झारखंड में अब स्कूली बच्चों को मिलेगी साइकिलः रघुवर दास

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झारखंड में स्कूल मर्जर की स्थिति में कक्षा 6 के जिन बच्चों को विद्यालय आने में 2 किलोमीटर से अधिक दूरी तय करनी होगी, उन्हें सरकार साइकिल देगी। साथ ही अधिक दूरी होने पर गांव में प्राथमिक विद्यालयों के बच्चों के लिए बस सेवा शुरू होगी।

रांची। मुख्यमंत्री श्री रघुवर दास ने कहा कि सरकार ने स्कूलों में संसाधनों और आधारभूत संरचनाओं पर विशेष ध्यान दिया है। स्कूलों में बेंच-डेस्क पहुंचायी जा रही है, सभी स्कूलों में बिजली उपलब्ध कराने पर भी कार्य किया जा रहा है। श्री दास आज ज्यूडिशियल एकेडमी धुर्वा में ज्ञानसेतु व ई-विद्यावाहिनी कार्यक्रम में लोगों को संबोधित कर रहे थे। इस मौके पर उन्होंने ज्ञानसेतु के वर्क बुक का लोकार्पण भी किया।

मुख्यमंत्री ने कहा कि मैं शिक्षा विभाग की मंत्री और सभी अधिकारियों को बहुत-बहुत धन्यवाद देना चाहता हूं, जिन्होंने नवाचार ज्ञान सेतु बनाने का काम किया है। मुझे पूर्ण विशवास है कि ज्ञान सेतु आने वाले समय में सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता को बनाये रखने में मदद करेगा। ज्ञानसेतु, ई-विद्यावाहिनी एवं परिवहन व्यवस्था के माध्यम से विद्यालयों का पुनर्गठन होगा। साथ ही शिक्षा में गुणात्मक सुधार होगा।

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उन्होंने कहा कि मानव संसाधन इस देश और राज्य का सबसे महत्वपूर्ण संसाधन है। अगर हमें राज्य का विकास करना है तो हमारी सबसे पहली प्राथमिकता होनी चाहिए कि राज्य का प्रत्येक नागरिक शिक्षित हो। ग्रामीण क्षेत्रों का विकास हो, महिलाएं अधिकार संपन्न हों। स्वास्थ्य और पौष्टिकता में सुधार हो। 4 सालों में राज्य में शिक्षा के प्रसार में काफी परिवर्तन आया है। हमें सबसे ज्यादा प्राथमिक शिक्षा पर ध्यान देना चाहिए।

मुख्यमंत्री श्री रघुवर दास ने आज हिंदी दिवस के अवसर पर सभी को शुभकामएं देते हुए कहा कि हिंदी से राष्ट्रीयता की भावना आती है। दुनिया में जितने भी विकसित देश हैं, वे अपनी मातृ भाषा ही बोलते हैं। आप कहीं भी चले जायें चीन, जर्मनी में भी लोगों को अंग्रेजी जानते हुए भी वे अपनी मातृभाषा बोलते हैं। हिंदी हमारी मातृभाषा है। इसका प्रयोग हमें प्राथमिक भाषा के रूप में करना चाहिए। हिंदी आज वैश्विक होती जा रही है। उन्होंने कहा कि अभी मैं चीन गया था। वहां बीजिंग में एक यूनिवर्सिटी है, जहां बोधगया का एक लड़का हिंदी का अध्यापक है। आजादी के इतने साल बाद भी हमारी गुलाम मानसिकता बरकरार है। अंग्रेज चले गये, लेकिन अंग्रेजीयत छोड़ गये। इस गुलाम मानसिकता से हमें उबरना है। हिंदी को हमें 21 वीं सदी की भाषा बनाना है।

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