कमल दीक्षित ने अलविदा कहा, पर उनके शब्द अब भी गूंज रहे

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कमल दीक्षित ने दुनिया से विदा ले ली। पर, पत्रकारिता के संबंध में उनके शब्द अब भी गूंज रहे हैं- पत्रकारिता अभी सूचनाओं का व्यवसाय कर रही है।
कमल दीक्षित ने दुनिया से विदा ले ली। पर, पत्रकारिता के संबंध में उनके शब्द अब भी गूंज रहे हैं- पत्रकारिता अभी सूचनाओं का व्यवसाय कर रही है।
रंजीत सिंह, वरिष्ठ पत्रकार
रंजीत सिंह, वरिष्ठ पत्रकार

कमल दीक्षित ने दुनिया से विदा ले ली। पर, पत्रकारिता के संबंध में उनके शब्द अब भी गूंज रहे हैं- पत्रकारिता अभी सूचनाओं का व्यवसाय कर रही है। अगर वह पत्रकारिता के मूल्यों पर सूचनाओं का व्यवसाय करती, तो ज्यादा अफसोस नहीं था। असल में पत्रकारिता हिडेन एजेंडा या दूसरों के एजेंडे पर ज्यादा काम कर रही है। प्रभात खबर और हिन्दुस्तान में संपादक रह चुके रंजीत सिंह ने कमल दीक्षित को एक शिष्य के रूप में इस तरह याद किया हैः कमल दीक्षित सर को भोपाल में कल अंतिम विदाई दी गयी। छात्रों के लिए पत्रकारिता अध्ययन का बरगद मानो ढह सा गया हो। पर, इस बरगद की जड़ें इतनी गहरी और शाखाएं इतनी लंबी हैं कि कई पीढ़ियों तक इसकी ढंडक का अहसास कराती रहेंगी। पिछले वर्ष 18 मई 2020 को विनय तरुण स्मृति समारोह के दौरान  आनलाइन संबोधित करते हुए उन्होंने वर्तमान पत्रकारिता की चुनौतियों और रास्तों से रू-ब-रू कराया था। इन शब्दों के साथ कि उनके शब्द पत्रकारीय पेशे के दौरान वाच टावर की तरह रहेंगे, जहां से पत्रकार रोशनी और ऊर्जा लेते रहेंगे।

कमल दीक्षित के वक्तव्य का मूल पाठ

मुझे मालूम नहीं कि विषय क्या है, लेकिन अच्छा लग रहा है कि बहुत दिनों बाद आप सबसे मिलना हो रहा है। कोरोना के साथ हम जीना सीख रहे हैं। मेरे 80 साल के इतिहास में मैंने कभी इस तरह का अनुभव तो नहीं किया है। एक बात जो मैं आप सबसे कहना चाहता हूं कि यह जो मौका है, इसमें अपने वैचारिक अनुभव और सृजनात्मक अनुभव का पूर्व सिंहावलोकन करना चाहिए। खासकर उनके लिए, जो अपनी सृजनात्मकता से अपने समय को ठीक से जानते हैं।

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पत्रकारिता को मैंने इसलिए चुना था, क्योंकि समाज को समझने के लिए पत्रकारिता से बेहतर कोई वृत्ति या व्यवसाय नहीं हो सकता। पत्रकारिता जिस आसानी से आपको समाज के करीब, समाज के भीतर ले जाती है, वह और दूसरे वृत्ति या व्यवसाय में संभव नहीं हो पाता। आप यह सोचिए कि पत्रकारिता के संबंध में हमने जो सुना था, पढ़ा था, इतने वर्षों तक अनुभव किया, उनके आधार पर यह सोचें कि क्या पत्रकारिता अपने समय का अपने समय में जो भूमिका है, उसकी जो लोग अपेक्षा करते हैं, पत्रकारिता अपने धर्म, मूल्यों, लक्ष्य का, जिससे वह संबोधित है, उसके लिए वह काम कर रही है क्या। या नहीं कर रही है या कुछ कर रही है।

मुझे आज भी पूरा  विश्वास है कि पत्रकारिता अपने समय को बदलने में कारगर हो सकती है, बशर्ते वह उस पर खरा उतरे, जिस मूल्य और ध्येय के संदर्भ में लोग उससे अपेक्षा करते हैं। मैं आज भी मानता हूं कि पत्रकारिता का ध्येय लोगों को अपने समय के लिए तैयार करना है। अपने समय में हस्तक्षेप करने के लायक बनाने के लिए तैयार करना है। पत्रकारिता के ज्यादा से ज्यादा दर्शक या पाठक, जिन्हें हम जनता के तौर पर जानते हैं, वे हैं। राज करने वाले लोग या प्रशासन के लोग तो बहुत कम संख्या में हैं और वे भी एक तरह से जनता हैं। इसलिए पूरी बात जनता की है।

जनता के संदर्भ में पत्रकारिता का मेरा जो अपना अनुभव रहा है या मानता हूं जनता को, यह जो प्रणाली है लोकतंत्र की, लोकतंत्र में जिसके पास सार्वभौमिक सत्ता है, वह सारी की सारी जनता में है तो क्या उस जनता को हमने लोकतंत्र के अनुरूप, लोकतंत्र में अपने विवेक के आधार पर स्वयंभू होकर हस्तक्षेप करने के लायक उसे तैयार किया है क्या? और दूसरा ये असल में किसका काम है?

मुझे लगता है कि यह असल में पत्रकारिता का काम है। इसलिए लोकतंत्र में लोगों को विचारशील बनाना, जो अपने विवेक के अनुसार अपने समय में हस्तक्षेप कर सकें, ऐसा करना पत्रकारिता से ही संभव है। इसलिए हम सभी लोग इन दिनों में जब हम एक तरह से एकांत में हैं, अपने से ही संवाद कर रहे हैं। अपने अनुभवों के आधार पर पत्रकारिता की सामाजिक भूमिकाएं, लक्ष्य, ध्येय है, उसमें खुद को झांक कर देखना चाहिए कि पत्रकारिता के धर्म को निभा पा रहे हैं या नहीं।

जो मैंने अपनी बात की है, वह संक्षेप में यह है कि लोकतंत्र जैसी प्रणाली के लिए लोगों को लोकतंत्र में एक सार्थक, सबल, स्वविवेकी और पूरी तरह से समझ के साथ में हस्तक्षेप करने वाला होना चाहिए, मुझे क्षमा किया जाए, लेकिन मैं यह मानता हूं कि हममें से अधिकांश लोग, जिसमें पढ़े-लिखे लोग भी शामिल हैं, वे लोकतंत्र की प्रक्रिया को नहीं समझ पाते हैं। तो ऐसी स्थिति में इस बारे में किसे काम करना चाहिए? राजनीति के अपने ध्येय हैं, प्रशासन का अपना काम है, व्यापार-नौकरी करने वाले लोग हैं, इन सबके अपने अपने ध्येय, लक्ष्य और मूल्य हैं। तो पूरे समाज के समग्र संदर्भ में कौन ऐसा है, जो इन सारे लोगों को इन सामाजिक समावेशता के लिए, एक समरसता के लिए, एक मूल्यपरक समाज के लिए, जो सबकी चिंता करता हो, ऐसे समाज के लिए जो नफरत, हिंसा, द्वेष इत्यादि-इत्यादि, जो आसुरी मूल्य हैं, उन मूल्यों के बजाए दैवीय मूल्यों पर जो समाज रचा जाता है, उन सारे लोगों के लिए पत्रकारिता में यह संभावनाएं-सामर्थ्र्य है कि पत्रकारिता अपने समय के समाज को प्रभावित करके अच्छा बना सकती है।

आज पत्रकारिता व्यवसायोन्मुख हो चुकी है। पत्रकारिता प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों तरह का व्यवसाय कर रही है। मुझे क्षमा करें, पत्रकारिता सिर्फ पैसे कमाने का धंधा नहीं कर रही है। पत्रकारिता में जो परोक्ष रूप से व्यवसाय हो रहा है, वह और ज्यादा खतरनाक है, क्योंकि वह परोक्ष व्यवसाय तो समझ ही नहीं आता है लोगों को, पता ही नहीं चलता। विज्ञापन के जरिए, ग्राहकी के जरिए जो कुछ व्यवसाय दिखाई देता है, वह तो बहुत छोटा सा है, असल में पत्रकारिता की ताकत को जिन समझदार लोगों ने पहचान लिया है, चाहे वह राजनीति, प्रशासन या व्यवसाय से जुड़े हुए लोग हों, वे आज पत्रकारिता को अपने हितों के संदर्भ में पूरी तरह उपयोग करने में समर्थ हैं। इस तरह से पूरा सच लोगों के पास नहीं है। हम सभी लोग प्रोपेगेंडा में विचारों के बहस से अपने आप को तैयार कर रहे हैं, बल्कि हम विचारों के भीतर सूचनाओं के परे जाकर पूरी समाज की स्थिति को सही से नहीं समझ पा रहे हैं।

कोरोना के समय में पत्रकारिता का जो स्वरूप है, वह दो तरह से की जा सकती है। एक पत्रकारिता यह है कि कोरोना के समय में लोगों में हताशा के बजाय लोगों में उत्साह और आत्मबल कैसे पैदा हो, अपने को समझने का एक तरह से अपने को आध्यात्म की ओर ले जाने का मार्ग बताएं। यह मैं नहीं मानता कि पत्रकार असल में मजदूर हो गया है। लेकिन यह बात सच है कि जैसे दूसरे कर्मी हैं, उसी तरह से पत्रकार किसी एजेंडा पर काम करने वाला एक जानकार कर्मचारी के रूप में मौजूद हो गया है। इसलिए पत्रकारिता या तो इसी तरह से व्यवसाय करते हुए, व्यवसाय को आगे बढ़ाते चली जाएगी, तब पत्रकारिता और पत्रकार के बीच में एक व्यवसाय पैदा होगा।

जैसा कि मैंने कहा, पत्रकारिता अभी सूचनाओं का व्यवसाय कर रही है। अगर वह पत्रकारिता के मूल्यों पर सूचनाओं का व्यवसाय करती, तो ज्यादा अफसोस नहीं था। असल में पत्रकारिता हिडेन एजेंया या दूसरों के एजेंडे पर ज्यादा काम कर रही है। पत्रकारिता के संदर्भ में मुझे आज भी प्रीतीश नंदी की बात ठीक लगती है कि पत्रकारिता मुनाफे का धंधा हो चुकी है। ये मुनाफे कई तरह के हैं। मूल बात है कि पत्रकारिता क्या अपने समय में हस्तक्षेप करने के लायक है या नहीं।

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