ममता बनर्जी की जीत वामपंथी संस्कृति की ही जीत समझिए

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ममता बनर्जी की जीत वामपंथी संस्कृति की ही जीत है। बंगाल से वामपंथियों का सूपड़ा साफ होने वालों को पहले बंगाल की संस्कृति समझ लेनी चाहिए।
ममता बनर्जी की जीत वामपंथी संस्कृति की ही जीत है। बंगाल से वामपंथियों का सूपड़ा साफ होने वालों को पहले बंगाल की संस्कृति समझ लेनी चाहिए।
  • अमरनाथ
अमरनाथ
अमरनाथ

ममता बनर्जी की जीत वामपंथी संस्कृति की ही जीत है। बंगाल से वामपंथियों का सूपड़ा साफ होने वालों को पहले बंगाल की संस्कृति समझ लेनी चाहिए। बंगाल की जनता ने एकबार फिर अपनी दूरदर्शिता और सूझबूझ का परिचय दिया है।

दरअसल ममता बनर्जी वामपंथी मूल्यों, वामपंथी संस्कृति और संघर्ष के वामपंथी तरीकों को अपना कर ही बंगाल की राजनीति में दाखिल हुई थीं। उनकी पूरी राजनीतिक यात्रा वामपंथियों की ही छत्रछाया में हुई है। ममता बनर्जी टाटा के नैनो कार-कारखाने का विरोध करके ही वामपंथियों के विरुद्ध निर्णायक लड़ाई लड़ी थीं। यानी, जो काम वामपंथियों को करना था, उसे ममता बनर्जी ने तृणमूल कांग्रेस के बैनर के नीचे किया।

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अपने आचरण में भी ममता बनर्जी किसी भी वरिष्ठ वामपंथी नेता की ही तरह हैं। केन्द्र में रेलमंत्री और पिछले दस साल से बंगाल की मुख्यमंत्री रहने के बावजूद वे आज भी सूती साड़ी और हवाई चप्पल पहनती हैं और अपने पुस्तैनी खपड़ैल के मकान में रहती हैं। तमाम साजिशों के बावजूद उनपर आजतक भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं लगाया जा सका। वे सुपठित और सुसंस्कृत हैं। उनके द्वारा रचित एक सौ से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हैं। वे उच्च कोटि की चित्रकार हैं। बंगाल की संस्कृति को,बंगाल के कलाकारों, साहित्यकारों और बंगाल के नायकों का सम्मान करना वे भलीभाँति जानती हैं।

इस चुनाव में वामपंथियों का जो वोट प्रतिशत घटा है वह तात्कालिक है। यह वोट भाजपा को रोकने के लिए तृणमूल के पक्ष में गया है। इसका यह अर्थ हर्गिज नहीं है कि बंगाल में वामपंथी विचारधारा का सफाया हो चुका है। मेरा अनुमान है कि यदि वामपंथियों ने नयी पीढ़ी के युवाओं को महत्व दिया और सुनियोजित तरीके से प्रयास किया तो आगामी लोकसभा के चुनाव में वामपंथियों को अच्छी सफलता मिल सकती है।

भाजपा के लिए यह बंगाल में निर्णायक लड़ाई थी। आने वाले दिनों में यहां भाजपा का प्रभाव घटेगा। इस चुनाव के ठीक पहले बड़ी संख्या में ममता बनर्जी का साथ छोड़कर जो लोग अन्य राजनीतिक दलों में गए, वे दरअसल अवसरवादी, भ्रष्ट और दलबदलू लोग थे। उनके जाने से  ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और अधिक मजबूत हुई है। इससे नए चेहरों को अवसर मिलेगा।

फिलहाल बंगाल की जनता ने इस चुनाव के माध्यम से देश की जनता का मार्गदर्शन किया है और समुचित संदेश दिया है। देश की जनता उस पर अमल कितना करती है, यह उसकी अपनी समझ पर निर्भर करता है।

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