बंगाल का वह पक्ष, जिसे बाहर के लोग बहुत कम जानते हैं, जान लें

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बंगाल का वह पक्ष, जिसे बाहर के लोग बहुत कम जानते हैं। आजकल बंगाल में हो रही राजनीतिक हिंसा की चर्चा चारो तरफ है। यहाँ राजनीतिक हिंसा का एक इतिहास है।
बंगाल का वह पक्ष, जिसे बाहर के लोग बहुत कम जानते हैं। आजकल बंगाल में हो रही राजनीतिक हिंसा की चर्चा चारो तरफ है। यहाँ राजनीतिक हिंसा का एक इतिहास है।
  • अमरनाथ

बंगाल का वह पक्ष, जिसे बाहर के लोग बहुत कम जानते हैं। आजकल बंगाल में हो रही राजनीतिक हिंसा की चर्चा चारो तरफ है। यहाँ राजनीतिक हिंसा का एक इतिहास है। मुझे लगता है कि इसकी जड़ें नक्सलबाड़ी आंदोलन में हैं। जब एक ऐसा संगठन खड़ा हुआ, जो मानता था कि सत्ता की कुर्सी तक का रास्ता बैलेट से नहीं, बंदूक की नली से होकर जाता है। वे लोग खूनी क्रान्ति में विश्वास करते थे। उन दिनों बहुत हत्याएं हुई थीं। उसका असर किसी न किसी रूप में आजतक बरकरार है। हाँ, आजकल उसे बहुत बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जाता है। किन्तु बंगाल का वह पक्ष, जिसपर बहुत कम चर्चा होती है, जिसकी जड़ें बंगाल के नवजागरण में हैं और जो एक सुसंस्कृत समाज की पहचान है, उनके बारे में भी जानना चाहिए।

मेरे अनुमान के अनुसार बंगाल में लगभग आधी शादियाँ प्रेम-विवाह के रूप में होती हैं। ऐसे विवाहों में जाति (कास्ट) नहीं देखी जाती। इस तरह बंगाल में जाति के बंधन बहुत ढीले हैं। छुआछूत खत्म हो चुका है। ‘ऑनर किलिंग’ जैसी घटनाएं बंगाल में देखने को नहीं मिलतीं। शादी के बाद लड़के और लड़कियाँ अपने पुराने प्रेम-संबंधों को ऐसे भूल जाते हैं, जैसे कुछ हुआ ही न हो।

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बंगाल में बेटियों को सम्मान में ‘माँ’ कहकर पुकारा जाता है। बेटे और बेटी में भेद नहीं किया जाता। लड़कियों को छेड़ने या उनके साथ बलात्कार की घटनाएं कम ही सुनने को मिलतीं। आमतौरा पर हिन्दी पट्टी में जिस तरह महिलाजनित अपराधों की घटनाएं सामने आती हैं, बंगाल में विरले वैसी घटनाओं के बारे में जानकारी मिलती है।

बंगाल के हर मध्यवर्गीय परिवार में अमूमन हारमोनियम, तबला, सितार जैसे वाद्य होते हैं। बचपन से ही संगीत और नृत्य की शिक्षा अपनी बेटियों को वे जरूर देते हैं। रवीन्द्र संगीत अमूमन हर शिक्षित लड़की जानती है। यह दूसरे प्रदेशों में नहीं दिखता।

बंगाल के नेतागण अपने नायकों का सम्मान करना जानते हैं। बंगाल में ऐसा कोई भी प्रतिष्ठित संस्थान नहीं है, जो किसी राजनेता के नाम पर हो। सभी समाज-सुधारकों, स्वाधीनता संग्राम सेनानियों, वैज्ञानिकों, साहित्यकारों अथवा कलाकारों के नाम पर हैं। विश्व प्रसिद्ध हॉवड़ा ब्रिज का नाम ‘रवीन्द्र सेतु’ है और उसी तरह सिर्फ दो स्तंभों पर लोहे की डोरियों पर तना वामपंथी सरकार द्वारा बनाया गया ब्रिज ‘विद्यासागर सेतु’। एअरपोर्ट का नाम ‘नेताजी सुभाषचंद्र बोस अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा’ है। बड़े-बड़े कला केन्द्रों के नाम ‘रवीन्द्र सदन’ या ‘नजरुल मंच’ जैसे हैं। यहाँ तक कि कोलकाता के मेट्रो स्टेशनों के नाम भी ‘जतिनदास पार्क’, ‘गिरीश पार्क’, ‘कवि सुभाष’, ‘कवि नजरुल’, ‘मास्टर सूर्यसेन’, ‘महानायक उत्तम कुमार’ आदि हैं।

देश के सभी महानगरों की तुलना में कोलकाता सबसे सस्ता शहर है। यहाँ बीस-पचीस रुपए में भात-दाल और सब्जी या माछ-भात पेट भर खाया जा सकता है। यहाँ हर तरह का परिवहन सुलभ है और देश में सबसे सस्ता भी है। बंगाल में दुकान से 1 पीस मिठाई भी खरीदी जा सकती है। सब्जी की दुकान से 100 ग्राम भिंडी भी खरीदी जा सकती है और इसमें किसी तरह की शर्मिन्दगी महसूस नहीं होती।

बंगाल के आम घरों के बैठक-कक्षों में रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, ईश्वरचंद विद्यासागर जैसे नायकों की तस्वीरें आमतौर पर मिलती हैं। दीवालों पर फिल्मी सितारे नहीं दिखते।

बंगाल में दहेज का प्रचलन नहीं है। शादियाँ सादे समारोह से संपन्न होती हैं। यहाँ न तो गाजे-बाजे के साथ जुलूस निकलता है, न बाराती जूलूस में नाचते हैं और न तो उन्हें तरह-तरह के पकवान ही परोसे जाते हैं। अपने-अपने घरों में जो हम भोजन करते हैं, उससे थोड़ा बेहतर भोजन कराया जाता है। लड़की की बिदाई में दैनिक उपयोग के कुछ गिफ्ट दिए जाते हैं।

बंगाल के लोग उत्सवधर्मी होते हैं। त्योहार धूमधाम से मनाते हैं। दुर्गापूजा सबसे बड़ा त्योहार है। इसका आयोजन मुहल्लों की पूजा कमेटियाँ करती हैं। इस अवसर पर बहुत सुसंस्कृत ढंग से सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन होते हैं। इसके अलावा काली पूजा, जगधात्री पूजा, वसंत पंचमी, जमाई षष्ठी, दोलजात्रा आदि पर्व मनाए जाते हैं।

बंगाल के लोग पुस्तक प्रेमी होते हैं। साहित्यकारों का बहुत सम्मान करते हैं। कोलकाता में लगने वाले विश्व पुस्तक मेले में उल्लास और उत्सव धर्मिता देखने लायक होती है। पिछले पुस्तक मेले में सात सौ से अधिक स्टॉल थे, जिनमें हिन्दी पुस्तकों के स्टॉल मात्र पाँच या छह थे। लघु पत्रिकाओं के 212 स्टॉल थे, जिनमें हिन्दी का सिर्फ एक ‘सदीनामा’ का स्टाल था। मेले में मुक्त रंगमंच, बाउल गान, साहित्यकारों के व्याख्यान तथा सांस्कृतिक कार्यक्रम नियमित रूप से चलते रहते हैं। बच्चे वर्ष भर पैसे इकट्ठा करते हैं मेले से किताबें खरीदने के लिए।

बंगाल में मुसलमानों की आबादी का अनुपात देश में संभवत: सर्वाधिक है। इसके बावजूद पिछले लगभग पचास साल से बंगाल में साम्प्रदायिक दंगे नहीं हुए। यहाँ सभी संप्रदायों के लोग मिल जुल कर रहते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में होने वाली राजनीतिक हिंसा को सांप्रदायिक हिंसा का रंग देने की भरपूर कोशिश हुई, किन्तु सफलता नहीं मिली।

हां, यह स्वीकार करना चाहिए कि बंगाल में गरीबी है। गरीबी से तो दूसरे राज्य भी अछूते नहीं, लेकिन बंगाल की गरीबी का मुख्य कारण यहाँ की आबादी का घनत्व है। शरणार्थियों का दबाव है। जूट मिलों और बड़ी संख्या में फैक्टरियों के बंद होने से बेरोजगारी बढ़ी है।

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