हम जिस अर्थव्यवस्था में हैं, उसमें लोग गरीब और अवसरहीन होंगे

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अर्थव्यवस्था
  • संजय तिवारी

मैं राहुल गांधी की इस घोषणा का पूर्ण समर्थन करता हूं कि सरकार बनाने के बाद वो 72 हजार रुपये हर साल गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करनेवाले हर परिवार को देंगे। जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं, उनके अपने तर्क होंगे, मजबूरियां होंगी, लेकिन इस घोषणा का समर्थन करना जरूरी है। हम जिस अर्थव्यवस्था में जी रहे हैं, उसमें राष्ट्र लगातार मजबूत होता जाएगा, लेकिन एक वर्ग को छोड़ कर बाकी लोग गरीब और अवसरहीन होंगे। अवसरहीनता का असर आज भी दिखना शुरू हो गया है। अमीरी आ रही है, लेकिन असमान और सीमित है। ऐसा नहीं है कि कोई जान-बूझकर ऐसा कर रहा है, लेकिन यही इस नव पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का मॉडल है। दिनोंदिन जैसे इस केन्द्रीकृत अर्थव्यवस्था का सघनीकरण होता जाएगा, अवसरहीनता और गरीबी बढ़ती चली जाएगी।

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वह अब भी है, लेकिन क्या कोई मीडिया उसे दिखाना पसंद करता है? नहीं। क्योंकि वह उसकी टीआरपी रेन्ज के बाहर की खबर है। खैर, मीडिया का विषय अपने आप में अलग है। लेकिन एक बड़े वर्ग में गरीबी, बेरोजगारी और अवसरहीनता इस नव उदारीकरण का ऐसा अभिशॉप है, जिससे सिर्फ जापान बच सका है। बाकी दुनिया का कोई ऐसा देश नहीं है, जो उदारीकरण के इस अभिशाप से बच सका हो।

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उस नव पूंजीवाद, उदारीकरण या फिर बाजारवाद जो चाहे कहिए, इसका एक अभिशाप यह भी है कि यह एक सीमा तक विस्तार करने के बाद स्थिर हो जाता है। बाजार का सतत विकास नहीं होता, इसलिए बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की विकास दर एक-दो प्रतिशत पर आकर रुक जाती है। ऐसे में बाजार के बाहर बैठे व्यक्ति की क्रय क्षमता (पर्चेजिंग पॉवर) बढ़ाने के लिए ऐसे प्रोत्साहन (इन्सेन्टिव) को खुद बाजार की ताकते भी प्रोत्साहित करती हैं।

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वो नासमझ हैं, जो राहुल गांधी की इस घोषणा का विरोध कर रहे हैं। ये तो करना ही पड़ेगा। आज न सही। आज से दस साल बाद कोई सरकार करेगी। लेकिन करेगी जरूर। इसलिए मैं राहुल गांधी की इस घोषणा को एक दूरदर्शी योजना के तौर पर देखता हूं।

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यह मत भूलिए कि भारत में बाजारवाद की शुरुआत भाजपा ने नहीं, कांग्रेस ने ही किया था। बस भाजपा और कांग्रेस में फर्क ये है कि भाजपा के राष्ट्र में जन नहीं होता और कांग्रेस के जन का राष्ट्र नहीं होता। (फेसबुक वाल से साभार)

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