नेताजी सुभाष चंद्र बोस बंगाल में सियासत के हाट केक बन गये हैं

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नेताजी सुभाष चंद्र बोस पत्रकार भी थे। यह बात नयी पीढ़ी के पत्रकारों को शायद मालूम न हो। नेताजी ने साप्ताहिक ‘फारवर्ड ब्लाक’  का संपादन किया।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस पत्रकार भी थे। यह बात नयी पीढ़ी के पत्रकारों को शायद मालूम न हो। नेताजी ने साप्ताहिक ‘फारवर्ड ब्लाक’  का संपादन किया।
  • सोना देव
सोना देव
सोना देव

नेताजी सुभाष चंद्र बोस बंगाल में इनदिनों सियासत के हाट केक बन गये हैं। आज नेता जी जयंती पर नरेंद्र मोदी व ममता बनर्जी अपना प्यार उड़ेलेंगे। ममता बनर्जी पदयात्रा करेंगी तो दो कार्यक्रमों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नेताजी का गुणगान करेंगे। दरअसल बंगाल में विधानसभा चुनाव होने हैं। सभी दलों के नेता सुभाषचंद्र को भावनात्मक ढंग से बंगाल के लोगों की मानसिकता को भुनाने की कोशिश करेंगे।

अचानक नेताजी सुभाष चंद्र बोस, स्वामी विवेकानंद, रविंद्रनाथ टैगोर जैसे महापुरुषों के प्रति देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्यार उमड़ पड़ा है। ऐसे में निहायत बंगाली मूल की ममता बनर्जी पीछे क्यों रहतीं। शहर में फारवर्ड ब्लाक ने अपनी ओर से कोई कसर नहीं छोड़ी है। नेताजी अब किसका कल्याण करेंगे, यह समय पर साबित ह जाएगा।

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नेताजी सुभाष चंद्र बोस के प्रति देशवासियों की भावनात्मक कमज़ोरी का फ़ायदा उठा कर चुनाव की राजनीति कोई नई बात नहीं है। हर बार चुनाव के पहले नेताजी की मौत का रहस्य उजागर करने के लिए कमीशन तैयार करने का आश्वासन दिया जाता है। इस बार थोड़ा नए अन्दाज़ में नेताजी का मुद्दा उठाया गया है। इस बार नेताजी जयंती कमेटी का गठन व नेताजी जयंती को पराक्रम दिवस के तौर पर मनाये जाने की घोषणा की गई है।

लोगों के दिल में नेताजी शुरू से बसते आये हैं और आगे भी बसे रहेंगे। 23 जनवरी को देश प्रेम दिवस के तौर पर घोषित करने व इस दिन राष्ट्रीय छुट्टी की घोषणा करने की मांग अरसा पुरानी मांग है। उनकी मौत का रहस्य उजागर करने की मांग भी बरसों पुरानी है। नेताजी को लेकर देश का कोई प्रधानमंत्री सोचे या ना सोचे, नेताजी देशवासियों के मन में सदा अमर रहेंगे।

माना जाता है कि नेताजी की मृत्यु 18 अगस्त, 1945 को ताइवान में हुए विमान हादसे में हुई थी। उनकी मौत का रहस्य एक पहेली है। भारत सरकार ने कई आयोग बनाये। लेकिन सच का पर्दाफाश आज तक नहीं हुआ। अब देखना है नरेंद्र मोदी सरकार क्या करती है। वैसे चर्चा है कि नेताजी के बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज कोलकाता में महत्वपूर्ण घोषणा कर बंगाल के लोगों का मन जीतने का प्रयास करेंगे। संभव है कि विक्टोरिया मेमोरियल का नाम वह आजाद हिन्द फौज से जोड़ कर नेताजी को अमर बनाने का प्रयास करें।

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नेताजी का विचार 21वीं सदी में राष्ट्र के भविष्य के लिए एक जीवित सिद्धांत के रूप में व्यावहारिक है। नेताजी का कहना था कि अगर हम वाकई में भारत को महान बनाना चाहते हैं तो हमें लोकतांत्रिक समाज की बुनियाद पर लोकतांत्रिक राजनीति का निर्माण करना चाहिए। जन्म जाति या पंथ के आधार पर विशेष अधिकार खत्म होना चाहिए और समान अवसर के दरवाजे सभी के लिए खोल देना चाहिए।

नेताजी का जन्म व उनकी शिक्षा

ओडिशा के कटक में 23 जनवरी, 1897 में एक बंगाली परिवार में नेताजी का जन्म हुआ था। 1918 में उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय के स्कॉटिश चर्च कॉलेज से दर्शनशास्त्र से स्नातक की परीक्षा पास की। 1920 में कैंब्रिज विश्वविद्यालय से वह इंडियन सिविल सर्विस की परीक्षा पास करने वाले पहले भारतीय थे।  हालांकि ब्रिटिश सरकार के अधीन उन्हें नौकरी करना मंजूर नहीं था, इसलिए वह सिविल सर्विस से इस्तीफा देकर भारत चले आए थे। भारत लौट कर उन्होंने स्वराज नामक समाचार पत्र शुरू किया।

नेताजी ने राजनीति में रखा कदम

1923 में सुभाष चंद्र बोस आल इंडिया यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष और बंगाल राज्य कांग्रेस के सचिव भी चुने गए। 1938 में पहली बात कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष बने। कहा जाता है कि कांग्रेस में महात्मा गांधी उनके विरोधी थे। 1939 में कांग्रेस पद से उन्होंने इस्तीफा दे दिया। सुभाष चंद्र बोस ने 22 जून, 1939 को आल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना की। इसीलिए आज भी फारवर्ड ब्लाक के लोग उन्हें अपना नेता मानते हैं। भारत को आज़ाद करने के लिए 21 अक्टूबर 1943 को उन्होंने आज़ाद हिंद सरकार की स्थापना की। नेताजी जैसे नेता शायद ही देश में कोई बन पाए। उन्होंने पूरा जीवन देश की आजादी के लिए लगा दिया।

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