NDA शासन में बिहार में 5 मेडिकल कालेज खुले, 11 प्रस्तावित 

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आरक्षण विरोधी कांग्रेस से दोस्ती करने वालों ने कर्पूरी ठाकुर के आदर्श मिट्टी में मिला दिये। सांसद सुशील कुमार मोदी ने यह आरोप लगाया है।
आरक्षण विरोधी कांग्रेस से दोस्ती करने वालों ने कर्पूरी ठाकुर के आदर्श मिट्टी में मिला दिये। सांसद सुशील कुमार मोदी ने यह आरोप लगाया है।

पटना। NDA शासन में बिहार में 5 मेडिकल कालेज खुले हैं और 11 मेडिकल कालेज प्रस्तावित हैं। राजद के राज में तो एक भी मेडिकल कालेज नहीं खुला। यह कहना है बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी का। मोदी बिहार में 587 करोड़ रुपये की लागत से आज हुए शिलान्यास कार्यक्रम में बोल रहे थे।

स्वास्थ्य विभाग के अंतर्गत चमकी बुखार से प्रभावित बच्चों के लिए 100 बेड के अत्याधुनिक पीकू वार्ड (लागत 72 करोड़) एवं झंझारपुर में 515 करोड़ की लागत से मेडिकल कालेज अस्पताल के शिलान्यास कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए राज्य के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा कि राज्य में 1111 विशेषज्ञ चिकित्सकों की अनुशंसा तकनीकी सेवा आयोग से सरकार को प्राप्त हो चुकी है तथा 4000 सामान्य चिकित्सक, 9500 नर्स, नर्सिंग स्कूल के 196 ट्यूटर की नियुक्ति प्रक्रिया अंतिम चरण में है और अगले 2 माह में नियुक्ति कर दी जाएगी। विशेषज्ञ चिकित्सकों में 203 स्त्री एवं प्रसव रोग, 197 शिशु रोग, 146 एनेसथिसिया के विशेषज्ञ शामिल हैं।

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मोदी ने कहा कि आजादी के बाद भागलपुर को छोड़ कर एक भी मेडिकल कालेज सरकारी क्षेत्र में बिहार में स्थापित नहीं किया गया। पटना और दरभंगा मेडिकल कालेज आजादी के पूर्व के हैं तथा नालन्दा मेडिकल, मुजफ्फरपुर, गया मेडिकल कालेज 1970 में निजी क्षेत्र में स्थापित किए गए थे, जिन्हें बाद में 1979 में जनता पार्टी सरकार में अधिग्रहण किया गया। भाजपा-जदयू यानी NDA शासन में बेतिया, पावापुरी, मधेपुरा, एम्स समेत 5 नए मेडिकल कालेज स्थापित किए गए एवं 11 नए मेडिकल कालेज स्थापित किए जा रहे हैं। निजी क्षेत्र में भी सहरसा, मधुबनी एवं सासाराम में नए मेडिकल कालेज स्थापित किए गए तथा तुर्की (मुजफ्फरपुर) एवं अमहारा (बिहटा) में 2 नए मेडिकल कालेज की अनुमति दी गयी है।

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मोदी ने कहा कि बिहार में एक हजार शिशु के जन्म लेने पर 2006 में जहाँ 60 बच्चों की पहले वर्ष में मृत्यु हो जाती थी, वहाँ अब बिहार में 32 बच्चों की मृत्यु हो रही है, जो राष्ट्रीय औसत के बराबर है। आशा-आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा गर्भवती महिलाओं का पंजीकरण, प्रसव पूर्व 3 बार जाँच, अस्पतालों में प्रसव, 86 प्रतिशत टीकाकरण, प्रत्येक जिले में गहन शिशु उपचार यूनिट के कारण शिशु मृत्यु दर में 60 से 32 तक लाने में सफलता मिली है।

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