लारेंस फरलेंग्टी की की मौत पर शहर में मातम मना…

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लारेंस फरलेंग्टी ने 101 साल की उम्र में भी कविता लिखी। उन्हें युद्ध से नफरत थी। मानवता से मुहब्बत के आदी थी। बुढ़ापे में बेहद रूमानी।
लारेंस फरलेंग्टी ने 101 साल की उम्र में भी कविता लिखी। उन्हें युद्ध से नफरत थी। मानवता से मुहब्बत के आदी थी। बुढ़ापे में बेहद रूमानी।

लारेंस फरलेंग्टी ने 101 साल की उम्र में भी कविता लिखी। उन्हें युद्ध से नफरत थी। मानवता से मुहब्बत के आदी थी। बुढ़ापे में बेहद रूमानी। उनके निधन पर श्रद्धांजलि स्वरूप पढ़ें वरिष्ठ पत्रकार अमित प्रकाश सिंह का यह आलेख 

  • अमित प्रकाश सिंह

लारेंस फरलेंग्टी महज  का एक ही महीना बचा था। कवि शायद अपने जीवन के एक सौ दो साल में होता। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। कवि अपने बेटे और बेटे की दोस्त का हाथ अपने हाथों में लिए अपनी किसी नई कविता में उलझ गया था। इस मौत पर उसके पूरे शहर में अचानक गुल हुई रोशनी। सौंवे साल में कविता प्रेमियों की मौजूदगी में जिस पौधे को कवि ने रोपा था, उसने भी उसे अपनी शाखाएं झुका कर अलविदा कहा। यह वही पेड़ था, जिसे उखाड़ने के लिए आए लोगों के खिलाफ मोहल्ले के लोग एकजुट हुए थे। यह कवि था लॉरेंस फरलेंग्टी। उन्हें पहले पोस्ट लारियट होने का सम्मान भी मिला था।

लॉरेंस की कविताएं उसके नाम के साथ सारी दुनिया में पढे-लिखे लोग जानते थे। लेकिन उसकी मौत पर जिस शहर में रोशनी पल भर को बुझी, वह  शहर था सैन फ्रांसिस्को। अमेरिका के इस शहर से उस कवि का खासा अपनापा था। तकरीबन छह दशक का साथ। उसके जाने के बाद पूरे शहर के वे सारे कैफे-रेस्टोरेंट, संग्रहालय, चित्र  वीथिकाएं और जिंदगी  सहसा ठहर गई  थी।

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लारेंस खुद बहुभाषी था। उसकी मां इटैलियन-पोर्तगीज थी और पिता एक शरणार्थी। मां मानसिक रोगी थी। और जल्दी ही वे चल बसीं। बालक लारेंस की पढ़ाई-लिखाई और किशोर अवस्था फ्रांस में गुजरी। फिर वे न्यूयार्क पहुंचे। अमेरिकी नेवी में नियुक्ति पाई। दूसरे विश्वयुद्ध में जापान के नागासाकी शहर को एटम बम से नष्ट करने वाली टुकड़ी में वे भी थे। उन्हें बाद में वहीं तैनात भी किया गया। उन्होंने वह तबाही, वह चीत्कार, वह सन्नाटा  अपनी आंखों से देखा। इस पूरे अनुभव ने उन्हें युद्ध विरोधी बना दिया। न्यूयार्क लौटने के बाद उन्होंने वह नौकरी छोड दी। उन्होंने कोलंबिया यूनिवर्सिटी से एमए और फिर सारबोन यूनिवर्सिटी से डाक्टरेट की। एकदम नई एक जिंदगी की शुरुआत।

वे सैन फ्रांसिस्को आए। यहीं उन्होंने सिटी लाइट्स प्रकाशन की शुरुआत की। वे बुद्धिजीवियों से मिलते। संगीतज्ञों से मिलते। खुद कविताएं लिखते।  समूहों में तेज स्वर में सुनाते और युद्ध की विभीषिका के खिलाफ सक्रिय रहते। जलवायु में बदलाव, ट्रांसजेंडर, समलैंगिकता, और रंगभेद संबंधी तमाम आंदोलनों  के साथ ही बीट कविता, बीट संगीत की शुरुआत और लोकप्रियता यहीं से हुई। तानाशाही और मानवाधिकारों के खिलाफ बुद्धिजीवियों की एकजुटता सैन फ्रांसिस्को में सिटी लाइट्स में होती।

सिटी लाइट्स सिर्फ प्रकाशन केंद्र नहीं, बल्कि आंदोलनकारी  परिवेश के तौर पर बीट एक्सप्रेशन के तौर पर उभरा।  सिटी लाइट्स प्रकाशन में जुडे रचनाकारों में विलियम एस बोरो, ग्रिगोरीकोर्सो, जैक केरुआक, एलेन गिंसबर्ग आदि थे, जो अंतर्राष्ट्रीय तौर पर मशहूर हैं।

सत्तासीन  नेताओं, नौकरशाही और सुरक्षादस्तों के अफसरों की घटिया पुलिसिया बर्बरता और आतंक के बावजूद लारेंस की मजबूती से तब के दौर में आंदोलन चले। प्रभावी हुए। अदालतों से सहयोग मिला। और समाज को और बेहतर बनाने का हौसला जगा। लारेंस की अपनी कविताओं का संग्रह है ‘आइलैंड आफ द पाउंड’। यह 1957 में छपी। इसकी दस लाख से ज्यादा प्रतियां बिकीं। इसके दो साल बाद ही ‘हाउल’ का प्रकाशन हुआ। कवि एलेन गिंसबर्ग  और लारेंस  गिरफ्तार किए गए। इस कविता में युद्ध के चलते समाज में मादक पदार्थों, समलैंगिकता और  मानसिक तौर पर हिस्टीरिकली तौर पर परेशान लोगों का जिक्र है। न्यायालय ने इस चर्चित मुकदमे में तमाम आरोप खारिज किए। समाज का सही दस्तावेज माना जाता है उस कविता को। हालांकि अपने दिमाग में कैद शुद्धतावादी प्रोफेसर और बुद्धिजीवी उस कविता को कविता नहीं मानते, लेकिन उस कविता ने लेखन की शैली बदल दी। एक नया इतिहास रचा।

इस मुहिम को  सतत कामयाब रखने में उन कवियों, चित्रकारों, रंगकर्मियों,  संगीतकारों और कलाकारों  को भूला नहीं जा सकता, जो तब यूरोपीय भाषाओं में सक्रिय थे। अंग्रेजी के जरिए वे सारी दुनिया में एक नई रोशनी ला रहे थे। इसमें युद्ध का विरोध, रंगभेद का विरोध और साहित्यिक-सांस्कृतिक और सामाजिक विकास के साथ विभिन्न तर्कों से  मानव-मानव में विभाजन की तानाशाही प्रवृत्तियों का विरोध था।

सत्ता में बैठी ताकतें भी लगातार अपने प॔जों को और नुकीला करती, लेकिन वे लारेंस सिटी लाइट्स से हो रहे आंदोलनों को कुचलने के हमेशा नए तरीके इस्तेमाल करते। लेकिन सामूहिकता के साथ लारेंस कामयाब होते। उनके प्रकाशन ने सौ से ज्यादा लोगों को मंच और नाम ही नहीं, बल्कि अच्छा पारिश्रमिक भी दिया।

लारेंस ने आत्मकथा भी लिखी है। उन्होंने चित्र  भी बनाए हैं। नाटक और उपन्यास भी लिखे हैं। लारेंस बड़े चाव से इटैलियन भोजन लेते। वे क्लेरियट बजाते और जैज संगीत के साथ  अपनी कविताएं तेज स्वर में पढ़ते। आंदोलनों में उनकी मौजूदगी अनिवार्य थी। वे जिंदगी जीना जानते थे। वे मशहूर ला कारबोवारा में जाते। वहां पीछे की टेबिल पर वे बैठते। वे तरह-तरह की शराब पीते, लेकिन कभी उन्हें बेअदबी करते या लड़खड़ाते नहीं देखा गया। उन्हें बहुत पसंद थी वह जगह।  वे खुले दिमाग के रूमानी  कवि थे। गाना, नाचना और अभिनय में उनकी खासी रुचि थी। शहर के तमाम कैफे-रेस्टोरेंट में वे जाते। पिछले ही सप्ताह कोविड से बचाव का इंजेक्शन लिया था। उसके बाद वे काफी खुश और सक्रिय थे। लेकिन 22 फरवरी को वे इस ब्रह्माण्ड में कहीं गुम हो गए।

एक युवा कवि ने उनके जाने पर कहा कि सोलह साल की उम्र में कविता लिखना अच्छा है, लेकिन एक सौ एक साल की उम्र में कविता लिखने वाला लारेंस फरलेंग्टी ही हो सकता है।

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