सुभाष मुखोपाध्याय की वाम शासन ने उपेक्षा की थीः जयंती पर विशेष

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सुभाष मुखोपाध्याय की वाम शासन ने उपेक्षा की थी। बांग्ला के विशिष्ट कवि सुभाष मुखोपाध्याय की आज जयंती (12 फरवरी 1919- 8 जुलाई 2003) है।
सुभाष मुखोपाध्याय की वाम शासन ने उपेक्षा की थी। बांग्ला के विशिष्ट कवि सुभाष मुखोपाध्याय की आज जयंती (12 फरवरी 1919- 8 जुलाई 2003) है।
  • कृपाशंकर चौबे

सुभाष मुखोपाध्याय की वाम शासन ने उपेक्षा की थी। बांग्ला के विशिष्ट कवि सुभाष मुखोपाध्याय की आज जयंती (12 फरवरी 1919- 8 जुलाई 2003) है। सुभाष मुखोपाध्याय का पहला काव्य संकलन ‘पदातिक’ 1940 में आया था और उसके साथ ही वे जनकवि के रूप में विख्यात हो गए। कवि ने तब लिखा था- ‘मेरी प्रियतमे, यह फूलों से अठखेलियां करने का वक्त तो एकदम नहीं है।’

सुभाष दा ने लिखा थाः ‘प्रतिदिन सुबह-सुबह सीधा सफेद सूर्य इस झील में जा डूबेगा।’ ‘पदातिक’ संग्रह में ही सुभाष ने लिखा थाः ‘टेढ़ा चाँद करोड़पति की छत पर पड़े सोफे से जा बंधा है।’ कवि सुभाष ने ‘पदातिक’ संग्रह के जरिए बांग्ला गीति काव्यों को प्रेम गीत से अलग किया और सर्वहारा का पक्ष-समर्थन किया।

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सुभाष दा युवावस्था में ही मजदूर आंदोलन से जुड़ गए थे और 1941 में कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बन गए थे। वे पार्टी के मुख पत्र के लिए लिखते रहे। उन्होंने मार्क्सवादी विप्लव के पक्ष में काव्य व गद्य रचनाएं लिखीं। सुभाष दा आंदोलनों में भी सक्रिय रहे। जेल गए। 1950 में जेल से रिहा होने के बाद पटसन मजदूरों के लिए उन्होंने पत्रिका निकाली।

सुभाष दा ने 1948 में आए अपने दूसरे काव्य संकलन ‘अग्निकोण’ में अंधकार भेदने का स्वप्न कवि ने देखा तो ‘चिरकुट’ संग्रह में बंगाल के अकाल की मार्मिक छवियां अंकित कीं। 1965 में ‘जोतो दूरे जाई’ (जितनी दूर जाऊं), 1969 में ‘काल मधुमास’ (आया प्यार का मौसम), 1971 में ‘ऐ भाई’, 1972 में ‘छेले गेछे बने’ (बेटा जंगल में गया है), 1979 में ‘एकटु पा चालिये भाई’ (जरा तेज चलिए भाई), 1981 में ‘जल सइते’ (पानी भरना), 1991 में ‘धर्मेर काल’ काव्य संग्रह आए और बांग्ला कविता में यथार्थ को देखने का नया दृष्टिकोण मिला। सुभाष दा की सभी कविताएं एकत्र कर सुभाष मुखोपाध्यायेर काव्य समग्र भी दो खंडों में छपा। उनकी श्रेष्ठ कविताओं का चयन भी छपा। सुभाष दा की कविताओं में सुख-दुःख, आशा-निराशा, हास्य व करुणा, वासना व वितृष्णा का संतुलन है। कविता, उपन्यास, यात्रावृत्त, अनुवाद आदि विधाओं में सुभाष दा की 50 से अधिक किताबें प्रकाशित हैं।

सुभाष दा 1982 में दलगत राजनीति छोड़कर आनंद बाजार पत्रिका से जुड़ गए। आनंद बाजार से हटने के बाद स्वतंत्र लेखन करने लगे। सुभाष दा वामपंथी थे किंतु वाममोर्चा की सरकार ने उनकी बहुत उपेक्षा की। उनके बीमार पड़ने पर आखिरी वर्षों में ममता बनर्जी ने उनकी चिकित्सा व्यवस्था की थी। यहां तक कि उनकी अंत्येष्टि की व्यवस्था भी।

सुभाष दा से कोलकाता में अनगिनत बार मिलने और औपचारिक तथा अनौपचारिक बातचीत करने का सुयोग मिला था। उनसे हुई एक बातचीत को मैंने साक्षात्कारों की अपनी किताब ‘संवाद चलता रहे’ (वाणी प्रकाशन, 1995) में शामिल किया था। उस किताब के छपने के बाद भी सुभाष दा से मिलने और बातचीत करने का सिलसिला जारी रहा। सुभाष दा से जीवन के आखिरी वर्षों से स्लेट पर लिखकर बातचीत हो पाती थी क्योंकि उनकी श्रवणशक्ति जवाब दे गई थी। सुभाष दा बहुत सरल व्यक्ति थे। कदाचित इसीलिए बहुत बड़े कवि थे। कविता व्यक्ति को सरल बना देती है। मुझे लगता है कि कोई कितना बड़ा कवि होगा, वह इस पर निर्भर है कि वह कितना सरल है। सुभाष दा की जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि।

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