लोक का सांस्कृतिक पक्ष हमेशा से संवादधर्मी रहा है……………………
लोक संवाद करता है। उसके अपने तरीक़े हैं। आप किताबी ज्ञान के ज़रिए उससे संवाद स्थापित नहीं कर सकते। उससे संवाद करने के लिए...
छठ पर्व के स्त्री विमर्श को समझना चाहिए, यह उन्हीं का पर्व
शंभुनाथ
छठ पर्व एकमात्र ऐसा पर्व है जो स्त्रियों का है। इसमें पुरोहित ब्राह्मणों, पितृसत्ता तथा जाति भेदभाव का कोई स्थान नहीं है। यह...
कृष्णबिहारी मिश्र की दरवेशी दृष्टि के बारे में बता रहे मृत्युंजय
कृष्णबिहारी मिश्र का प्राण अपने गांव में बसता है। इससे कुछ बचता है तो वह बनारस में बसता है। बनारस में वे अपने बनारस...
गांधी का चिंतन-सोच और जीवन पद्धति ही हमारा मार्गदर्शक है
हरिवंश
गांधी को नमन। उनका स्मरण महज 02 अक्तूबर (जन्मदिन) या 30 जनवरी (पुण्यतिथि) तक के लिए ही नहीं है। उनका दर्शन जीवन के...
चंद्रशेखर जी को सीतामढ़ी आने से मना किया गया, पर वे आए
नागेंद्र प्रसाद सिंह
चंद्रशेखर (भूतपूर्व प्रधानमंत्री) की पुण्यतिथि पर उनसे जुड़े कई लम्हे दिलो-दिमाग में आने लगे हैं। सीतामढ़ी से जुड़ा एक प्रसंग याद...
पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर को उनकी पुण्यतिथि पर याद करते हुए
Chanchal Bhu
पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर को याद करते हुए। बलिया से उठा, बुलन्दी छू गया। ठेठ, खुद्दार, गंवई अक्स, खादी की सादगी में मुस्कुराता...
चंद्रशेखर की जेल डायरी इमरजेंसी के दौर को समझने का अहम दस्तावेज है
चंद्रशेखर की जेल डायरी में अनेक प्रसंग दर्ज हैं। इमरजेंसी के दौर की शासन व्यवस्था, राजनीतिक गतिविधियों को समझने के लिए यह अहम दस्तावेज...
इमरजेंसी में बड़े नेताओं, साहित्यकारों, पत्रकारों को यातनाएं भी दी गयीं
इमरजेंसी के दौरान बड़े नेताओं, साहित्यकारों, पत्रकारों को जेलों में ठूंस दिया गया। उन्हें कई तरह की शारीरिक और मानसिक यातनाएं दी गयीं। यह...
इमरजेंसी के दौर को समझने के लिए जेल डायरियां प्रामाणिक स्रोत हैं
हरिवंश
इमरजेंसी के दौर को समझने के लिए कविताएं, गजल आदि तो अहम दस्तावेज हैं हीं, उस दौर में जेल में लिखी गयीं डायरियां...
इमरजेंसी के इस दौर को कवियों ने भी अपने नजरिये से देखा, खूब रचा
इमरजेंसी 25 जून 1975 को लागू हुई। 21 माह (1975-1977) तक रही। इमरजेंसी के इस दौर को कवियों ने भी अपने नजरिये से देखा...