नीतीश ने भाजपा को फिर दिया झटका, एनएचआरसी का विरोध करेंगे

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अगर काम को आधार बना कर वोट मिलते हैं तो नीतीश बिहार में सर्वाधिक वोट हासिल करने का पूरा बंदोबस्त कर चुके हैं
अगर काम को आधार बना कर वोट मिलते हैं तो नीतीश बिहार में सर्वाधिक वोट हासिल करने का पूरा बंदोबस्त कर चुके हैं

पटना। पहले माना जा रहा था कि भाजपा में अमित शाह सबसे बड़े रणनीतिकार हैं और नरेंद्र मोदी मंजे हुए राजनीतिज्ञ, लेकिन जदयू के नीतीश कुमार अकेले सब पर भारी हैं। भाजपा क तमाम तीर-तुक्कों को वे बड़ी आसानी से बेअसर कर देते हैं। ताजा उदाहरण शनिवार को जदयू की पटना में हुई बैठक का लब्बोलुआब है, जहां यह तय हुआ कि असम में समान नागरिकता कानून (एनएचआरसी) पर केंद्र सरकार कोई बिल लाती है तो जदयू उसका विरोध करेगा। भाजपा के उन तमाम विवादास्पद मुद्दों से जदयू अपने को अलग रखेगा, जो भाजपा के कोर एजेंडे में शामिल रहे हैं। नीतीश कुमार की भाजपा को काबू में रखने की चाल खुद भाजपा के रणनीतिकार भी समझ नहीं पाते होंगे। राम मंदिर पर अध्यादेश लाने की चल रही जोरदार चर्चा को अपने दम पर नीतीश कुमार ने ही विराम दिलवाया। पहले अपने सिपहसालारों से बयान दिलवाया और आखिरकार अपने भी कह दिया कि राम मंदिर पर अध्यादेश लाने की कोशिश हुई तो जदयू इसका विरोध  करेगा। बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने इंटरव्यू में कहना पड़ा कि कोर्ट के जरिये ही राम मंदिर का हल निकाला जायेगा। सरकार कोई अध्यादेश नहीं लाएगी।

पिछली लोकसभा में अपनी दो जीती सीटों के मुकाबले भाजपा को अपनी ताकत का एहसास करा कर नीतीश ने बराबर-बराबर सीटों (17-17) पर समझौता किया। नीतीश इस हनक के साथ भाजपा से अपनी शर्तें लगातार मनवाते रहे हैं, जैसे बिहार ही नहीं, देश में वह वास्तविक भाजपा के बड़े भाई हैं। अभी तक नीतीश को बिहार में ही बड़े भाई के रूप में देखा जा रहा था, लेकिन अब वह देश में बड़े भाई की अपनी भूमिका का वह एहसास कराने लगे हैं।

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एनएचआरसी पर पहले भी उन्होंने विरोध जताया था। प्रफुल्ल महंत के नेतृत्व में असम गण परिषद का एक प्रतिनिधिमंडल पटना आकर नीतीश से मिला था। नीतीश ने तभी कहा था कि वह एनएचआरसी का विरोध करते हैं। शनिवार को जदयू की बैठक में उन्होंने साफ निर्णय ले लिया कि वह न सिर्फ एनएचआरसी पर बिल के खिलाफ हैं, बल्कि इस मुद्दे पर असम गण परिषद की होने वाली सभा में जदयू के दो प्रतिनिधि भी शामिल होंगे। इन प्रतिनिधियों में प्रशांत किशोर वह खुद होंगे।

नीतीश बार-बार यह कहते हैं कि वे किसी के भी साथ रहें, पर कोई भी काम तभी करेंगे, जब उनकी  अंतरात्मा गवाही देगी। पहले भी अंतरात्मा की आवाज पर वह अमल करते रहे हैं। नरेंद्र मोदी जब गुजरात के प्रधानमंत्री थे, तो बाढ़ राहत के नाम पर बिहार को उनकी भेजी रकम नीतीश ने इसलिए लौटा दी कि उन्होंने इस बारे में अखबारों में बड़े इश्तहार छपवाये थे। नीतीश ने मदद की रकम ही लौटा दी। बिहार में चुनाव प्रचार के लिए सरकार में साझीदार भाजपा ने नरेंद्र मोदी को बुलाना चाहा तो नीतीश ने जिद कर उनकी यात्रा स्थगित करा दी थी। नरेंद्र मोदी का नाम भाजपा ने जब प्रधानमंत्री के लिए गोवा अधिवेशन में तय किया तो नीतीश ने भाजपा से रिश्ता ही तोड़ लिया था।

अंतरात्मा की आवाज पर ही 2015 में वह लालू प्रसाद के साथ महागठबंधन के बैनर तले चुनाव लड़े और जब अंतरात्मा ने साथ छोड़ने के लिए कहा तो उन्होंने पल भर में राजद से रिश्ता तोड़ लिया और भाजपा से जोड़ लिया। नरेंद्र मोदी के साथ मंच शेयर करने से भी वह बचते रहे, लेकिन जब वे प्रधानमंत्री बन गये तो नीतीश ने पुरानी रंजिश छोड़ उनके साथ उठना-बैठना इसलिए शुरू किया कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तह वह देश के चयनित प्रधानमंत्री हैं।

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नीतीश कहते भी हैं कि वह क्राइम, करप्शन और कम्युनलिज्म से कोई समझौता नहीं करेंगे, चाहे कोई साथ रहे या जाये। यह सिर्फ उनका बयान भर नहीं, बल्कि इस पर अमल भी करते हैं। असम में एनएचआरसी का विरोध कर नीतीश ने देश में सेकुलर और एक अलग किस्म की छवि पेश करने की कोशिश की है। अगर कोई उन्हें पीएम मैटेरियल कहता है तो इसके यही सब तार्किक कारण हैं। वह दक्षिण के राज्यों में वहां के राजनीतिक कार्यक्रमों में जाते रहे हैं। भले ही वे दल भाजपा के खिलाफ ही क्यों न हों। असम में भी उन्होंने ठिकाना तलाश ही लिया है।

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शनिवार की बैठक में पार्टी ने भाजपा के उन मुद्दों पर असहमति के तेवर बरकरार रखने के निर्णय लिये, जिन पर पहले भी जदयू को आपत्ति रही है। मसलन कश्मीर में धारा 370, समान नागरिक संहिता (एनएचआरसी) और राम जन्मभूमि विवाद पर भाजपा की नीतियों के खलाफ जदयू अपने पुराने स्टैंड पर कायम रहेगा।

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हालांकि यह बैठक लोकसभा चुनाव में उम्मीदवारों के चयन के लिए मंथन के लिए बुलाई गयी थी। जदयू ने इसके लिए तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया है। वशिष्ठ नारायण सिंह, विजेंद्र यादव और ललन सिंह को इस कमेटी का मेंबर बनाया गया है। तीनों के सुझाव-सलाह पर ही उम्मीदवारों का चयन होगा। पार्टी ने तय किया है कि किसी विधायक-मंत्री को लोकसभा का प्रत्याशी नहीं बनाया जायेगा।

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