सियासी बवंडर की ओर बड़ी तेजी से बढ़ रहा बिहार

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पटना। बिहार आहिस्ता-आहिस्ता सियासी बवंडर की ओर बढ़ रहा है। इसके संकेत बतौर तीन बातों पर गौर फरमायें। दिल्ली में नीतीश कुमार और अमित शाह जिस वक्त साथ बैठ कर प्रेस को बता रहे थे, एनडीए के एक घटक दल रालोसपा के सुप्रीमो उपेंद्र कुशवाहा महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव से बिहार के अरवल जिले के सर्किट हाउस में गुफ्तगू कर रहे थे। चौबीस घंटे भी नहीं बीते कि एनडीए के दूसरे घटक दल लोक जनशक्ति पार्टी के नेता और राम विलास पासवान के बेटा चिराग पासवान को तेजस्वी यादव से फोन पर बातचीत करने का शौक तर्रा गया। तारीक अनवर ने शरद पवार की एनसीपी का साथ छोड़ने के बाद शनिवार को कांग्रेस का दामन थामन लिया। उनकी जगह बिहार एनसीपी की कमान पूर्व शिक्षा मंत्री नवल किशोर शाही ने फिलहाल संभाली है। ये घटनाक्रम इशारा करते हैं कि आने वाले दिनों में बिहार में सियासी घमासान तेज होगा। भारी भगदड़ की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।

भगदड़ कहां और क्यों मचने वाली है और किसका सिरदर्द बढ़ने वाला है, यह भी जान लें। बराबर-बराबर सीटों पर लड़ने के भाजपा-जदयू के फैसले को 2014 के साथी उपेंद्र कुशवाहा पचा नहीं पा रहे हैं। जाहिर कि इसे पचा पाना उनके लिए आसान भी नहीं होगा। इसलिए कि दो सीटों पर जीतने वाला बराबर का हिस्सेदार हो गया और तीन सीटें जीतने वाले से बातचीत भी भाजपा ने मुनासिब नहीं समझी। नीतीश के साथ उनकी खुन्नस तो जगजाहिर है। इसलिए फिलहाल मुकाबले में खड़े महागठबंधन से उन्हें सम्मान मिलता है तो वह पाला बदलने में संकोच नहीं करेंगे।

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भाजपा को समझौते के मुताबिक 2014 में जीती अपनी 22 सीटों में से तकरीबन 6-7 सीटों को खाली करना होगा। संयोग से बेगूसराय सीट भोला बाबू के निधन से खाली हो गयी है। फिर भी पांच-छह सीटों पर पूर्व में विजयी उम्मीदवारों का पत्ता काटना होगा। जाहिर है कि ऐसे में उनकी नाराजगी बढ़ेगी, जिनकी सीटें कटेंगी और जो दल उन्हें टिकट देने को तैयार होगा, वे उधर का ही रुख कर लेंगे। महागठबंधन के अलावा कोई ठौर उन जैसे लोगों के लिए नहीं बचता है।

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महागठबंधन में जीतन राम मांझी की पार्टी हम (से) थोड़ी कमजोर जरूर है, लेकिन उसके वोटों का कुछ आधार है। कांग्रेस ने सांगठनिक फेरबदल कर अपनी स्थिति थोड़ी सुधारी है। राजद मुसलिम-यादव के अपने पारंपरिक जनाधार के कारण किसी से कमजोर नहीं दिख रहा। अगर लोजपा, रालोसपा साथ आ जाएं तो टिकटों के बंटवारे में थोड़ी दिक्कत महागठबंधन को जरूर होगी, लेकिन सूझबूझ से मसला हल हो सकता है। भाजपा के विक्षुब्ध आ जाएं तो उन्हें भी यथोचित सम्मान देना होगा। इसलिए यह प्रबल आशंका है कि अगले कुछ दिनों में बिहार सियासी बवंडर का शिकार अवश्य बनेगा।

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