बिहार में अब हर घर बिजली पहुंचाने का काम समय से पहले पूरा

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पटना। एक नवम्बर बिहार के इतिहास में एक स्वर्णिम दिवस के रूप में दर्ज हो गया, जब मुख्यमंत्री ने घोषणा की कि बिहार के सभी इच्छुक 1.19 करोड़ घरों में बिजली पहुंचा दी गयी है।  इस तरह पूर्ण विद्युतीकरण का गौरव प्राप्त करने वाला बिहार देश का आठवां राज्य बन गया है। यह उपलब्धि यूँ ही नहीं प्राप्त हुई, बल्कि इसके लिए सीमित संसाधनों के बावजूद सरकार द्वारा लक्ष्य निर्धारित कर निरंतर प्रयास और प्रोत्साहन का बहुत बड़ा योगदान रहा है। सरकार ने हर घर बिजली पहुंचाने का काम समय से पहले पूरा कर लिया है

इसके पूर्व दिसम्बर 2017 तक सभी 39073 गाँवों के विद्युतीकरण का काम पूरा कर दिया गया था और अप्रैल 2018 तक योजना अनुसार 1,06,267 बसावटों के विद्युतीकरण का कार्य भी पूरा कर लिया गया। 2011 की जनगणना के अनुसार बिहार में कुल घरों की संख्या 1.78 करोड़ मानी गई है। सरकार और बिजली विभाग द्वारा जो सर्वेक्षण कराया गया, उसके अनुसार बिजली का कनेक्शन लेने के इच्छुक घरों की संख्या 1.19 करोड़ थी और इसी को लक्ष्य मान कर घर घर बिजली पहुँचाने का काम शुरू हुआ और इसे पूरा करने का लक्ष्य 31 दिसम्बर 2018 तय किया गया था। इसे एक बड़ी उपलब्धि ही मानी जाएगी कि हर घर बिजली पहुँचाने का काम अपने तय समय सीमा से दो महीने पहले ही अक्टूबर में ही पूरा कर लिया गया। इसमें बिलिंग साइकिल में संम्मिलित कुल ग्रामीण उपभोक्ताओं की संख्या 95.6 लाख है।

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सुदूर और दुर्गम पहाड़ी,जंगली इलाकों में बिजली के खम्भे और तार पहुँचाना बहुत ही मुश्किल काम होता है। इस वजह से कुछ इलाकों में ग्रीड से बिजली की सप्लाई नहीं हो पाती है और उस इलाके के लोग बिजली की सुविधा से वंचित रह जाते हैं। ऐसे इलाकों में बिजली पहुँचाने के लिए सरकार द्वारा वैकल्पिक ऊर्जा के अंतर्गत अक्षय ऊर्जा यानी सौर्य ऊर्जा के द्वारा बिजली पहुँचाने का काम भी तेजी से हो रहा है। अक्षय ऊर्जा स्रोतों से विद्युत् उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए योजना के अंतर्गत 229 मेगावाट विद्युत् उत्पादन का लक्ष्य था और इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सभी 18 इकाइयों के माध्यम से 229 मेगावाट विद्युत् उत्पादन प्रारंभ हो गया है।

आम लोगों में इसकी जानकारी की कमी के कारण यह धारणा बन जाती है कि सौर्य ऊर्जा नकली ऊर्जा है और ग्रीड से मिलने वाली बिजली ही असली बिजली है और वे सरकार द्वारा सौर्य ऊर्जा से बिजली की आपूर्ति से संतुष्ट नहीं रहते हैं और इसके बदले ग्रीड से बिजली आपूर्ति की मांग करते हैं, लेकिन वास्तव में अक्षय ऊर्जा ही असली ऊर्जा है और कोयला, तेल से प्राप्त होने वाली बिजली का उत्पादन कोयला, तेल, पानी की उपलब्धता पर निर्भर है और इसके लगातार उपयोग से इसके भण्डार के ख़त्म होने की सम्भावना है, जबकि सौर्य ऊर्जा का स्रोत सूर्य है, जो सृष्टि के अंत तक सदा सहज रूप से उपलब्ध है और इसकी रौशनी और ऊर्जा के ख़त्म होने की सम्भावना न के बराबर है।

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भविष्य में तेल कोयला आदि से बनायीं जाने वाली बिजली महँगी और कम होती जाएगी और सौर्य ऊर्जा, जिसे हम अक्षय ऊर्जा भी कहते है, ही बिजली बनाने का सबसे बड़ा स्रोत हो जायेगा, जो न सिर्फ आर्थिक, बल्कि पर्यावरण सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी सभी के लिए अनुकूल होगा। बिजली बनाने और घर घर तक पहुँचाने में बिजली के संचरण और वितरण की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रहती है, क्योंकि इसके बगैर बिजली उपलब्ध रहने पर भी आप उसे एक जगह से दूसरी जगह तक नहीं पहुंचा पाते हैं। बिजली के खर्च में कटौती और गुणवत्ता में वृद्धि के लिए संचरण और वितरण की व्यवस्था को भी दुरुस्त होना अत्यंत आवश्यक है। इस दिशा में भी राज्य में काफी सुधर और विकास हुआ है। 2005 में जहाँ 700 मेगावाट बिजली के वितरण की क्षमता थी, वहीँ आज 5000 मेगावाट से ज्यादा बिजली का ट्रांशमिशन किया जा रहा है, जबकि क्षमता 10000 मेगावाट तक की हो गयी है।  2018-19 में पीक ऑवर में विद्युत् आवश्यकता (50% कृषि लोड सहित) 8774 मेगावाट की हो गयी है। वर्तमान में राज्य में अवस्थित विद्युत् उत्पादन इकाइयों से मार्च ,2019 तक उत्पादन की क्षमता 2089 मेगावाट है, बाकी की आपूर्ति अन्य राज्यों से होती है ।

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ग्रामीण विद्युतीकरण के विभिन्न चरणों के कार्य के दौरान यह बात उभर कर आई कि ग्रामीण क्षेत्रों में वर्षों पुरानी संरचनाएं पर्याप्त मात्रा में जर्जर हालत में हैं, क्योंकि पूर्व की राज्य योजना का आकार सीमित था एवं ग्रामीण विद्युतीकरण योजना की 11वीं योजना फेज 2 के अंतर्गत ही इसकी स्वीकृति मिली थी एवं इसमें भी आकार सीमित ही था। बड़े पैमाने पर ग्रामीण क्षेत्रों के उपभोक्ताओं को एल.टी. लाइन में न्यूट्रल के बिना ही विद्युत् की आपूर्ति की जा रही है। उपभोक्ताओं की संख्या में दिन-प्रतिदिन बढ़ोत्तरी होने के कारण विद्युत संरचनाओं पर भी भार बढ़ता जा रहा है, जिससे पुराने या कम क्षमता वाले संचरण लाइनों पर भार बढ़ने से बराबर तार टूटने का खतरा बना रहता है एवं उपभोक्ताओं को गुणवत्तापूर्ण बिजली उपलब्ध कराने में भी कठिनाइयाँ होती हैं।

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