दलित-सवर्ण का भेद मिटायें

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दलित, सवर्ण, आरक्षण, मनुवाद के समर्थन और विरोध की बातें पढ़ते-सुनते दिमाग सुन्न हो गया है और कान का बहरापन भी बढ़ने लगा है। मेरी जाति के बारे में अब तक जो अनजान थे या दुविधा में थे, वे आज जान लें। मैं राजपूत जाति के घराने में पैदा हुआ। समझ विकसित होते ही जातिसूचक उपनाम हटा कर अश्क लिख दिया। हलफनामा और इश्तहार के जरिये जनता को बताया कि मेरा नाम ओमप्रकाश सिंह नहीं, ओमप्रकाश अश्क है।
पांच बेटियों के उपनाम अश्क हैं और एकमात्र बेटे का नाम दीपक कुमार है। मनुवाद के खिलाफ खड़े चर्चित लेखक दिलीप मंडल काम के दौरान के साथी रहे हैं। न मैंने कभी जानना चाहा और उनकी कभी कोशिश रही कि हम दोनों किस जाति के हैं। मैंने तो मां-बाप का दिया उपनाम- सिंह हटा दिया। दिलीप जी तो अब भी खुद को जातिसूचक उपनाम के खांचे में रह कर अपने उपनाम- मंडल को ढो रहे हैं। कुछ और भी जाति विरोधी होने का उदाहरण जल्द ही पेश करूं तो आश्चर्य आप न करें। मेरा मानना है कि जिन मनुवादियो के खिलाफ हल्लाबोल चल रहा है, उन्हीं द्वारा किताब में कोई श्लोक है, जो याद नहीं, पर उसका भावार्थ याद है- जिसमें प्रत्यक्ष दुर्गुण नजर आये, उसका परित्याग कर देना चाहिए। जाति या समूहगत जातिसूचक उपनाम का पहले परित्याग करने की शपथ और संकल्प लें। नीतीश कुमार जी इसकी अगुआई के लिए सक्षम और समर्थ हैं, लेकिन अमुक यादव, फलाना कुशवाहा, फला मांझी, फला-ढिकाना पासवान से उम्मीद ही बेमानी है। उन्होंने ज्योंही उपनाम हटाये, उनकी दुकानदारी बंद। नीतीश जी, आप टायटल हटाओ, पांच परसेंट अतिरिक्त आरक्षण पाओ- का तोहफा देकर राष्ट्रीय रिकार्ड बना सकते हैं। अतिरिक्त पांच परसेंट आरक्षण के लालच में सवर्णों, मांझी, यादव, पासवान जैसे खांचों में बंटे दलित-पिछड़ों या यह कहें कि सर्व समाज का.समर्थन पा सकते हैं। आरक्षण को बरकरार रखते हुए इसके लिए होड़ जगाइए। सरस समाज स्वत: बन जायेगा। समाज सुधार की दिशा में ऐतिहासिक काम होगा।

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  • ओमप्रकाश अश्क
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