मुजफ्फरपुर में कल तक 133 बच्चों की मौत हो चुकी हैः शिवानंद

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मुजफ्परपुर के एक अस्पताल में दिमागी बुखार से पीड़ित एक इलाजरत बच्चा

151 बच्चे अस्पताल में भर्ती हैं, यह रोग नहीं, महामारी है

  • शिवानंद तिवारी
शिवानंद तिवारी
शिवानंद तिवारी

मुजफ्फरपुर में कल तक 133 बच्चों की मौत हो चुकी है। बताया जा रहा है कि इस जानलेवा रोग से पीड़ित अन्य 151 बच्चे अस्पताल में भर्ती हैं। यह रोग नहीं, महामारी है। आश्चर्य की बात है कि वर्षों से यह बीमारी बच्चों की जान ले रही है, लेकिन यह बीमारी है क्या, यह होती क्यों है और इसका इलाज क्या है, अभी तक इसकी जानकारी नहीं मिल पाई है।

एक शोध के अनुसार इस अज्ञात रोग से मरने वाले प्राय: सभी बच्चे दलित और पिछड़े समाज के परिवारों के हैं। शायद इसलिए भी इस मामले में न तो बिहार सरकार और न ही भारत सरकार उतनी तत्पर और संवेदनशील दिखाई दे रही है।

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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी ने कहा है कि ‘हर वर्ष बरसात के पहले यह  जानलेवा बीमारी आती है और बच्चों का जान लेती है। अभी तक इस बीमारी का कारण पता नहीं चल पाया है।’ नीतीश जी इस बयान के जरिए क्या साबित करना चाहते हैं! तेरह वर्षों से बिहार के मुख्यमंत्री हैं। इस बीच प्रति वर्ष बरसात के पहले इस अज्ञात बीमारी से बच्चों के मरने का रिवाज-सा बन गया है। आश्चर्य है कि इतने लंबे समय बीत जाने के बावजूद न तो इस बीमारी के कारण का पता लग पाया है और न ही इसके इलाज का। इसके बावजूद नीतीश जी के शासन को अगर कोई सुशासन कहता है तो कुशासन की नई परिभाषा गढ़नी होगी!

भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्री भी इस बीच मुजफ्फरपुर आकर औपचारिकता पूरी कर गए हैं। औपचारिकता हम इसलिए कह रहे हैं कि 2014 में भी यही महाशय स्वास्थ्य मंत्री थे और  बच्चों की मौत का जायजा लेने उस वक्त भी मुजफ्फरपुर आए थे।  उन्होंने  उस समय वादा किया था कि मुजफ्फरपुर अस्पताल में 100 बिस्तरों वाली नई इकाई इस बीमारी के बच्चों के लिए बनाई जाएगी तथा बेहतर इलाज के लिए और भी इंतजाम किए  जाएंगे। पांच बरस के बाद पुन: इनका मुजफ्फरपुर आगमन हुआ और लगभग उन्हीं वायदों को उन्होंने फिर दोहराया, जो  2014 में किया था। हमें इस बात पर भी आश्चर्य है कि नीतीश जी ने भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्री को उनके द्वारा किए गए वायदों का स्मरण कराकर उसे पूरा कराने में कोई दिलचस्पी क्यों नहीं दिखाई।

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आज विज्ञान का जमाना है। आज के ज़माने में अगर कोई यह कहता है कि वर्षों वर्ष से बच्चों की जान लेने वाली इस बीमारी का कारण और निदान की जानकारी नहीं मिल रही है तो उसको लायक और कुशल शासक तो नहीं ही माना जाएगा। दुनिया भर में महामारियों का सामना करने में एक दूसरे के साथ सहयोग करने की परंपरा बनी हुई है। अगर अपने देश में इस बीमारी के कारण का पता नहीं चल पा रहा है तो दुनिया के अन्य मुल्कों से इस विषय में सहायता प्राप्त की जा सकती है। दुनिया भर की प्रयोगशालाओं का दरवाज़ा है इस तरह की प्राकृतिक आपदाओं के कारण का पता लगाने के लिए। मुजफ्फरपुर में अबतक हुई सैकड़ों बच्चों की मौत के मामले में न सिर्फ़ बिहार सरकार, बल्कि भारत सरकार भी आपराधिक लापरवाही और असंवेदनशीलता  की दोषी है। इसलिए दोनों सरकारों को अब तक हुई लापरवाही के लिए सार्वजनिक रूप से खेद व्यक्त कर मृतक बच्चों के माता-पिता से क्षमा याचना करनी चाहिए। रोग का कारण और निदान की जानकारी के लिए इस क्षेत्र के सर्वोत्तम लोगों को मुजफ्फरपुर आमंत्रित किया जाना चाहिए, ताकि भविष्य में ग़रीबों के बच्चों की इस महामारी से रक्षा हो सके।

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