नवरात्र खास- बरौनी का मंदिर, जहां मां का पट हमेशा खुला रहता है

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बेगूसराय (नंदकिशोर सिंह)। जिला के बरौनी  पंचायत-2 स्थित घट किण्डी दुर्गा मंदिर एक जागृत स्थान है। यह मंदिर पतित पावनी मां गंगा की पवित्र धरती के किनारे पर अवस्थित है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए बरौनी जंक्शन से उतर कर सड़क मार्ग द्वारा पश्चिम और दक्षिण दिशा में 3 किलोमीटर की ओर जाना पड़ता है। वहीं बरौनी फ्लैग रेलवे स्टेशन से दक्षिण पूर्व की दिशा में मात्र 1 किलोमीटर की दूरी पर यह मंदिर अवस्थित है। यही एक मंदिर है, जिसका पट चौबीसो घंटे खुला रहता है।

विविध संप्रदाय के उपवासकों को मनोवांछित फल देने वाली मां दुर्गा अपने अलौकिक रूप में नित्य विराजमान रहती हैं। बताते हैं कि यहां पर संकल्प मात्र से उपासकों को सिद्धि की प्राप्ति होती है। शारदीय नवरात्र में मां के साकार स्वरूप की पूजा यहां होती है और बाद में साल भर निराकार रूप से पिंडी की पूजा-आरती की जाती है। नवरात्र के दिनों में सप्तमी तिथि को मां की श्रृंगार और प्राण प्रतिष्ठा तथा अष्टमी तिथि को तांत्रिक एवं वैदिक दोनों प्रकार की पूजा की जाती है। इसे महानिशा पूजा कहते हैं।

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यहां की गई पूजा-अर्चना कभी बेकार नहीं जाती है। यहाँ रोज हजारों लोग  माथा टेकने आते हैं और मां का पूजन-अर्चन करते हैं। नौवीं तिथि को सुबह से ही खस्सी तथा रात्रि में महेष बलि दी जाती है। यहां दशमी तिथि को ही हवन एवं विसर्जन का प्रावधान है। इस दुर्गा मंदिर की स्थापना 24 सितंबर 1793 ईस्वी में परम तेजस्वी विद्वान पंडित स्व. शिवचरण उर्फ शिव प्रसाद पाठक  के द्वारा की गई थी। तब मंदिर फूस-मिट्टी का बना हुआ था। मंदिर की स्थापना के 25 साल बाद भयानक बाढ़ आई, जिसमें मंदिर बिल्कुल क्षतिग्रस्त हो गया। अंग्रेज सिपहसलार की मन्नतें पूरा होने पर पुनः मंदिर का जीर्णोद्धार अंग्रेज लॉर्ड मेना साहेब के आदेशानुसार 22 अक्टूबर 1817 ईसवी को पुजारी वंशज पंडित बाबूअन पाठक जी के द्वारा किया गया था।

उस समय खपरैल की दीवारों वाला मंदिर बनाया गया था। फिर 15 जुलाई 1971 को दुर्गा मंदिर  पूरब और पश्चिम बांध में सटाकर दुर्गा स्थान धर्मशाला का निर्माण जनहित वास्ते रामस्वरूप सिंह भगत जी के द्वारा मंदिर की आय से करवाया गया। यह पक्के का है और मंदिर से उत्तर खपरैल के दो कमरों वाला धर्मशाला और शौचालय भी है। मंदिर के पुजारी देवेंद्र पाठक और सुरेंद्र पाठक के अनुसार इस बार कलश की स्थापना 10 अक्टूबर को की जाएगी। 16 अक्टूबर को मां का जागरण, 19 अक्टूबर को विजयादशमी के दिन रात्रि में 1 से 2 बजे के बीच मां की प्रतिमा का विसर्जन गंगा नदी में किया जाएगा।

उन्होंने बताया कि यहां सालों भर मां का पट खुला हुआ ही रहता है। इस मंदिर में सालों भर पंडित पूजा सुबह शाम नियमित पूर्वक करते हैं। मां के प्रतिमा का विसर्जन करने के बाद बचे पुआल के अवशेष को गंगा नदी में से निकाल कर फिर से पुनः 20 अक्टूबर को प्राण प्रतिष्ठा पंडित के द्वारा पूजा-अर्चना शुरू हो जाती है।

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पुजारी के मुताबिक मां की इतनी बड़ी कृपा यहाँ पर है कि सालों भर दूर-दूर से लोग यहां कई बीमारियों से ग्रसित होकर आते हैं और इस मंदिर में पूजा-अर्चना करने के बाद सच्चे मन से यहां का प्रसाद ग्रहण करते हैं और वह अपनी बीमारियों से ठीक होकर घर वापस लौटते हैं। मंदिर के पुजारी सुरेंद्र पाठक ने बताया कि इस मंदिर पर पैरों में दर्द, हवा का प्रकोप, भूत-प्रेत अथवा जो भी शरीर में परेशानी लोगों को रहती  है, वह यहां पर आने के बाद ठीक हो जाती है। इस मंदिर पर पूजा को सफल बनाने के लिए दिन-रात रंजन यादव, गौरी प्रसाद सिंह, विजय प्रसाद, डॉ. दिवांशु प्रसाद मिश्र, लखन प्रसाद मिश्र, सुरेंद्र प्रसाद सिंह उर्फ टीपन सिंह, अमरजीत सिंह तैयारी में लगे हुए हैं।

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