सीटों के बंटवारे का बहाना, अलग राह पकड़ने की तैयारी में जदयू-लोजपा

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पटना। एनडीए में कुछ ठीकठाक नहीं चल रहा। भाजपा की कार्यशैली से उसके सहयोगी खुश नहीं हैं। बिहार में राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के नेता उपेंद्र कुशवाहा के एनडीए को बाय-बाय बोलने के बाद अब लोजपा ने भी आंखें दिखानी शुरू कर दी हैं। बिहार की राजनीति पर इसका सीधा असर पड़ने वाला है। लोजपा संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष चिराग पासवान केंद्र सरकार से साढ़े 4 वर्षों में लिए गए सभी महत्वपूर्ण निर्णयों से हुए फायदे का हिसाब मांगने लगे हैं तो लोजपा के प्रदेश अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस ने साफ-साफ कह दिया है की सीटों के बंटवारे में लोजपा को 7 सीटों से कम मंजूर नहीं हैं। साथ ही यह अल्टीमेटम भी भाजपा को दे दिया है कि इसी वर्ष 31 दिसंबर तक सीटों के बंटवारे पर मुहर लग जानी चाहिए।

राजनीक विश्लेषकों का मानना है कि मौसम वैज्ञानिक के रूप में चर्चित लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान को अंदेशा  हो गया है कि एनडीए में भाजपा नेतृत्व की स्थिति दिन प्रतिदिन कमजोर होती जा रही है। लोजपा उससे अलग होने के बहाने तलाश रही है। सीटों का बहाना कर लोजपा भाजपा का साथ छोड़ सकती है। लोजपा सम्मानजनक सीटें न मिलने पर दूसरे रास्ते पर चलने को तैयार है। इसकी रणनीति लोजपा में बन भी चुकी है और जानकारों का मानना है कि बिहार में जदयू के साथ लोजपा का संबंध मजबूती के साथ रहेगा और बिहार की राजनीति में लोजपा-जदयू मिल कर कोई नया गुल खिलाएंगे।

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चर्चा है कि सीटों के बंटवारे को लेकर कांग्रेस का राजद के साथ तालमेल नहीं होने की स्थिति में बिहार में कांग्रेस का साथ जदयू और लोजपा देगी। इस परिस्थिति में बिहार में भाजपा अलग और राजद अलग रहेंगे, जबकि कांग्रेस, जदयू और लोजपा एक गुट में रहेंगे। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि कांग्रेस, जदयू और लोजपा की राजनीति शुरू से ही अल्पसंख्यक वोटों पर आधारित रही है।

भाजपा के साथ रहने पर जदयू को मुस्लिम वोट बैंक से हाथ धोने का खतरा लग रहा है। यही कारण है कि नीतीश कुमार ने पिछले माह सीटों के बंटवारे को लेकर  जहां बराबर-बराबर लड़ने का फैसला किया, वहीं अपने प्रवक्ताओं के माध्यम से भाजपा पर लगातार दबाव बनाए रखा कि बिहार में बड़े भाई की भूमिका में नीतीश कुमार रहेंगे। वहीं लोजपा बिहार में पार्टी के बढ़े हुए जनाधार को लेकर अधिक सीटों की मांग करती रही है। प्रदेश अध्यक्ष पशुपति पारस ने साफ-साफ कह दिया है कि 7 सीटों से कम पर समझौता है संभव नहीं है।

अब जिस तरह से चिराग पासवान ने नोट बंदी सहित केंद्र सरकार के तमाम बड़े फैसले के परिणाम का हिसाब किताब मांगा है, उससे बिहार ही नहीं, बल्कि देश की राजनीति गरमा गई है। इसके बाद ही भाजपा के बिहार प्रभारी भूपेंद्र यादव का आनन-फानन में चिराग पासवान से मीटिंग करने का निर्णय हुआ। सूत्र बताते हैं कि सीटों को लेकर जदयू और लोजपा तनिक भी हिलने वाले नहीं हैं और वैसी परिस्थिति में बहुत कम सीटों को लेने के बदले भाजपा बिहार में पार्टी को एकजुट रखने के लिए कोई नया रास्ता अपना सकती है।

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अगले 1 सप्ताह मैं स्पष्ट हो जाएगा कि बिहार में एनडीए की मजबूती रह पाती है या बड़ी टूट होती है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 2 दिनों बाद दिल्ली जाकर सीटों के बंटवारे सहित कई मुद्दों पर भाजपा पर दबाव बना कर बातें करेंगे और संभवतः नीतीश कुमार के दिल्ली से बिहार वापसी तक सब कुछ साफ हो जाएगा।

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