जानिये, कैसे आदिवासियों व दलितों को अखबारों की सुर्खियां बनने से रोका जा सकता है

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जानिये, कैसे आदिवासियों व दलितों को अखबारों की सुर्खियां बनने से रोका जा सकता है

एससी-एसटी सेल द्वारा एकदिवसीय सेमिनार का आयोजन

कोलकाता: न्यू अलीपुर कॉलेज के तत्वावधान में कॉलेज के एससी-एसटी सेल द्वारा एकदिवसीय सेमिनार का आयोजन किया गया। इस सेमिनार का मुख्य विषय ‘लीगल अवेयरनेस’ यानि लोगों को कानूनी रुप से जागरूक करना था। सेमिनार का उद्घाटन कॉलेज के प्राचार्य जयदीप सारंगी ने किया जिसमे मुख्य वक्ता, उच्च न्यायालय के वकील अभिषेक वर्मा एवं अधिवक्ता योगेश चंद्र चौधरी, कॉलेज की प्राध्यापक एकता हेला उपस्थित थे।

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तकरीबन 20 लाख आदिवासी अपने मौलिक अधिकारों से हैं वंचित

इस अवसर पर एकता हेला ने कहा, “आज 20 लाख आदिवासी अपने जल, जंगल और जमीन से विस्थापित होने के कगार पर हैं। रोज किसी न किसी दलित के मरने की खबर अखबारों की सुर्खियों में होती है। फिर भी कानून की जानकारी के अभाव में सब चुप रहते हैं। ऐसे में जरूरत है कि आदिवासी और दलित अपने अधिकारों के प्रति सजग हों और कानून के साथ खड़े हों।“

प्रताड़ना की शिकायत एससी/एसटी एक्ट के तहत होता है

कार्यक्रम में उपस्थित अभिषेक वर्मा ने कहा, “अनुसूचित जाति और जनजाति का कोई भी व्यक्ति अपने ऊपर हुए किसी भी तरह की प्रताड़ना की शिकायत एससी-एसटी एक्ट के तहत कर सकता है। वर्तमान में बहुत सी घटनाएं ऐसी घटी हैं जिसके लिहाज से इस एक्ट का महत्व बढ़ जाता है। इस एक्ट को लेकर बच्चों को जागरूक करना बहुत जरूरी हो गया है।“

इसे एक मुहिम बनाना होगा

सेमिनार में मंच का संचालन एससी-एसटी सेल की कन्वेनर देबारती दास ने सफल रुप से किया। इस दौरान कॉलेज के छात्रों के साथ-साथ कई एससी-एसटी सेल से जुड़े कई अधिकारियों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और कार्यक्रम में उपस्थित लोगों ने इसकी काफी सराहना भी की। लोगों ने उम्मीद जतायी कि भविष्य में आगे भी इस तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता रहेगा। इसे एक मुहिम की तरह लेकर आगे निरंतर बढ़ाना होगा ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग लाभान्वित हो सकें।

डालते हैं एक नजर एससी/एसटी एक्ट पर

अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लोगों पर होने वाले अत्याचार और उनके साथ होनेवाले भेदभाव को रोकने के मकसद से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम, 1989 बनाया गया। जम्मू कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में इस एक्ट को लागू किया गया। इसके तहत इन लोगों को समाज में एक समान दर्जा दिलाने के लिए कई प्रावधान किए गए और इनकी हरसंभव मदद के लिए जरूरी उपाय किए गए।

अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों पर होनेवाले अपराधों की सुनवाई के लिए विशेष व्यवस्था की गई ताकि ये अपनी बात खुलकर रख सकें। हाल ही में एससी-एसटी एक्ट को लेकर उबाल उस वक्त सामने आया, जब सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून के प्रावधान में बदलाव कर इसमें कथित तौर पर थोड़ा कमजोर बनाना चाहा।

सुप्रीम कोर्ट ने एससीएसटी एक्ट में किया था यह बदलाव

सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट के बदलाव करते हुए कहा था कि मामलों में तुरंत गिरफ्तारी नहीं की जाएगी। कोर्ट ने कहा था कि शिकायत मिलने पर तुरंत मुकदमा भी दर्ज नहीं किया जाएगा। शीर्ष न्यायालय ने कहा था कि शिकायत मिलने के बाद डीएसपी स्तर के पुलिस अफसर द्वारा शुरुआती जांच की जाएगी और जांच किसी भी सूरत में 7 दिन से ज्यादा समय तक नहीं होगी। डीएसपी शुरुआती जांच कर नतीजा निकालेंगे कि शिकायत के मुताबिक क्या कोई मामला बनता है या फिर किसी तरीके से झूठे आरोप लगाकर फंसाया जा रहा है? सुप्रीम कोर्ट ने इस एक्ट के बड़े पैमाने पर गलत इस्तेमाल की बात को मानते हुए कहा था कि इस मामले में सरकारी कर्मचारी अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकते हैं।

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