बिहार विधानसभा के चुनाव को समझना अभी किसी के बूते की बात नहीं

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बिहार विधानसभा चुनाव के लिए कल यानी 28 अक्तूबर को वोट पड़ेंगे। विपक्ष के बेरोदगारी जैसे मुद्दे के बावजूद चुनाव का जातीय आधार पर होना तय है।
बिहार विधानसभा चुनाव के लिए कल यानी 28 अक्तूबर को वोट पड़ेंगे। विपक्ष के बेरोदगारी जैसे मुद्दे के बावजूद चुनाव का जातीय आधार पर होना तय है।

पटना। बिहार विधानसभा के चुनाव को समझना फिलवक्त किसी के बूते की बात नहीं। इसके कई कारण हैं। बिहार में एलजेपी अब एनडीए का हिस्सा नहीं रही। यह घोषणा भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने नहीं की, बल्कि बिहार प्रदेश के दो नेताओं- पार्टी अध्यक्ष संजय जयसवाल और नीतीश सरकार में उपमुख्यमंत्री रहे सुशील कुमार मोदी ने की।

पिछले छह-आठ महीने से लगातार नीतीश सरकार की विफलताएं गिना रहे एलजेपी के नेता चिराग पासवान पर कभी भाजपा की जुबान नहीं खुली। यहां तक कि सीटों के बंटवारे के लिए बुलाए गये प्रेस कांफ्रेंस के पहले तक प्रदेश स्तर के नेताओं की जुबान बंद रही।

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कहा तो यह भी जा रहा है कि इससे मुंह फुलाये नीतीश कुमार ने साझा प्रेस कांफ्रेस में शामिल होने से पहली बार मना कर दिया। तब बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने आनन-फानन मीडिया सेंटर में संवाददाताओं को जानकारी दी कि नीतीश कुमार ही एनडीए के नेता हैं। जो उन्हें नेता नहीं मानते, उनका बिहार एनडीए से कोई लेना-देना नहीं। इशारा एलजेपी की ओर से था। बाद में साझा प्रेस कांफ्रेस में सुशील मोदी ने भी तकरीबन यही बात दोहरायी। आश्चर्य यह कि सबने एलजेपी और चिराग के खिलाफ बात जरूर की, लेकिन उनके पिता रामविलास पासवान के स्वास्थ्य को लेकर चिंता भी जाहिर की।

कई बार संदेह सच में बदल जाता है। इस बार बिहार में राजनीति का जो यह नया रूप दिख रहा है, वह संदेह के सच में बदलने जैसा है। हालांकि इसका प्रयोग झारखंड और दिल्ली के चुनावों में हो चुका है, जब केंद्र में एनडीए के साथ रहते हुए बीजेपी के खिलाफ जेडीयू और एलजेपी ने अपने उम्मीदवार उतारे थे। यानी राज्यों में कुश्ती और केंद्र में दोस्ती। बड़े-बड़े राजनीतिक विश्लेषक भी इस अबूझ पहेली को समझने-सुलझाने में नाकाम होंगे।

बिहार विधानसभा के चुनाव में सारी घटनाएं आश्चर्यजनक लगती हैं। बीजेपी के जिन नेताओं को टिकट नहीं मिल रहा, एलजेपी उन्हें टिकट देती जा रही है। अभी तक बीजेपी के कद्दावर नेता रहे और संघ व संगठन के पुराने चेहरे राजेंद्र सिंह को पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो एलजेपी ने उन्हें सादर स्वीकार कर लिया। बीजेपी के चार नेता अब तक एलजेपी में जा चुके हैं। वैसे भी एलजेपी ने ऐलान कर दिया है कि वह उन्हीं सीटों पर अपना उम्मीदवार उतारेगी, जहां जेडीयू के कैंडिडेट होंगे।

अब आते हैं टिकट बंटवारे पर। जेडीयू ने अपने 115 उम्मीदवार घोषित कर दिये हैं। इनमें 11 सिटिंग विधायकों के नाम नहीं हैं। कहा यह जा रहा है कि दागी-दबंग लोगों के टिकट जेडीयू ने काट कर साफ छवि के लोगों को उम्मीदवार बनाया है। लेकिन जिनके टिकट पार्टी ने काटे हैं, उनमें कई के परिजनों को टिकट दे दिये हैं। आरजेडी में भी दागी और दबंगों के परिजनों को टिकट दिये गये हैं। इनमें अनंत सिंह उर्फ छोटे सरकार ने जेल से आकर नामांकन भरा। जेल में होने के कारण उनको आगे कोई वैधानिक परेशानी न हो, इसलिए उन्होंने पत्नी का भी नामांकन दाखिल कराया। हालांकि इसके दूसरे कारण भी हो सकते हैं। अनंत सिंह की बेदाग पत्नी ही आखिर में उम्मीदवार रहें तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। इसी बहाने चुनाव के गुरुमंत्र अनंत सिंह अपनी पत्नी को दे गये हों। दुष्कर्म मामले में जेल में बंद राजबल्लभ यादव की पत्नी को आरजेडी ने टिकट दिया।

संदेह और सच्चाई की बात बिहार विधानसभा चुनाव की राजनीति के साथ इसलिए जोड़ कर देखी जा रही है कि एलजेपी के खिलाफ बीजेपी के प्रदेश नेतृत्व ने तब मुंह खोला है, जब सीट बंटवारे की बात हो रही है। दूसरा शक इसलिए कि बीजेपी में टिकट से बेदखल हुए लोग एलजेपी में ही क्यों जा रहे हैं। तीसरा यह कि बीजेपी को अगर एलजेपी से वास्तव में नफरत अब हुई है तो राम विलास पासवान केंद्र में मंत्री कैसे बने हुए हैं। अनुमान यह लगाया जा रहा है कि सारा खेल बीजेपी की ओर से प्रायोजित है।

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