सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करें किसान संगठन व विपक्ष 

0
444
मातृभाषा में प्रायोगिक आधार पर तकनीकी शिक्षा प्रदान करने पर सरकार विचार कर रही है। सुशील कुमार मोदी ने राज्यसभा में यह मुद्दा उठाया था।
मातृभाषा में प्रायोगिक आधार पर तकनीकी शिक्षा प्रदान करने पर सरकार विचार कर रही है। सुशील कुमार मोदी ने राज्यसभा में यह मुद्दा उठाया था।

पटना। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करना चाहिए किसान संगठनों व विपक्ष को। यह सलाह दी है पूर्व डिप्टी सीएम व राज्यसभा सदस्य सुशील कुमार मोदी ने। उन्होंने कहा कि तीन नये कृषि कानून रद करने के लिए दायर याचिका पर जब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो गई है, तब इसी मुद्दे पर अड़े किसान संगठनों को  आंदोलन समाप्त कर न्यायालय के निर्णय की प्रतीक्षा करनी चाहिए। कांग्रेस को भी 15 जनवरी से प्रस्तावित आंदोलन स्थगित कर देना चाहिए।

तीन तलाक हो या राम मंदिर का मुद्दा, जब एनडीए सरकार ने हमेशा सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का सम्मान किया है, तब वह कृषि कानून पर भी शीर्ष न्यायलय का फैसला स्वीकार करेगी। किसान संगठनों और विपक्ष को भी यही रुख अपनाना चाहिए।

- Advertisement -

कांग्रेस, राजद और वामदलों के वर्चस्व वाला हताश विपक्ष इन कृषि कानूनों के बारे में तरह-तरह के संदेह फैलाकर इन्हें रोकने पर अडा है। बिहार सहित लगभग पूरे देश में कहीं असली किसान नये कृषि कानून का न विरोध करते हैं, न प्रधानमंत्री के किसान प्रेम पर अनावश्यक संदेह करते हैं।  किसान विपक्ष के भारत बंद को विफल कर अपना रुख बता भी चुके हैं, लेकिन विपक्ष को किसान के हित से नहीं, पीएम नरेंद्र मोदी से बैर निकालने से मतलब है।

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने लंबे समय तक विभिन्न स्तरों पर विशेषज्ञों की राय लेने के बाद कृषि क्षेत्र में बड़े दूरगामी सुधार करने के लिए पिछले साल जो तीन कृषि कानून लागू किये, उनसे जल्द ही देश के 9 करोड़ किसानों की आय बढने वाली है। मंडी में फसल बेचने की बाध्यता समाप्त करने वाले ये कानून कृषि क्षेत्र में निजी निवेश को आकर्षित कर खेती को लाभकारी बनायेंगे।

यह भी पढ़ेंः विपक्ष की भूमिका बदल गयी है, अच्छे की भी आलोचना(Opens in a new browser tab)

सुशील कुमार मोदी ने किया पुस्तक का विमोचन

बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सभागार में आयोजित अमरेन्द्र कुमार की सद्यः प्रकाशित पुस्तक- ‘कोरोना कालजयी लघु कहानियां’ का लोकार्पण करते हुए पूर्व उपमुख्यमंत्री व सांसद सुशील कुमार मोदी ने कहा कि हर आंदोलन की तरह कोरोना काल ने भी कई नए शब्दों को गढ़ा है, जो आज के पहले प्रचलन में नहीं थे। कोरोना काल का मुकाबला और लोगों में जागरूकता के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई आसान शब्दावलियों का सहारा लिया, जो काफी प्रचलित भी हुए।

उन्होंने कहा कि कोरोना के प्रारंभिक काल में प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘जान है तो जहान है, फिर उसके बाद जब हालात थोड़ा संभले तो उन्होंने कहा कि, ‘जान भी, जहान भी।’ आम लोगों को कोरोना के संक्रमण से बचने और उनमें जागरूकता पैदा करने के लिए उन्होंने कहा ‘दो गज की दूरी, मास्क है जरूरी। टीका निर्माण पर जब कार्य हो रहा था तो उन्होंने कहा ‘जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं।’ टीका जब अंतिम परीक्षण के दौर में था, तो उन्होंने कहा कि ‘दवाई भी, कड़ाई भी।’ कोरोना काल के दौरान लोग घरों में रहे, इसलिए उन्होंने कहा कि ‘घर की लक्ष्मण रेखा’ को पार मत कीजिए।

इसी तरह कोरोना काल में क्वारंटाइन, सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क, पीपी किट, वेंटिलेटर, सेनिटाइजर, कंटेंमेंट जोन, एंटी बाडी टेस्ट, पीसीआर टेस्ट के साथ ही टेलीमेडिसिन, एसिम्टोमेटिक आदि शब्दों का लोक व्यवहार और प्रचलन शुरू हुआ। घरों में बंद लोगों के बीच ‘वर्क फ्राम होम’ प्रचलित हुआ। सिनेमा हाल जब बंद हुआ तो मनोरंजन के क्षेत्र में ओटीटी प्लेटफार्म का नया अवतार हुआ। अब मास्क तो लोगों के पहनावे का हिस्सा हो गया है।

श्री मोदी ने कहा कि सरकार और वैज्ञानिकों की तत्परता से एक वर्ष के अंदर टीका आ चुका है। टीका को लेकर किसी को भी भ्रमित होने की जरूरत नहीं है, सभी टीका लें, मगर प्रधानमंत्री की बात को ध्यान रखें कि दवाई के बावजूद कड़ाई जरूरी होगी, क्योंकि किसी को पता नहीं कि टीके का कितने दिनों तक प्रभाव रहेगा।

यह भी पढ़ेंः सुशील मोदी- दिल्ली का किसान आंदोलन भारत विरोधी ताकतों का हथियार (Opens in a new browser tab)

- Advertisement -