बिहार के महागठबंधन में बराबर का हक मांग रही कांग्रेस

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पटना। तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम से इतरायी कांग्रेस बिहार में महागठबंधन के साथ तो रहेगी, लेकिन राजद से कमतर की हिस्सेदारी उसे कबूल नहीं है। कांग्रेस के अंदरखाने यह चर्चा जोर पकड़ रही है कि बदले हालात में राजद को अपने यादव वोटरों पर ही भरोसा करना चाहिए। मुसलिम वोटों का ठेकेदार अप राजद नहीं रहा। मुसलिम वोट तो उसे बाय डिफाल्ट मिलते रहे हैं।

बदले हालात में कांग्रेस यह मान कर चल रही है कि नीतीश कुमार इमामबाड़ों में जाकर लाख सजदे कर लें, भाजपा से हाथ मिलाने के कारण मुसलमानों के वोट उन्हें अब नहीं मिलने वाले। कांग्रेस के पास इसका उदाहरण भी है। उसका कहना है कि पिछले दिनों जदयू अल्पसंख्यक मोर्चा के सम्मेलन में पांच हजार लोगों के जुटने का दावा किया गया था, लेकिन पांच सौ लोग भी नहीं जुटे। यह तो तब का ट्रेलर था, जब तीन राज्यों के चुनाव परिणाम कांग्रेस के पक्ष में नहीं आये थे। अब मुसलिम तबके में कांग्रेस में भरोसा जागा है। बिहार में मुसलमानों के 16 प्रतिशत वोट हैं, वैसे 20 प्रतिशत का दावा इस समुदाय के नेता करते हैं।

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यादवों की भी लगभग इतनी ही आबादी है, लेकिन कांग्रेस की कमजोर स्थिति के कारण मुसलिम वोटर राजद से जुड़ गये थे। राजद की हालत जब कमजोर पड़ी तो भाजपा के साथ रहते हुए उसकी कट्टरपंथी नीतियों का विरोध करने कारण मुसलिम वोटर नीतीश के जदयू के साथ जा सटे थे। गुजरात दंगों के कारण नरेंद्र मोदी के विरोध के कारण मुसलमानों का नीतीश में भरोसा बढ़ा था। जब लालू और नीतीश 2015 के विधानसभा चुनाव में साथ आये तो मुसमानों की बल्ले-बल्ले हो गयी थी। उनकी पसंद दोनों दल थे।

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नीतीश कुमार ने राजद से नाता तोड़ जब भाजपा से हाथ मिलाया और नरेंद्र मोदी से गलबहियां डालने लगे, इससे बिहार का मुसलिम तबका खफा हो गया है, लेकिन इनका वोट राजद में जाने की गारंटी भी नहीं है। इसलिए कि मुसलिम समुदाय को कांग्रेस में अब संभावनाएं नजर आने लगी हैं। खासकर तीन राजोयों के चुनाव परिणाम के बाद।

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