बंगाल में यदि लोकतंत्र की जीत हुई है तो हिंसा-आगजनी के पीछे कौन?

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बंगाल में लोकतंत्र की जीत हुई है तो अभी चल रहे हिंसा-आगजनी औप हत्याओं के पीछे कौन है? यह सवाल आज की तारीख में काफी मौजू सवाल है।
बंगाल में लोकतंत्र की जीत हुई है तो अभी चल रहे हिंसा-आगजनी औप हत्याओं के पीछे कौन है? यह सवाल आज की तारीख में काफी मौजू सवाल है।
  • सुनील जायसवाल

बंगाल में लोकतंत्र की जीत हुई है तो अभी चल रहे हिंसा-आगजनी औप हत्याओं के पीछे कौन है? यह सवाल आज की तारीख में काफी मौजू सवाल है। आरामबाग, शीतलकुची, हावड़ा, उत्तर 24 परगना के जगतदल जैसे शहरी व कसबाई इलाके सहित करीब 700 गांवों में आगजनी, दुकानों व मकानों में दिनदहाड़े लूट, आधा दर्जन से अधिक हत्याएं, बलात्कार का नंगा नाच क्यों हो रहा है और कौन कर रहा है। विधानसभा चुनाव में जीते हुए पार्टी विशेष के उम्मीदवारों के वाहनों पर ईट-पत्थरों से हमले, पार्टी समर्थको पर लाठी-डंडे से जानलेवा हमले। कई समर्थकों को तो सीधे गोली मार दी गई है। कई स्थानों पर देशी बम विस्फोट कर दहशतगर्दी। वह भी इनमें से कई स्थानों पर राज्य पुलिस की मौजूदगी में।

यह सब अफगानिस्तान, सीरिया, कुर्दिश या पाकिस्तान के तालिबानी, हक़्क़ानी वाले इलाक़े की घटना नहीं है, बल्कि  यह सत्ता दखल के बाद देश के पश्चिम बंगाल में घटित हो रही हैं। अभी तो 36 घंटे भी नहीं पूरे हुए हैं बंगाल विधानसभा के आम चुनाव के नतीजे घोषित हुए।

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घटना के संबंध में स्थानीय सूत्रों, सोशल मीडिया, कुछ राष्ट्रीय न्यूज चैनलों से मिली जानकारी के अनुसार ये घटनाएं तांडव करने वाले शुम्भ-निशुम्भ और माँ काली के राज्य पश्चिम बंगाल में घटित हो रही हैं। बताया जा रहा है कि शुम्भ-निशुम्भ पर वरदहस्त प्रचंड बहुमत प्राप्त पार्टी की सुप्रीमो का है। तभी आतंक का तांडव किया जा रहा है। हैरान करने वाली बात यह है कि इस अकेली विपक्षी पार्टी ने ही निवर्तमान सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ़ चुनौती दी हो, ऐसी बात भी नहीं है। 2 मई 20211 को समाप्त हुई विधानसभा चुनाव प्रक्रिया में अन्य छोटी-बड़ी राष्ट्रीय, क्षेत्रीय पार्टियों की संख्या की कहें तो दो दर्जन से अधिक ने  सत्ताधारी पार्टी के ख़िलाफ़ खम ठोके थे। इनमें से कई तो इनके ही दत्तक पुत्र समान अल्पसंख्यकों के निर्दलीय व बैनर तले उतारे गए उम्मीदवार भी थे; जिनमें से एक का नाम राष्ट्रीय सेक्युलर मजलिस पार्टी भी है। इसने भी अपने 4 उम्मीदवार खड़े किए थे। मान्यता प्राप्त बड़ी राजनीतिक पार्टियों में वामदलों के सीपीएम, सीपीआई, एसएफआई, फारवर्ड ब्लाक, आरजेडी, समाजवादी पार्टी, बसपा, शिव सेना, आम आदमी, एनसीपी, झारखंड मुक्ति मोर्चा के भी सैकड़ों उम्मीदवार मैदान में थे या उनका समर्थन सत्ताधारी दल को था।

अब सवाल उठता है कि जब सत्ताधारी पार्टी राष्ट्रीय तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ 35 से अधिक राजनीतिक दल, दर्जनों निर्दलीय उम्मीदवार चुनावी अखाड़े में थे तो तमाम हमले सिर्फ और सिर्फ भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवारों व समर्थकों को चुन-चुन कर और पहचान कर ही क्यों किए जा रहे हैं। एक भी हमला फुरफुरा शरीफ समर्थित उम्मीदवारों पर क्यों नहीं किया गया? राज्य सरकार की पुलिस क्यों मूक दर्शक की भूमिका में है?  इस अराजकता के खिलाफ आपराधिक मामले व एफआईआर क्यों नहीं लिखे जा रहे हैं?

इस संबंध में कार्यवाहक मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से पत्रकारों ने सवाल किया तो नंदीग्राम की शर्मनाक हार को हजम नहीं कर पा रही नेत्री ने कहा कि सारी घटनाएं बीजेपी वाले अंजाम दे रहे हैं। आगजनी, लूट, मारपीट व हत्या की जो तस्वीरें दिखाई जा रही हैं, वे आज की नहीं, बल्कि पुरानी फ़ुटेज हैं। अफ़सोस मैं नहीं था वहां, वर्ना सत्तामद में राजधर्म को तिलांजलि दे चुकी चंडी पाठी कार्यवाहक मुख्यमंत्री से मेरा काउंटर सवाल होता कि तीसरी बार मुख्यमंत्री पद का शपथ लेने से पूर्व जो वह कह रही हैं, उसकी जानकारी उन्हें किसने दी। पीड़ित ही मुख्य दोषी है, इस प्रत्यारोप के आधार क्या हैं? जब उन्हें इतनी बड़ी सच्चाई की जानकारी है तो राज्य के पुलिस महकमे ने अभी तक किसी पर कार्रवाई क्यों नहीं की। एक भी संगीन मामले दर्ज क्यों नहीं किया गया?

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