रेणु का है अंदाज-ए-बयां और के रचनाकार हैं भारत यायावर 

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भारत यायावर
भारत यायावर
  • गौरीशंकर सिंह

“रेणु का है अंदाज-ए-बयाँ और” पूर्णिया में आरएन शॉ चौक से सटे लालमणि पुस्तक भंडार में दिखी। मेरी नजर एक पुस्तक पर पड़ी- रचनाकार हैं भारत यायावर। राजकमल प्रकाशन ने एक बार फिर पूर्णिया की माटी के लाल “फणीश्वरनाथ रेणु” को याद किया है। पुस्तक के शीर्षक ने मेरी उत्सुकता बढ़ा दी। यह शीर्षक ही अपने आप में काफी कुछ संकेत दे रहा है।

ग़ालिब का मशहूर शेर है- “हैं और भी दुनिया में सुख़नवर बहुत अच्छे, कहते हैं कि ग़ालिब का है अन्दाज़ेबयाँ और”। इसी तर्ज पर जब भारत यायावर कहते हैं- रेणु का है अन्दाजे-बयाँ और तो यह शीर्षक मुझे काफी वजनदार और सटीक लगा। मैंने लालमणि पुस्तक भंडार से यह पुस्तक खरीदने में देर नहीं लगाई।

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इसमें कोई शक नहीं कि पूर्णिया की मिट्टी ने कई नामचीन साहित्यकारों को पनपने की उर्वर जमीन और सुवासित आबोहवा दी। सुवासित इस संदर्भ में कि यहाँ के रचनाकारों की प्रायः रचनाओं में सीमांचल और मिथिलांचल की मिट्टी की सुगंध महसूस की जा सकती है। अनूपलाल मंडल, लक्ष्मीनारायण सुधांशु, जनार्दन झा द्विज, मधुकर गंगाधर, चंद्रकिशोर जायसवाल, डॉ प्रो. संजय कुमार सिंह, रामधारी सिंह दिवाकर, सुरेंद्र स्निग्ध, जयशंकर आदि। गिनाने बैठूँ तो आज की पीढ़ी के रचनाकारों में कलाधर (अब स्वर्गीय), दीर्घनारायण, रामदेव सिंह, चन्द्रकान्त रॉय, राजर्षि अरुण, दिलीप दर्श, जनार्दन यादव, भोला पंडित प्रणयी, संजय सनातन, संजीव सिंह सहित सैकड़ों नाम स्मृति पटल पर उभर आएंगे।

मगर पूर्णिया प्रमंडल से सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व को परिचित कराने वाले साहित्यकारों में रेणु अकेले ध्वजवाहक हैं, जिनकी रचनाओं में गुम्फित पूर्णिया प्रमंडल की जमीनी खुशबू ने दुनिया के तमाम सुधी साहित्य प्रेमियों को आकर्षित किया है! इस की एकमात्र वजह फिर वही- “रेणु का है अंदाज-ए-बयां और”। इसी अनूठे अंदाज-ए-बयां ने हिंदी साहित्य में रेणु के उदय को एक सुखद अविश्वसनीय ऐतिहासिक घटना बना दिया।

रेणु को रातों-रात देश के शीर्ष साहित्यकारों की कतार में खड़ा करने वाली रचना “मैला आंचल” और कुछ मायने में “परती परिकथा” ही लंबे समय तक रेणु का परिचय देती रही। ऐसा लगने लगा कि रेणु का रचना संसार बहुत सीमित है। 11 अप्रैल 1977 को रेणु के दुर्भाग्यपूर्ण निधन के बाद तो ऐसा लगने लगा कि रेणु का जिक्र मैला आंचल और परती परिकथा तक ही सिमट कर रह जाएगा। ऐसे में हजारीबाग के युवा प्रोफ़ेसर भारत यायावर का खोजी राम अवतरित हुआ और यायावर ने रेणु की गुमशुदा रचनाओं को ढूंढने का जो भगीरथ प्रयत्न किया और काफी हद तक रेणु समग्र का आविष्कार करने में सफल भी रहे। इसी जद्दोजहद के सकारात्मक परिणाम ने भारत यायावर को आज रेणु का पर्याय बना दिया है।

यहां बताना जरूरी है कि भारत यायावर ने रेणु के अतिरिक्त महावीर प्रसाद द्विवेदी प्रश्नावली के संकलन, संयोजन और संपादन के दुरूह उद्यम को भी अंजाम दिया है। कवि केदारनाथ सिंह, नामवर सिंह आदि साहित्यकारों पर भी उनकी शोधपरक रचनाएं उल्लेखनीय हैं। भारत यायावर के व्यक्तित्व में खोजी राम के अलावा एक नितांत संवेदनशील कवि भी समाविष्ट है। उनकी काव्य पुस्तकें- झेलते हुए, मैं हूं यहां हूं, बेचैनी एवं हाल बेहाल, हिंदी साहित्य में प्रशंसित एवं पुरस्कृत हुई हैं। उन्हें जो पुरस्कार मिले हैं, उनमें उल्लेखनीय हैं- नागार्जुन पुरस्कार, बेनीपुरी पुरस्कार, राधा कृष्ण पुरस्कार, पुश्किन पुरस्कार (मास्को), आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी सम्मान (रायबरेली)। संप्रति वे विनोबा भावे विश्वविद्यालय हजारीबाग के स्नातकोत्तर हिंदी विभाग में प्राध्यापक पद पर कार्यरत हैं।

यायावर ने दुर्गम स्थलों की श्रम साध्य यात्रा करके रेणु की गुमशुदा रचनाओं को ढूंढ निकाला। खासकर रेणु द्वारा रचित  रिपोर्ताज, जो साहित्यिक संवेदनाओं के स्तर पर मैला आंचल की संवेदना से कतई कमतर नहीं हैं, रेणु के  साहित्य कद को विस्तार देने में भारत यायावर के खोजी राम ने लगभग एक चमत्कार ही कर दिया है। आज हिंदी जगत रेणु रचित उपन्यासों, कहानियों के अलावा रिपोर्ताजों, संस्मरणों आदि से अगर परिचित हो रहा है तो इसका श्रेय भारत  यायावर को जाता है। उनके संपादन में अब तक रेणु की लगभग 20 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।

यायावर की ताजा कृति “रेणु का है अंदाज-ए-बयां और” रेणु की रचना प्रक्रिया की बारीकियों को उद्घाटित करती है! यायावर खुद कहते हैं- “मैंने इसमें संकलित आलेखों में रेणु के जीवन और साहित्य पर विभिन्न दृष्टिकोण से विचार किया है। रेणु के प्रेमी पाठकों के लिए इसमें बहुत सारी नई जानकारियां मैंने पहली बार प्रस्तुत की हैं। रेणु के जीवन और साहित्य की विशेषताएं क्या हैं, महत्व क्या है, उनका अंदाज-ए-बयां क्या है?- इसे जानने के लिए इस पुस्तक से गुजरना आवश्यक है।”

इस पुस्तक में प्रस्तुत आलेख कई शीर्षकों में बँटे हैं- दो शब्द, रेणु का भूत, मुक्ति योद्धा रेणु, अब परेशानियों से परेशान नहीं होता, शैलेंद्र रेणु और तीसरी कसम, रिपोर्ताजों में रेणु, रेणु का है अंदाज- ए-बयां और, रेणु की कहानियां, रेणु के उपन्यास, रेणु की कविता, रेणु के रिपोर्ताज- इनके अलावा परिशिष्ट भी दिया गया है, जिसमें तीन रचनाएं हैं- फणीश्वर नाथ रेणु का जीवन और साहित्य, जय गंगा और डायन कोसी। जय गंगा और डायन  कोसी रेणु के रिपोर्ताज हैं, जो अब तक सुधी पाठकों की पहुंच से दूर थे। इस पुस्तक में यायावर ने जिस हंसती बतियाती भाषा के प्रयोग द्वारा रेणु के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला है, वह पाठकों को सरसता की डोर से बांध लेती है। जिज्ञासु पाठक पूरी पुस्तक को  आद्योपांत पढ़ने को विवश हो जाता है। कहना न होगा कि यायावर की वर्णन शैली में यायावर का कवि भी साफ नजर आता है। खासकर, फिल्म तीसरी कसम की निर्माण प्रक्रिया में शैलेंद्र और रेणु से जुड़ा प्रसंग अत्यंत मर्मस्पर्शी बन पड़ा है!

जनता साप्ताहिक के 7 नवंबर 1948 अंक में प्रकाशित कथा रिपोर्ताज जय गंगा रेणु जी की दुर्लभ रचना है, जो अब तक असंकलित थी। इसे पढ़कर रोमांच हो आता है। एक ओर गंगा की बाढ़ की विनाश लीला, दूसरी ओर बाढ़ राहत के नाम पर हो रहा सरकारी पाखंड! ताजा ताजा आजादी का स्वाद भी इतना कसैला था? नई पीढ़ी के पाठकों के लिए पठनीय दस्तावेज! देश को अंग्रेजों के पलायन का नाम बता दिया गया- “आजादी”, जबकि मानवता सच्ची आजादी का मोहताज ही बनी रही। अंग्रेजों को भगाकर एक सामंतवादी शोषण तंत्र के चंगुल में फंस गया भारत, जिसे रेणु ने अपनी युवावस्था में ही प्रत्यक्ष देख लिया था। आज हमारे समाज में जितनी भी विषमताएँ और विकृतियां व्याप्त हैं, उनका बीजारोपण आजादी के प्रातः काल में ही कर दिया गया था। रेणु जी ने जिस कालखंड को अपनी कलम से उकेर दिया है, वह पत्थर पर खुदी इबारत बन चुकी है। रचनाकार केवल कहानी नहीं सुनाता, बल्कि उसकी लेखनी उस कालखंड को इतिहास के पन्नों पर स्वर्णाक्षरों में दर्ज कर देती है।

इतिहास झूठा भी हो सकता है, क्योंकि अधिकांश इतिहासकार सत्ताधीशों के दरबारी और चाटूकार होते हैं। मगर साहित्यकार के ज़मीर में चट्टान जैसी दृढ़ता होती है। वह जिस कालखंड को अपनी रचनाओं में कैद करता, वह अपने आप में एक प्रामाणिक दस्तावेज बन जाता है। आज देश के सामने जो विसंगतियां और चुनौतियां सुरसा की तरह मुँह बाए खड़ी हैं, उनके भ्रूण रेणु जी को आजादी की पहली किरण फूटते ही दिखाई पड़ गए थे।

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(लेखक गौरीशंकर पूर्वोत्तरी से संपर्क- शिवपुरी, पूर्णिया 854301, मो. नं. 8789896990)

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