पश्चिम बंगाल में मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति ले डूबी ममता बनर्जी को

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बंगाल असेंबली इलेक्शन में खेला होगा और इस खेल की रेफरी होंगी ममता बनर्जी। इस बार इस बार बंगाल असेंबली इलेक्शन नारों के सहारे लड़ा जाएगा।
बंगाल असेंबली इलेक्शन में खेला होगा और इस खेल की रेफरी होंगी ममता बनर्जी। इस बार इस बार बंगाल असेंबली इलेक्शन नारों के सहारे लड़ा जाएगा।
  • सुनील जयसवाल

पश्चिम बंगाल में मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति ले डूबी ममता बनर्जी को। अब उन्होंने केंद्र पर अपनी बदहाली का ठीकरा फोड़ते हुए इस्तीफे की पेशकश की है। पश्चिम बंगाल में इन दिनों साम्प्रदायिक हिंसा के बादल मंडरा रहे हैं। इसके मूल में है सत्ता पर काबिज रहने या होने के लिए वोट की राजनीति और मुस्लिम तुष्टीकरण की पराकाष्ठा। इसका आभाष होने भी लगा है। 2019 के लोकसभा चुनाव के सातों चरण के दौरान पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना की बैरकपुर लोकसभा सीट, बारासात, मालदह, नदिया (विशेषकर बैरकपुर) में जिस तरह की हिंसा देखने को मिली, जिसकी चिनगारी अब भी भाटपाड़ा, जगतदल में सुलग रही है, वह तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के वर्चस्व की लड़ाई भर नहीं रह कर साम्प्रदायिक दंगे का रूप लेती जा रही है।

अंदेशा इस बात का भी है कि 2021 विधानसभा चुनाव से पहले तृणमूल कंग्रेस और प्रदेश भाजपा के शक्ति संतुलन व शक्ति प्रदर्शन से स्थिति और अराजक हो जाये। आशंका है कि हालात इतने बिगड़ जायेंगे कि दंगा भड़कने की स्थिति बने और कानून-व्यवस्था छिनभिन्न हो जाए। ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति शासन से इनकार नहीं किया जा सकता। इसके मूल में होगा चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह कहना कि -” दीदी आपके 40 विधयक हमारे संपर्क में हैं।” और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा काउंटर करते हुए यह कहना कि – “इंच-इंच का बदला लूंगी।”

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पश्चिम बंगाल में लोक सभा चुनाव के दौरान सभी 7 चरणों में हिंसा, आगजनी, लूटपाट की घटनाओं का सिलसिलेवार रूप से होना यह जाहिर करता है कि इसके पीछे सीधे तृणमूल कांग्रेस के समर्थकों व उनके गुंडा तत्वों का हाथ माना जा रहा है। खास बात यह कि ये घटनाएं अधिकतर उन इलाकों में हुई, जहां मुसलिम आबादी अधिक है।

चुनाव में तृणमूल कांग्रेस की 18 सीटों पर हार और बंगाल में दूसरी सबसे बड़ी राजनीतिकशक्ति के रूप में भाजपा के प्रकटीकरण ने तृणमूल कांग्रेस के गुस्से में पलीता लगा दिया है। बहरहाल, इससे सबसे ज्यादा भयभीत मुस्लिम आबादी है। इसमें भी अधिकतर बंगलादेशी घुसपैठिए हैं, जिन्हें यह महसूस होने लगा है कि उनका खदेड़ा जाना अब तय है। पिछले 20 सालों में वोट बैंक की क़िलाबन्दी में मुस्लिम तुष्टीकरण की एकतरफा विद्वेष पूर्ण राजनीति ने इन्हें पूरी तरह से आक्रामक बनाए रखा है। जिसकी वजह से मुस्लिम बहुल व वर्चश्व वाले क्षेत्रों में हिंदुओं पर लगातार सुनियोजित हमले होते रहे हैं। अफसोस और आश्चर्य की बात यह कि इन घटनाओं को लेकर ममता सरकार न सिर्फ उदासीन बनी रही, बल्कि हिंदू हितों की रक्षा के लिए कोई कारगर कदम भी उसने नहीं उठाये।  हिंदुओं में इससे पैदा हुई नाराजगी का इजहार इस लोकसभा चुनाव में साफ दिखा और भाजपा इसे भुनाने में कामयाब रही। अब भाजपा के नई राजनीतिक शक्ति या सामान्तर बड़ी शक्ति के तौर पर उभार ने यहां के दबाए-सताये गए हिन्दुओं में सुरक्षा की उम्मीद जगा दी है। अब वे आत्मरक्षक की भूमिका से ऊपर उठ कर आक्रमक अंदाज में आ चुके हैं। इस स्थिति में अंदर-अंदर सुलग रही बदले की भावना भड़क कर विकराल दंगे की स्थिति बना रही है।

इसे रोक पाना मौजूदा माहौल व स्थिति में मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन जान पड़ रहा है। कारण है मुस्लिमों की मानसिकता में इस संदेह को हवा दिया जाना कि ममता बनर्जी के तृणमूल कांग्रेस के शासन के बाद उनका क्या होगा? भाजपा आ गई तो तुम्हारा अंत हो जाएगा। बंगलादेशियों को निकाल बाहर किया जाएगा। उनके बहाने भारतीय मुस्लिम नागरिकों को भी परेशानियां झेलनी पड़ सकती हैं। भय के इस माहौल में  मुस्लिमों को एकमात्र सरंक्षक बतौर ममता बनर्जी की सरकार ही दिख रही है, क्योंकि पूर्व के मुस्लिम तुष्टीकरण के संरक्षक वामपंथी खुद संरक्षण की तलाश में हैं। कांग्रेस पर खुद को बचाए रखने का राष्ट्रीय संकट है।

और दूसरा कारण है भाजप अध्यक्ष अमित शाह का चुनावी रैली में इस बात की घोषणा कि बंगाल की सत्ता हाथ में आते ही सबसे पहला काम NRC को लागू करने करेंगे। विशेषकर शाह और भाजपा की इस नीति को हवा दी जा रही है। इस भय के माहौल ने उन्हें करो या मरो की स्थिति में ला दिया है।

नतीजतन बंगाल में जैसे-जैसे भाजपा बढ़त हासिल कर रही है, उसी अनुपात में अधिसंख्य मुस्लिम आबादी वाले कस्बों, गावों, मुहल्लों यहां तक कि मुस्लिम बहुल जिलों में अल्पसंख्यक हो गए हिंदुओं पर हमला किये जाने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। पिछले पंचायत, नगर निगम चुनाव और इस बार लोकसभा चुनाव में और भी तेजी से घटनाओं को अंजाम दिया गया। ये हमले विशेषकर बंगलादेशी व रोहिंगिया बहुल क्षेत्रों में अधिक देखे जा रहे हैं। आतंक का आलम यहां तक है कि हिन्दू परिवार पलायन को मजबूर हैं। वोट की राजनीति ने राज्य सरकार की आंखों पर पर्दा डाल रखा है।

लगातार बढ़ती बांग्लादेशी घुसपैठियों की समस्या के साथ नई रोहिंगिया समस्या ने भारत में NRC की घोर आवश्यकता को बल प्रदान किया है। यह समस्या पूर्वोत्तर के राज्यों के बाद पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, बिहार के साथ ही दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान को भी बुरी तरह से प्रभावित करने लगी है।

उल्लेखनीय है कि बंगलादेशी व रोहिंगिया मुसलमानों की आक्रामक, संहारक प्रवृत्ति ने उपरोक्त प्रदेशों में सामाजिक और धार्मिक माहौल को भी बंगाल की तरह ही बुरी तरह से प्रभावित कर रखा है। इन राज्यों में राजद, सपा, बसपा, कांग्रेस पार्टी व सरकारें भी बंगाल की मौजूदा सरकार की तरह ही तुष्टीकरण में लगी हैं।

देखा जाए तो पिछले 20 सालों से देश में राम मंदिर, बाबरी मस्जिद, समान नागरिक संहिता , तीन तलाक को लेकर गैर भाजपा पार्टियों ने देश के मुसलमानों के अंदर ” इस्लाम ख़तरे में है” का डर बैठा दिया है। जबकि सच्चाई यह है कि पूरा विश्व मुस्लिम आतंकवाद की चपेट में आकर अशांत है।

बहरहाल हम पश्चिम बंगाल की मौजूदा स्थिति पर चर्चा को आगे बढ़ाते हैं।  वर्तमान  स्थिति यह है कि बंगलादेशियों की वजह से राज्य के बांग्लादेश से सटे सीमांत जिलों- नदिया, बनगाँव, मालदह, बारासात, उत्तरी और दक्षिणी 24 परगना की स्थिति भयावह ही नहीं, काफी विस्फोटक हो चुकी है। इन जिलों के अलावा इनसे सटे जिलों में हुगली, हावड़ा, आसनसोल, मुर्शिदाबाद, बर्धमान की स्थिति भी फूस के घर के समान है। इसके पीछे एकमात्र वजह अगर है तो बांग्लादेशी घुसपैठिए और पिछले 5 सालों में रोहिंगिया मुसलमानों का लाखों की संख्या में प्रवेश ।

1971 के बाद 1980 तक यहां हुए एक सर्वे के मुताबिक करीब 2 करोड़ बंगलादेशी उपरोक्त जिलों में रच-बस गए हैं। ऐसे कि इनकी पहचान करना भी मुश्किल है। जहां तक रोहिंगिया (मुसलमान) की बात है, वे मौजूदा समय में 1 लाख के करीब बंगलादेशियों के साथ मिक्सअप होने के प्रयास में हैं।

नतीजतन पश्चिम बंगाल की मूल बंगाली आबादी 78 प्रतिशत हिन्दू और 18 प्रतिशत मुस्लिम मूल आबादी संकट में है। खासकर हिन्दू आबादी पर रोजगार और आवास संकट के बाद अब संस्कृति, भाषायी व धार्मिक अस्तित्व रक्षा का संकट लक्षित होने लगा है। चूंकि हिन्दू आबादी सुसंस्कृत, उच्च शिक्षित होने के साथ रोजगार, व्यापार, उद्योग, कृषि के क्षेत्र में 90 प्रतिशत दखल रखती है, इस वजह से अवैध घुसपैठियों से परेशान तो जरूर है, परन्तु संकटग्रस्त नहीं है।

बंगलादेशी व रोहिंगियाओं की वजह सबसे अधिक संकट में यदि घिर चुकी है तो वो है यहां की मूल मुस्लिम आबादी, जो 18 प्रतिशत है। इस आबादी के रोजगार से लेकर रोजी-रोटी कमाने के दैनिक संसाधन और साधनों तक पर घुसपैठियों का कब्जा बढ़ने लगा है। इससे भी बड़ा संकट पिछले एक-दो सालों में मंडराने लगा है। वह संकट है वोट की राजनीति के चर्मोत्कर्ष की प्रतिक्रिया स्वरूप पनप चुकी जातीय हिंसा की भावना। यह भावना कभी भी विकराल साम्प्रदायिक दंगे के रूप प्रकट होने के कगार पर पहुंची दिख रही है। यदि ऐसा कुछ भड़क उठता है तो इस क्रिया की प्रतिक्रिया के रूप में जो सामने आएगा, वह रोहिंगियाओं और बंग्लादेशी घुसपैठियों के साथ मूल मुस्लिम आबादी को भी अपने चपेट में ले लेगा। वह ऐसा भयावह मंजर होगा, जिसके सामने 1947 का नोवाखाली दंगा भी फीका पड़ जाएगा।

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गौरतलब है कि वोट बैंक की राजनीति के फिक्स डिपॉजिट माने जा चुके भारत के मुस्लिम समुदाय और इनके साथ करोड़ों बंगलादेशी घुसपैठिए जो 1971 के बाद 1975 तक लाखों की संख्या में पश्चिम बंगाल, असम के रास्ते भारत में घुसे और तुष्टीकरण वाले राज्यों में शरण पाते चले गए और वोट बैंक बन गए। अब तो राज्य सरकारों और पिछली केंद्र सरकार की मौन स्वीकृति के तहत आज की तारीख में ये करोड़ों में हैं।

विगत 25 सालों व बाद के 15 सालों में ममता बनर्जी के तृणमूल कांग्रेस सरकार की हठधर्मिता की राजनीति ने यहां के उद्योगों को भागने और उद्यमियों को कहीं और शिफ्ट होने को मजबूर कर दिया है। राज्य वामपंथियों के काल से ही आर्थिक बदहाली की गिरफ्त में है। देखा जाए तो 70 साल में पश्चिम बंगाल में विकास के नाम पर मेट्रो रेल के अलावा कुछ भी नहीं दिखता।

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सिद्धार्थ शंकर राय कांग्रेस सरकार  के पतन के बाद वामदल की यूनियनबाजी की एकमात्र वजह से 1947 से पूर्व के सथापित कल-कारखाने, जूट मिलें, छोटे उद्योग से लेकर टाटा, बाटा, हिंदुस्तान लीवर, व अन्य तमाम बड़ी कम्पनियों की प्रोडक्शन यूनिट (फैक्ट्रियां) या तो बंद हो गयीं या गुजरात, सूरत, महाराष्ट्र में शिफ्ट हो गयीं। रही सही कसर ममता बनर्जी की तृणमूल सरकार ने नंदीग्राम की घटना को अंजाम दे नए उद्योगों की स्थापना के मार्ग में दीवार खड़ी कर दी। फलस्वरूप विकास और रोज़गार के रास्ते बंद हो गए। राज्य के लोग बदहाली के कगार पर पहुंच विपन्न होते रहे।

परन्तु वामदल से लेकर मौजूदा सरकार में सत्ता पर कब्जा जमाए रखने की प्रवृत्ति अपने चरम पर रही।  इस पकड़ को बनाए रखने के लिए ही राज्य के सबसे बड़े वोट बैंक मुस्लिम आबादी, जो कि 18 से 20 फीसदी है, साधे रखना सबने जरूरी समझा। क्योंकि मूल नागरिक अपनी पसंद की सरकार को वोट देते हैं या उसे बदल सकते हैं, जबकि मुस्लिम वोटरों को धार्मिक भावना भड़का कर और हिंदुओं का भय दिखा कर इन्हें आसानी से अपने पक्ष में किया जा सकता है।

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देश में भाजपा और राम मंदिर की राजनीति से काफी पहले मुस्लिमों को अपने साथ रखने के लिए सबसे पहले कांग्रेस, फिर वामपंथी और अब तृणमूल कांग्रेस ने मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति को चरम पर ला खड़ा किया है। आम चुनावों में  मात्र वोट के लिए इन्हें यहां की हिन्दू आबादी ; जिसमें बहुत बड़ी संख्या  यूपी, बिहार, उड़ीसा, दक्षिण भारतीय लोगों की है, पर हर तरह की ज्यादती करने की छूट तक हासिल है। मुस्लिम समूह खासकर बंगलादेशी मुसलमान राजनीतिक वरदहस्त होने के कारण ही जहां कहीं भी संख्याबल से एक बस्ती का आकार लेते ही उस इलाके, कस्बे, गांव, कुछ जिलों में  तो पूरे जिला स्तर पर हिंदुओं के ऊपर आतंक ढाते हैं। घरों, मुहल्लों, बाजार पर हमला करते हैं। मूर्ति पूजा, धार्मिक जुलूस, कार्यक्रमों तक पर दबंगता के साथ बाधा उत्पन्न करते हैं और राज्य सरकार खामोश रहती है। सड़क पर खुलेआम गौमांस बेचा जाता है। मुस्लिम त्योहारों में  खुलेआम हिन्दू आबादी के सामने गायों की कुर्बानी की जाती है।

वोट बैंक की राजनीति में इनके विरुद्ध हिंदुओं की आपत्ति, विरोध तक दर्ज नहीं की जाती है। यह सिलसिला कांग्रेस के सिद्धार्थ शंकर राय के शासनकाल के बाद वामपंथी ज्योति बसु-बुद्धदेव भट्टाचार्य और अब तृणमूल कांग्रेस पार्टी की ममता बनर्जी के शासन तक जारी है।

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परन्तु एक सच यह भी है कि कांगेस, वामदल के 50 वर्ष के शासन काल की मुस्लिम तुष्टीकरण और तृणमूल कांग्रेस के 15 साल के मुस्लिम तुष्टीकरण में काफी बड़ा अंतर है। आज इन्हें किसी भी हद तक जाने की छूट मिली हुई है। ये जब चाहें, हिन्दू मुहल्लों, बस्तियों, बाजारों में हिंदुओं की दुकान, मकान पर लूटपाट करते हैं। घरों में खुलेआम आगजनी करते हैं। मंदिरों को तोड़फोड़ करते हैं। दुर्गा पूजा, सरस्वती पूजा, रामनवमी के जुलूसों पर पथराव करते हैं।

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बंगाल के बदहाल होने का सिर्फ और सिर्फ मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति ही रही है। अल्पसंख्यक बहुसंख्य हिन्दू आबादी पर सरकारी शह पर हावी रहे हैं। भाजपा ने बंगाल के इस नब्ज को पकड़ लिया है। लोकसभा चुनाव में 18 सीटें हासिल कर विधानसभा चुनाव में कामयाबी का ट्रेलर दिखा दिया है।

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