबानी लोगों को आश्वस्त किया कि बिहार में एनआरसी लागू नहीं होगा। नीतीश से मुलाकात के बाद प्रशांत किशोर ने यही कहा था कि नीतीश जी ने भरोसा दिलाया है, बिहार में एनआरसी को लागू नहीं किया जाएगा।

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अल्पसंख्यक हित साधने के क्रम में जेडीयू कभी आरजेडी को कोई अवसर देना नहीं चाहता है, जिससे अल्पसंख्यक वर्ग के लोग फिर से उसके साथ जाएं। आरजेडी की ताकत और मुस्लिम ही रहे हैं। पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों, दलितों-महादलित में भी अपने कार्यक्रमों से और अपनी योजनाओं से नीतीश कुमार ने अच्छी पैठ बना ली है। नीतीश कुमार का यह सारा प्रयास इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव को ध्यान में रख कर है। वे इसमें कितना कामयाब होंगे, यह समय पर ही पता चल पाएगा।

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