चारा घोटाला में स्कूटर पर सांढ़ ढोने की खबरें सीएजी के हवाले से बनती थीं

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सीएजी की रिपोर्ट के हवाले से चारा घोटाले की सूचनाएं खबर बनती थी। बचपन के दिनों में अक्सर सुनते थे कि सांढ़ स्कूटर पर ढोये गये। तब आश्चर्य होता था।
सीएजी की रिपोर्ट के हवाले से चारा घोटाले की सूचनाएं खबर बनती थी। बचपन के दिनों में अक्सर सुनते थे कि सांढ़ स्कूटर पर ढोये गये। तब आश्चर्य होता था।
सुरेंद्र किशोर, वरिष्ठ पत्रकार
सुरेंद्र किशोर, वरिष्ठ पत्रकार
सीएजी की रिपोर्ट के हवाले से चारा घोटाला की सूचनाएं खबर बनती थी। बचपन के दिनों में अक्सर सुनते थे कि सांढ़ स्कूटर पर ढोये गये। स्कूटर पर सांढ़ की बात से तब आश्चर्य होता था। घपले की समझ नहीं थी। बाद के दिनों में जब चारा घोटाला उजागर हुआ और समझ थोड़ी बढ़ी तो इस घोटाले का अहसास हुआ। शिद्दत से अहसास तो तब हुआ, जब इस मामले में जांच शुरू हुई। गिरफ्तारियां होने लगीं। मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे लालू प्रसाद की गिरफ्तारी हुई। तकरीबन चार दशक पहले हुए इस घोठाले की कहानी के बारे में नयी पीढ़ी को जानना चाहिए। यह कोशिश की है वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर ने। आइए देखते हैं, वे क्या-क्या चीजें बताते हैं चारा घोटाले के बारे मेः

नब्बे के दशक में बिहार सरकार के पशुपालन विभाग का वार्षिक बजट लगभग 75 करोड़ रुपए का था। किंतु घोटालेबाजों ने उसी विभाग के नाम पर उसी साल 215 करोड़ रुपए कोषागारों से निकाल लिए। ऐसा कई साल तक चलता रहा। साल दर साल रकम कुछ कम, कुछ ज्यादा निकलती रही। पर, बजट से अधिक जरूर थी।

रांची के कोषागार पदाधिकारी ने जब अधिक रकम की निकासी पर एतराज किया तो पटना सचिवालय के वित्त विभाग के संयुक्त सचिव ने उसे लिखकर फटकारा और कहा कि तुमको एतराज करने का कोई अधिकार नहीं है। रांची की विशेष अदालत में चारा घोटाले से संबंधित एक केस की सुनवाई के दौरान सी.बी.आई. के वकील ने हाल ही कहा था कि पशुपालन विभाग के पैसों में से 20 प्रतिशत आपूर्तिकर्ता को मिले और बाकी 80 प्रतिशत नेताओं व अफसरों को बंटे। यानी 100 प्रतिशत की लूट!

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चारा घोटाले को लेकर और भी सनसनीखेज व अभूतपूर्व घटनाएं प्रकाश में आती रही हैं। इस घोटाले में सजा पाकर अनेक अफसरों, नेताओं व सप्लायरों ने अपार कष्ट झेले। उनके शारीरिक-आर्थिक कष्टों के जगजाहिर होने के बाद यह उम्मीद की गई थी कि अन्य सरकारी-गैर सरकारी घोटालेबाज कोई घोटाला करने से पहले थोड़ा घबराएंगे। पर,ऐसा नहीं हुआ। देश-प्रदेश में सरकारी-गैर सकारी घोटालेबाज अब भी जनता के पैसे दोनों हाथों से लूट रहे हैं। हालांकि आज सत्ताधारी नेताओं में पहले की अपेक्षा काफी कम संख्या में घोटालेबाज और महा घोटालेबाज हैं।

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