ममता बनर्जी बंगाल आज सरकार बनाने का दावा पेश करेंगी

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ममता बनर्जी बंगाल विधानसभा चुनाव में भारी बहुमत मिलने के बाद आज राज्यपाल जगदीप धनखड़ से मिल कर सरकार बनाने का दावा पेश करेंगी
ममता बनर्जी बंगाल विधानसभा चुनाव में भारी बहुमत मिलने के बाद आज राज्यपाल जगदीप धनखड़ से मिल कर सरकार बनाने का दावा पेश करेंगी
  • डी. कृष्ण राव 

कोलकाता। ममता बनर्जी बंगाल विधानसभा चुनाव में भारी बहुमत मिलने के बाद आज राज्यपाल जगदीप धनखड़ से मिल कर सरकार बनाने का दावा पेश करेंगी। इसी हफ्ते सरकार गठन की संभावना है। कोविड के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए ममता बनर्जी जल्द सरकार गठन कर अपना अभियान शुरू करना चाहती हैं। उन्होंने कल प्रहेस कांफ्रेंस में संकेत भी दिया कि कोविड टीका केंद्र सरकार मुफ्त मुहैया कराये, वर्ना वह केंद्र के खिलाफ आंदजोलन छेड़ेंगी। इसके साथ ही उन्होंने यह भी जोड़ा कि तृणमूल कांग्रेस का कोई कार्यकर्ता विजय जुलूस न निकाले, बल्कि इसके बदले कोविड पीड़तों की सहायता का काम करे।

सनद रहे कि ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने 214 सीटें हासिल की हैं। भाजपा को तमाम मेहनत के बावजूद अपनी सीटें पिछली बार की 3 सीटों से बढ़ा कर 76 तक पहुंचने में कामयाबी मिली है। समझा जा रहा है कि दो मुसिलम दलों- एआईएमआईएम और आईएसएफ को दरकिनार कर मुसलमानों के वोट ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस को थोक के भाव मिले हैं। इधर हिन्दू वोटों के ध्रुवीकरण के भरोसे बैठी भाजपा को इसका लाभ नहीं मिल पाया। हिन्दू वोटों में भी बंटवारा हुआ। बंगाल में मुसलिम आबादी तकरीबन 27 से 30 फीसद मानी जाती है। यानी इतना वोट तृणमूल को थोक के भाव मिला। बंटवारे में 20-25 प्रतिशत वोट भाजपा को मिले।

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इस चुनाव की सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि भाजपा ने लोकसभा के अपने 3 और राज्यसभा के एक सदस्य को विधानसबा चुनाव के मैदान में उतारा। इनमें मुकुल राय, बाबुल सुप्रियो, लाकेट चटर्जी और राज्यसभा सदस्य स्वप्न दास गुप्ता शामिल थे। इनमें मुकुल राय को छोड़ किसी को कामयाबी नहीं मिली। बीजेपी को 2019 के लोकसभा चुनाव में तकरीबन 40 फीसद वोट मिले थे, लेकिन इस बार विधानसभा के चुनाव में भाजपा अपने वोट आधार को बचा नहीं पायी।

भाजपा के वोट में कमी और तृणमूल के वोट आधार में बढ़ोतरी की बड़ी वजह यह मानी जा रही है कि बंगाल का चुनाव स्थानीय मुद्दों के बदले राष्ट्रीय मुद्दों पर लड़ा गया। इसका फायदा ममता बनर्जी को हुआ। इसलिए कि जितनी एंटीइनकंबैंसी का खतरा ममता बनर्जी के सामने था, उससे कम केंद्र सरकार की भाजपानीत सरकार को लेकर नहीं थी। डीजल-पेट्रोल और एलपीजी की महंगाई बंगाल में भाजपा विरोध का बड़ा कारण बन गयी। आखिरी दो चरणों के चुनाव में कोविड का कहर पीक पर पहुंचने लगा और इसमें केंद्र सरकार की नाकामी उजागर हुई। इससे भी भाजपा विरोध की लहर पैदा हुई।

ममता के प्रति पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह के भाषणों ने भी बंगाली समाज को भड़काया। ममता बनर्जी तो इसी ताक में थीं। उन्होंने बंगाली अस्मिता की बात पहले ही छेड़ दी और अपने बारे में मोदी के संबोधन- दीदी..ओ दीदी—को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया। इससे ग्रामीण बंगाल में, खासकर महिलाओं में भाजपा के खिलाफ नफरत पैदा हुई और भाजपा का तेजी से बढ़ता रथ रुक गया। इतना ही नहीं, शहरी वोटरों में भी भाजपा के प्रति पहले से पनप रही सहानुभूति भी थम गयी। शहरी इलाकों में भी भाजपा को भारी झटका लगा।

बंगाल विधानसभा के चुनाव में 35 सीटें ऐसी रहीं, जहां जीत-हार का अंतर 1000 या इससे कम रहा है। बंगाल का 34 साल तक गढ़ बने रहे वामपंथी पार्टियों का सफाया हो गया है। मुख्य मुकाबले में तृणमूल कांग्रेस और भाजपा ही रहीं।

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