कराहती काशी की गलियों में घूमे गोविंदाचार्य, विश्वनाथ कॉरिडोर का काम देखा 

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  • बोले- देवताओं की रक्षा करने वालों पर मंदिर कब्जाने का आरोप है झूठा
  • पूछा- विश्वकर्मा ने काशी को रचा, उनसे सुंदर कौन रच सकता है

वाराणसी (हरेंद्र शुक्ला)। मंगलवार को सुबह लगभग सवा दस बजे अचानक गोविंदाचार्य काशी विश्वनाथ मंदिर क्षेत्र में चल रहे कॉरिडोर का काम देखने पहुंचे। सोमवार को एक मित्र के यहाँ निजी कार्यक्रम में आये तो शाम को कुछ लोगों से बातचीत करते हुए विश्वनाथ कॉरिडोर का काम देखने की इच्छा व्यक्त की। उसी क्रम में वे आज पक्के महाल के लाहौरी टोला, नीलकंठ, मणिकर्णिका घाट, विश्वनाथ गली, सरस्वती फाटक क्षेत्र में लगभग सवा घंटे तक घूमते रहे।

विश्वनाथ द्वार से पत्रकार राजनाथ तिवारी और समाजसेवी त्रिलोचन शास्त्री के साथ जब गोविंदाचार्य लाहौरी टोला पहुंचे तो अवाक हो देखते रहे। थोड़ी दूर ललिता घाट की ओर बढ़े तो पूर्व में पंडित कमलापति त्रिपाठी की कोठी के सामने रमन जी के मकान के पास पहुँच कर भावुक हो गए। शाखा के पुराने सहयोगी कृष्ण कुमार शर्मा ने एक घर की ओर इशारा कर बताया कि यह रमन जी का मकान है, अब जमींदोज हो गया है। इसी मकान में गोविन्दाचार्य ने सहयोगियों के साथ कई बार जलपान किया था। तब वहां विश्वेश्वर शाखा लगती थी।

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यहाँ एक जर्मन महिला मिली। शास्त्री जी ने बताया इनको मानसिक आघात हुआ है इस योजना से। कभी वैद्य लालबिहारी शास्त्री के यहाँ किडनी फेल होने पर इलाज के लिए आयीं तो फिर बनारस की होकर ही रह गईं। बनारस की गलियों के सौंदर्य ने मन मोहा तो फिर गलियां ही इनका घर बन गईं। लेकिन, कॉरिडोर योजना में मकानों को टूटता देख इन्हें आघात लगा है और ये जब बोलना शुरू करती हैं तो बिना रुके घंटों अपनी पीड़ा व्यक्त करती हैं।

आगे सीढ़ियों से उतर कर गोयनका लाइब्रेरी की ओर बढ़े तो सीढ़ियों पर जैन तीर्थंकर की मूर्ति, गोस्वामी तुलसी दास जी को काशी आने पर सबसे पहले जहाँ हनुमान जी के दर्शन हुए थे, उन मंदिरों को देख कर वे इतने भावुक हो गए कि उनकी आँखें नम हो गईं। लोगों ने बताया कि हमारे ऊपर इल्ज़ाम लगाया जा रहा है कि हमने मंदिरों पर कब्ज़ा कर लिया है। गोविंदाचार्य ने कहा- लेकिन कोई सरकार अपने ही नागरिकों पर ऐसा घृणित आरोप कैसे लगा सकती है। क्या सरकार को यह इतिहास पता है कि काशी के लोगों ने लगभग 300 सौ वर्षों तक आक्रांताओं के कोप से बचाने के लिए देवताओं को घरों में रख लिया या मंदिरों के चारों ओर ऐसा निर्माण कर दिया कि आक्रांता उसे देख न सकें। लेकिन कभी भी क्या यहाँ के नागरिकों ने किसी देवता का भोग, आरती और पूजा नहीं रोकी। सरकार को धर्म और संस्कृति के प्रति यहाँ के नागरिकों की निष्ठा और पवित्र भावना नहीं दिखती।

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बातचीत में उन्होंने कहा कि कोई सरकार विकास के नाम पर धर्म की रक्षा करने वालों को ही कैसे प्रताड़ित कर सकती है। गोयनका गली के पीछे मणिकर्णिका चौमुहानी से विश्वनाथ मंदिर की ओर सीढियाँ चढ़ते मंदिरों का सौंदर्य और उनके चहुंओर हो रहे विप्लव को देख कर बोले- क्या आज के अभियंता भगवान विश्वकर्मा से भी ज्यादा कुशल कारीगर हैं। जिनके बारे में हमने हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलगीत में वर्षों पढ़ा- नए नहीं हैं ये ईंट पत्थर है विश्वकर्मा का कार्य सुन्दर, बसी है गंगा के रम्य तट पर यह सर्व विद्या की राजधानी। उन्होंने पूछा कि क्या कोई नया विश्वकर्मा भगवान आ गया है, जो उनसे सुन्दर काशी की रचना करने जा रहे हैं।

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नीलकंठ से विश्वनाथ मंदिर पहुँच कर उनके पैर रुक गए। मंदिर परिसर और सामने की तरफ वीरान हो चुके भवनों के अवशेष, उजड़े मकानों  और सौन्दर्यपूर्ण सर्पीली गलियों की जगह समतल मैदान देख कर वह कुछ बोल नहीं पाए। बबलू, कृष्ण कुमार शर्मा और स्थानीय लोग जो सुनाते रहे, चुपचाप सुनते रहे। इस दौरान अनेक बार उनके हाथों की उंगलियां उनकी आँखों के कोरों को पोंछती रहीं। और फिर बिना कुछ बोले चुपचाप भगवान विश्वनाथ को प्रणाम कर वह चले गए। इस दौरान पूरे समय उनके सहयोगी बृजेश सिंह मौजूद रहे।

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