पं. अच्युतानंद मिश्र, जनसत्ता और महाश्वेता देवी का स्तंभ

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पं. अच्युतानंद मिश्र जब ‘जनसत्ता’ के संपादक थे तो वे महाश्वेता देवी से स्तंभ लिखवाते थे। महाश्वेता जी बांग्ला में लिखकर देतीं।
पं. अच्युतानंद मिश्र जब ‘जनसत्ता’ के संपादक थे तो वे महाश्वेता देवी से स्तंभ लिखवाते थे। महाश्वेता जी बांग्ला में लिखकर देतीं।
  • कृपाशंकर चौबे
कृपाशंकर चौबे
कृपाशंकर चौबे

पं. अच्युतानंद मिश्र जब ‘जनसत्ता’ के संपादक थे तो वे महाश्वेता देवी से स्तंभ लिखवाते थे। महाश्वेता जी बांग्ला में लिखकर देतीं। मैं हिंदी में अनुवाद करता था। बाद में अच्युता जी की प्रेरणा से मैंने महाश्वेता देवी के जीवन व साहित्य पर केंद्रित एक पुस्तक ‘महाअरण्य की मां’ लिखी। बांग्ला में वह ‘महाअरण्येर मां’ शीर्षक से प्रमा प्रकाशनी से छपी। बांग्ला समाज में वह किताब खूब समादृत रही। महाश्वेता देवी ने बांग्ला की जगह हिंदी में छपी पुस्तक पढ़ी। वे हिंदी आराम से पढ़ लेती थीं। शांतिनिकेतन में उन्होंने आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी से हिंदी सीखी थी।

किताब पढ़ने के बाद स्वयं महाश्वेता दी ने कोलकाता पुस्तक के एक कार्यक्रम में कहा था, “अपने बारे में तो मैं भी इतना नहीं जानती थी।” उसके बाद मैं जो कुछ भी लिखता, महाश्वेता देवी उसे आग्रहपूर्वक पढ़तीं। मेरी किताब ‘समाज, संस्कृति और समय’ पढ़कर उन्होंने बांग्ला में समीक्षा लिखी, जो बांग्ला दैनिक स्टेट्समैन के 28 सितंबर 2008 के अंक में छपी। उस समीक्षा में महाश्वेता जी ने लिखा था, “कृपाशंकर बंगाल के समाज और संस्कृति के गंभीर अध्येता हैं। बंगाल की संस्कृति के बारे में उनकी अनुभूति और चेतना तीक्ष्ण है। इसका एहसास किताब के सुलिखित निबंधों में होता है। मूलत: एक हिंदी भाषी लेखक होते हुए भी कृपाशंकर चौबे ने अपनी रचनाओं से प्रमाणित कर दिया है कि भिन्न भाषी होते हुए भी जो जिस राज्य में रहता है, वहाँ के समाज, संस्कृति और भाषा-साहित्य पर गंभीर अनुशीलन कर सकता है।

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कृपाशंकर की बंगाल से संबद्ध अन्य उल्लेखनीय पुस्तकें हैं ‘मृणाल सेन का छाया लोक’, ‘नजरबंद तसलीमा’, ‘करुणामूर्ति मदर टेरेसा’, ‘चल कर आए शब्द’, और ‘पानी रे पानी’। ‘समाज, संस्कृति और समय’ पुस्तक में संकलित निबंध ‘बंगाल में दलितों की स्थिति’ में कृपाशंकर ने सवाल खड़ा किया है कि यदि बंगाल में जातिवाद और अस्पृश्यता नहीं है, तो चुनी कोटाल की मौत क्यों हुई? लेखक ने बंगाल में सर्वहारा के निर्मम उपहास का भी विवरण दिया है तो ‘बर्बर सभ्यता के बीच’ शीर्षक निबंध में उन्होंने अंडमान के जारवा आदिवासियों के दु:सह्य जीवन का हृदयस्पर्शी चित्र खींचा है। ‘समाज, संस्कृति और समय’ पुस्तक के कई निबंधों में कृपाशंकर चौबे ने साहित्य में पत्रकारिता का अत्यन्त ही रचनात्मक इस्तेमाल किया है। बांग्ला कविता,  गद्य साहित्य,  चित्रकला,  मूर्तिकला,  रंगमंच,  सिनेमा के सांप्रतिक परिदृश्य पर कई बहुमूल्य आलोचनात्मक निबंध हैं। पुस्तक में कुल 120 निबंध, लेख व टिप्पणियाँ हैं, जो पश्चिम बंगाल की संस्कृति और समाज के बारे में व्यापक ढंग से पाठक का परिचय कराने में सक्षम हैं।”

बांग्ला दैनिक स्टेट्समैन के 14 जून 2009 के अंक में महाश्वेता देवी ने एक और टिप्पणी लिखी थी, जिसका शीर्षक था ‘साहित्येर मेलबंधने अक्लांत कर्मी कृपाशंकर चौबे।’ उसमें उन्होंने लिखा था, “कृपाशंकर चौबे बांग्ला-हिंदी के बीच आदान-प्रदान के क्षेत्र में एक अक्लांत सैनिक हैं। वे मेरी बांग्ला पत्रिका ‘वर्तिका’ के संपादन में आनंदपूर्वक सहयोग करते हैं। उन्होंने आदिवासी अंचलों में मेरे साथ अनेक यात्राएं की हैं। मुझ पर उन्होंने ‘महाअरण्येर मां’ शीर्षक पुस्तक लिखी है जिसके 21 संस्करण छप चुके हैं।” महाश्वेता देवी ने ‘किछु कथा’ शीर्षक एक अन्य टिप्पणी में लिखा था, “कृपाशंकर चौबे एक ऐसे व्यक्ति हैं, जिनके बारे में कुछ लिख सकने पर मुझे बहुत आनंद मिलता है। कृपाशंकर पेशे से पत्रकार हैं किन्तु मुख्यतः गद्य लेखक हैं। साहित्य के सम्बन्ध में उनका अध्ययन-अनुशीलन विस्मयकारी है। ऐसे लेखक कम ही पाए जाते हैं। कृपाशंकर मेरे अत्यंत ही स्नेहभाजन हैं। ये साहित्य व पत्रकारिता के क्षेत्र में सुप्रतिष्ठित हैं। उनके पास बैठकर साहित्य सम्बन्धी उनकी बातें सुनकर पाती हूँ कि वे कितने तीक्ष्ण बुद्धिजीवी हैं। ऐसा उज्ज्वल मन, मेधा और बुद्धि का संगम कम ही देखने को मिलता है।” महाश्वेता देवी की ये टिप्पणियां उनके ममत्व का सबूत हैं। महाश्वेता देवी (14 जनवरी 1926-28 जुलाई 2016) की जयंती पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि।

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