लेखक या कवि क्यों और किसलिए लिखता है, जानने के लिए इसे पढ़ें

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लेखक या कवि क्यों और किसलिए लिखता है, जानने के लिए इस लेख को पढ़ लें। सबके लेखन की अपनी सोच है। कोई नाम के लिए लिखता है तो कुछ दाम के लिए लिखते हैं।
लेखक या कवि क्यों और किसलिए लिखता है, जानने के लिए इस लेख को पढ़ लें। सबके लेखन की अपनी सोच है। कोई नाम के लिए लिखता है तो कुछ दाम के लिए लिखते हैं।
लेखक या कवि क्यों और किसलिए लिखता है, जानने के लिए इस लेख को पढ़ लें। सबके लेखन की अपनी सोच है। कोई नाम के लिए लिखता है तो कुछ दाम के लिए लिखते हैं। कुछ तो स्वांतःसुखाय लेखन का काम करते हैं। वरिष्ठ साहित्यकार नारायण सिंह ने अपने इस आलेख में कुछ बड़े लेखकों के उद्धरणों से बताने की कोशिश की है कि कोई लेखक क्यों लिखता है। आप भी पढ़ेंः
  • ‌नारायण सिंह

एक लेखक क्यों लिखता है; उसे बदले में समाज से क्या और कितना चाहिए, इसे लेखक ही बता सकता है। किसी को पैसा चाहिए, किसी को मान-सम्मान तो किसी को दोनों। किसी को दोनों मिलता है और किसी को एक भी नहीं। हर आदमी के चेतन या अवचेतन में अमर होने का भाव जरूर होता है, ऐसा मनोवैज्ञानिकों का मानना है। लिखने का एक कारण यह भी हो सकता है। जब लिखना आरंभ होता है तो लेखक के मन में केवल छपने का भाव रहता है। वह चाहता है कि उसकी रचना प्रिंट होकर ज्यादा से ज्यादा लोगों के बीच पहुँचे। जब रचनाएँ छपने लगती हैं, उसके बाद से उद्देश्य और इच्छाएँ बढ़ती चली जाती हैं। इच्छाएँ कुछ भी हो सकती हैं- मान-सम्मान, पैसा, समाज-परिवर्तन, विचार का प्रचार आदि इत्यादि। यहाँ कुछ जाने-अनजाने लेखकों के वक्तव्यों को जानना दिलचस्प होगा।

नामी लेखक हार्पर ली का कहना है कि कोई भी लेखक अपने को सुखी करने के लिए लिखता है; लेखन एक आत्माभिव्यक्ति का साधन है। गाव शिंग्जिआन (Gao Xingjian) का मानना है कि ‘लेखन मेरे दुख को कम करता है…वह मेरे अस्तित्व की पुनर्स्वीकृति का एक माध्यम है’। रोनाल्ड डहल कहते हैं कि ‘लेखक बनने वाला मूर्ख होता है; क्योंकि उसका एकमात्र प्रतिदान है पूर्ण स्वतंत्रता; और मुझे विश्वास है कि वह इसे ही पाने के लिए लिखता है’। पावलो कोएल्हो अपने दुख को लालसा (Longing) में ढालने के लिए लिखते हैं। नीचे कुछ और उद्धरण  :

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‘When I sit down to write a book, I do not say to myself, I am going to produce a work of art. I write it because there is some lie that I want to expose, some fact to which I want to draw attention, and my initial concern is to get a hearing.’ -George Orwell.

‘Create. Not for the money. Not for the fame. Not for the recognition. But the pure joy of creating something and sharing it.’- Ernest Barbaric.

‘I write for those that have no voice, for the silent ones who’ve been damaged beyond repair; I write for the broken child within me…..My struggle to be a writer gives meaning to my existence.’ – Avijeet Das (The Black Mask in Thamel और The Untold Diaries के लेखक)|

Maya Angelou- ‘There is no greater agony than having an untold story inside you.’

Albert Camus- ‘The purpose of a writer is to keep civilization destroying itself.’

बांग्ला के दलित लेखक मनोरंजन व्यापारी ने एक अंगरेजी अखबार को दिए साक्षात्कार में कहा था- I write because I cannot kill.’

Hennery Miller- ‘Writing is its own reward.’ (लेखन अपने आप में प्रतिदान/पुरस्कार है)।

हिंदी समाज में सबसे लोकप्रिय रामचरित मानस के रचयिता तुलसी दास कहते हैं- स्वांत: सुखाय रघुनाथ गाथा। भक्तिकालीन अन्य कवियों के सामने भी लगभग ऐसा ही आधार रहा होगा। सभी के अपने-अपने राम या कृष्ण थे और सामने था निराशा में डूबा समाज, जिसकी वे एक इकाई थे। हो सकता है उस निराशा से उबरने के लिए उन्हें यही रास्ता दिखाई दिया हो, क्योंकि अपने को अकिंचन मानते हुए कभी अपने मान-सम्मान की अभिलाषा की हो, ऐसा कहीं देखा-पढ़ा नहीं गया।

और अंत में लेखक-कहानीकार प्रेमचंद : “जिन्हें धन-वैभव प्यारा है, साहित्य-मंदिर में उनके लिए स्थान नहीं है। यहाँ तो उन उपासकों की आवश्यकता है, जिन्होंने सेवा को ही अपने जीवन की सार्थकता मान लिया हो, जिनके दिल में दर्द की तड़प हो और मुहब्बत का जोश हो। अपनी इज्जत तो अपने हाथ में है। अगर हम सच्चे दिल से समाज की सेवा करेंगे तो मान, प्रतिष्ठा और प्रसिद्धि सभी हमारे पाँव चूमेंगी। फिर मान प्रतिष्ठा की चिंता हमें क्यों सताए? और उसके न मिलने से हम निराश क्यों हों? सेवा में जो आध्यात्मिक आनंद है, वही हमारा पुरस्कार है- हमें समाज पर अपना बड़प्पन जताने, उस पर रोब जमाने की हवस क्यों हो? दूसरों से ज्यादा आराम के साथ रहने की इच्छा भी हमें क्यों सताए? हम अमीरी की श्रेणी में अपनी गिनती क्यों कराएँ? हम तो समाज का झंडा लेकर चलने वाले सिपाही हैं और सादी जिंदगी के साथ ऊँची निगाह हमारे जीवन का लक्ष्य है। जो आदमी सच्चा कलाकार है, वह स्वार्थमय जीवन का प्रेमी नहीं हो सकता। उसे अपनी मन:तुष्टि के लिए दिखावे की आवश्यकता नहीं, उससे तो उसे घृणा होती है। वह तो इक़बाल के साथ कहता है- ‘मैं आजाद हूँ और इतना हयादार हूँ कि मुझे दूसरों के निथरे हुए पानी के एक प्याले से मारा जा सकता है’।

यह भी पढ़ेंः कबूतर या किसी भी पक्षी का कोई खास देश होता है क्या !(Opens in a new browser tab)

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