जिन्हें बंधुआ समझते थे, उस समाज ने जमकर दिया एनडीए का साथः सुशील मोदी
पटना। अपनी बेटी-बहू को भी नहीं जिता पाये लालू-मुलायम। जिन्हें बंधुआ समझते थे, उस समाज ने जमकर दिया एनडीए का साथ। यह कहना है बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी का। वे महागठबंधन पर जम कर बरसे। उन्होंने कहा कि जनादेश 2019 डंके की चोट पर यह कठोर संदेश देता है कि लोकतंत्र में न कोई समुदाय किसी का बंधुआ वोटर है, न अब थेथरोलाजी से जनता को गुमराह किया जा सकता है। लालू प्रसाद की पार्टी जिस समाज को अपना बंधुआ समझती थी, उस समाज के पांच उम्मीदवार एनडीए के टिकट पर जीते। दूसरी तरफ राजद का कोई प्रत्याशी नहीं जीत पाया।
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उप मुख्यमंत्री ने कहा कि लालू प्रसाद की पुत्री मीसा भारती और समधी चंद्रिका राय को भी पराजय का सामना करना पड़ा, जबकि यदुवंशी समाज के नित्यानंद राय, अशोक यादव, रामकृपाल यादव, दिनेश चंद्र यादव और गिरधारी यादव एनडीए के टिकट पर विजयी रहे। इसका मतलब साफ है कि जिस यदुवंशी समाज को लालू अपना बंधुआ समझते थे, वह समाज अब वैसा नहीं रहा।
श्री मोदी ने कहा कि पड़ोसी उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव के परिवार की बहू डिम्पल यादव और अन्य रिश्तेदारों की हार भी यही साबित करती है कि कोई समुदाय किसी का बंधुआ नहीं, बल्कि देशभक्ति, खुशहाली और विकास के लिए विवेक-सम्मत मतदान करता है। उसके लिए देश पहले है, समाज बाद में।
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पांच साल तक गरीबी और आतंकवाद से लड़ने की जो बड़ी लकीर खींची, उसके सामने जात-पात की राजनीति बेमानी हो गई। लोकतंत्र जनता के ऐसे फैसलों से बचा है, किसी की पदयात्रा करने की नौटंकी से नहीं। उनका इशारा तेजस्वी यादव की ओर था, जिन्होंने बिहार में न्याय यात्रा निकाली थी।
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भाजपा प्रवक्ता राजीव रंजनउधर भाजपा प्रवक्ता सह पूर्व विधायक राजीव रंजन ने कहा है कि बिहार की जनता ने जात-पात की राजनीति खारिज कर दी है। उन्होंने कहा कि हालिया लोकसभा चुनाव में बिहार की जनता ने यह पूरी तरह साफ कर दिया है कि जात-पात और धर्म के नाम पर समाज में फूट डाल, राज करने वाली वंशवादी राजनीति के दिन अब लद चुके हैं। यही वजह है कि इसी नीति पर चलने वाले विपक्ष का जनता ने बिहार में सफाया कर दिया है।
उन्होंने कहा कि बिहार के दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों ने एनडीए के पक्ष में भरपूर में मतदान किया है। दलितों के लिए आरक्षित बिहार की सभी 6 सीटें आज एनडीए के खाते में हैं। इसके अलावा राज्य में 14 लोकसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां जनसंख्या के आधार पर अल्पसंख्यक वोटरों की तादाद 11 से लेकर 68 फीसदी तक है। इनमें से 13 सीटें एनडीए के खाते में गयी हैं। एनडीए के पक्ष में वोटरों का यह बढ़ता रुझान साफ़ बता रहा है कि लोगों में नमो-नीतीश द्वारा बिहार के हित में किए जा रहे कार्यों के प्रति विश्वास बढ़ रहा है।
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दरअसल लोगों ने नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए सरकार के 13 साल के कार्यकाल में बिहार में वह सब होते हुए देखा है, जो पहले उनके लिए स्वप्न मात्र था। 2014 में मोदी जी के सत्ता में आने के बाद विकास की गति और तेज गयी और सफलता के कई नए कीर्तिमान जुड़े। यह एनडीए सरकार के सुशासन की ही देन है कि आज बिहार के सभी घरों में बिजली पंहुच चुकी है। घर-घर में शौचालय, गैस सिलिंडर और पीने का पानी पंहुच रहा है। गांव-टोलों के अलावा लोगों के घरों तक पक्की सड़क पंहुच चुकी है। महिलाओं को पंचायत चुनावों में 50 फीसदी और रोजगार में 35% का आरक्षण मिल रहा है। मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक के अभिशाप से मुक्ति मिल चुकी है। वहीँ अल्पसंख्यक युवाओं के कौशल विकास के लिए उस्ताद और नयी रौशनी जैसी योजनाएं चलायी जा रही हैं। आज सरकार की योजनाएं कागजों तक सीमित नही हैं, बल्कि पूरी मजबूती से धरातल पर उतर रही हैं। नमो-नीतीश के नेतृत्व में बिहार में आ रहे इन परिवर्तनों को जनता ने बखूबी देखा, समझा और सराहा है। यही वजह है विरोधियों द्वारा झूठ बोल लगातार डराए जाने के बावजूद समाज के सभी जाति, धर्म के लोग पूरी एकजुटता से एनडीए के समर्थन में खड़े रहे।
बिहार में एनडीए को मिली यह अभूतपूर्व जीत विरोधियों के लिए जनता की चेतावनी है कि अगर अब भी उन्होंने विभाजनकारी राजनीति से तौबा करते हुए, बिहार को आगे बढ़ाने में सहयोग नहीं किया तो आगे उनके और बुरे दिन आने वाले हैं।
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