सोनिया गांधी विज्ञापन बंद करने की बात कह फंस गयीं

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सोनिया गांधी विज्ञापन बंद करने की बात कह फंस गयी हैं। कोरोना को देखते हुए खर्च में कटौती की सलाह सरकार को दी है। इसमें विज्ञापन बंद करने का भी सुझाव है।
सोनिया गांधी विज्ञापन बंद करने की बात कह फंस गयी हैं। कोरोना को देखते हुए खर्च में कटौती की सलाह सरकार को दी है। इसमें विज्ञापन बंद करने का भी सुझाव है।

सोनिया गांधी विज्ञापन बंद करने की बात कह फंस गयी हैं। कोरोना के संक्रमण को देखते हुए खर्च में कटौती की सलाह सरकार को दी है। इसमें विज्ञापन बंद करने का भी सुझाव है। इसकी चौतरफा आलोचना हो रही है। मीडिया के स्तर पर आलोचना तो हो ही रही है, राजनीतिक दल भी कांग्रेस को कठघरे में खड़े कर रहे हैं। समाचार पत्रों के राष्ट्रीय स्तर के संगठन आईएनएस ने भी इसकी आलोना की है।

सभी का यह मानना है कि अगर सरकारी विज्ञापना बंद हो जाएं तो अखबारों की आमदनी का एक बड़ा स्रोत सूख जाएगा। इसका नतीजा बड़ा भयावह होगा। अखबार बंद होंगे और इस उद्योग से जुड़े पत्रकार बेरोजगार हो जाएंगे। भारतीय जनता पार्टी के नेता भी इसकी आलोचना कर रहे हैं। बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने भी इस मांग को गैरवाजिब बताया और कहा कि यह इमर्जेंसी के दिनों जैसी व्यवस्था हो जाएगी। वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर भी इसे इंदिरा गांधी की इमरेजेंसी वाली मानसिकता के रूप में देख रहे हैं।

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  • सुरेंद्र किशोर  

सारे सरकारी विज्ञापन बंद कर देने की आपकी खुन्नस भरी मांग में इमरजेंसी वाली मानसिकता प्रकट हो गई सोनिया जी! लगता है कि तानाशाही मानसिकता के मामले में सोनिया गांधी इमर्जेंसी वाली इंदिरा गाधी से भी एक कदम आगे चली गई हैं। इमरजेंसी में भी सभी अखबारों के सारे सरकारी विज्ञापन बंद नहीं हुए थे।

पर, सोनिया गांधी कह रही हैं कि ‘दो साल के लिए सरकार को प्रिंट,टेलीविजन और आनलाइन मीडिया को कोई विज्ञापन नहीं देना चाहिए।’ यदि सोनिया जी ने यह कहा होता कि गैर जरूरी सरकारी विज्ञापन न छपें तो बात समझ में आती। तब कहा जाता कि सोनिया किसी निजी खुन्नस के तहत यह बयान नहीं दे रही हैं। दरअसल जो बात संभव ही नहीं है, उसकी मांग कर देना खुन्नस निकालना भर ही तो है!

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क्या यह संभव है कि सांसदों की वेतन आदि की सारी सुविधाएं समाप्त कर दी जाएं? संभव नहीं है, इसीलिए तो मात्र 30 प्रतिशत की ही कटौती की गई। यदि सोनिया की सलाह मानकर सरकार कोई विज्ञापन न दे तो देश में अगले दो साल तक सारे निर्माण कार्य भी ठप हो जाएंगे। क्योंकि निर्माण कार्यों के टेंडर अखबारों में ही तो निकलते हैं। सरकार जनहित में अन्य अनेक जरूरी सूचनाएं तथा निदेश अखबारों के जरिए ही तो लोगों तक पहुंचाती है। दैनिक जागरण ने ठीक ही लिखा है- ‘‘आपातकाल की तरह ही मीडिया को फिर से नष्ट करने की मानसिकता पार्टी पर हावी हो रही है।’’

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